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शुरुआत से विदेशी मुद्रा व्यापारी तक का रास्ता

शुरुआत से विदेशी मुद्रा व्यापारी तक का रास्ता
तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। (फाइल फोटो)

आर्थिक तथ्य

भारत द्वारा चीन को निर्यात किए गए उत्पादों की सूची

वित्त वर्ष 2019-20 में चीन को भारतीय निर्यात 16.6 बिलियन डॉलर था, भारत, चीन को मुख्य रूप से जैविक रसायन, खनिज ईंधन, कपास, लौह अयस्क, प्लास्टिक की वस्तुओं, परमाणु मशीनरी, मछली, नमक, विद्युत मशीनरी और लोहे और इस्पात का निर्यात करता है. यहाँ यह उल्लेख करना जरूरी है कि भारत ने वित्त वर्ष 2019 में अपने कुल निर्यात का 5.47% भाग चीन को निर्यात किया था.

फ्लोटिंग रेट बॉन्‍ड क्या होता है?

भारत सरकार ने 01 जुलाई, 2020 से फ्लोटिंग रेट बॉन्‍ड 2020 योजना शुरू कर दी है. इस बांड का कार्यकाल 7 वर्ष का होगा. फ्लोटिंग बांड पर हर 6 महीने में 1 जनवरी और 1 जुलाई को ब्‍याज की दर बदलती रहेगी. बांड में निवेश करने के लिए न्यूनतम राशि 1000 (डिजिटल) रुपये और नकद में अधिकतम 20 हजार रूपये होगी.

भारत में रोटी की तुलना में पराठा पर GST अधिक क्यों लगता है?

मालाबार परोता / पराठे पर 18% की दर से कर लगता है जबकि रोटी पर भारत में 5% की दर से वस्तु एवं सेवा कर लगता है. भारत में इन कर दरों में अंतर जानने के लिए, इस लेख को अंत तक पढ़ें.

भारत और बांग्लादेश के बीच अंतर्देशीय जल पारगमन और व्यापार प्रोटोकॉल क्या है?

भारत और बांग्लादेश के बीच ‘अंतर्देशीय जल पारगमन एवं व्यापार प्रोटोकॉल’ (Protocol on Inland Water Transit and Trade- के दूसरे अध्याय पर 20 मई, 2020 को हस्ताक्षर किये गए. इस अंतर्देशीय जल पारगमन से भारत को उर्वरकों, खाद्यान्न, कृषि उत्पादों, सीमेंट और कंटेनरीकृत माल के परिवहन के लिए रास्ता मिलेगा.

विदेशी मुद्रा भंडार: अर्थ, संरचना, उद्येध्य और लाभ

विदेशी मुद्रा भंडार; विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों, सोना, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) और आईएमएफ में आरक्षित स्थिति से मिलकर बनता है. भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार का कुल आकार 29 मई 2020 को 493 बिलियन अमेरिकी डॉलर था.

भारत सरकार के ऊपर कितना कर्ज है?

स्टेटस रिपोर्ट ओन गवर्नमेंट डेब्ट फॉर 2018-19 में बताया गया है कि मार्च 2019 तक देश का कुल सार्वजानिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद का 68.6% हो गया है जो कि आसान शब्दों में 13 ट्रिलियन रुपये या फिर 1.3 करोड़ करोड़ हो गया है.आइये इस लेख में जानते हैं कि 2014 से 2019 तक देश के ऊपर कितना कर्ज बढ़ा है?

भारत सरकार और आरबीआई के बीच रिज़र्व फण्ड ट्रान्सफर विवाद क्या है?

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपने स्वयं के रिज़र्व से अगस्त 2019 में 1.76 लाख करोड़ केंद्र सरकार को लाभांश और सरप्लस पूंजी के तौर पर देने का फ़ैसला किया था. लेकिन इसी फण्ड विवाद को लेकर रिज़र्व बैंक और सरकार के बीच कुछ साल पहले खींचतान भी हुई थी. आइये इसी लेख में जानते हैं कि यह हस्तांतरण किस नियम के तहत और क्यों किया जाता है?

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग किन्हें कहा जाता है?

MSME परिभाषा 2020: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) को MSME अधिनियम -2016 के अनुसार वर्गीकृत किया गया है.कोविड 19 से हुए आर्थिक नुकसान को कम करने के दिशा में कदम उठाते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए 3 लाख करोड़ ऋण प्रदान करने की घोषणा की है. इसके कारण देश में 45 लाख सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को फायदा होगा.

कंसोल बांड या परपेचुअल बॉन्ड क्या होता और इसे वॉर बांड क्यों कहा जाता है?

परपेचुअल बॉन्ड (Console Bond or Perpetual Bond) बिना मैच्योरिटी की तारीख वाले बॉन्ड होते हैं. इन पर भी साधारण बांड की तरह ही फिक्स रिटर्न मिलता है. इन बांड को वॉर बांड भी कहा जाता है क्यों इन्हें सरकार द्वारा युद्ध के दौरान धन इकठ्ठा करने के लिए भी इशू किया जाता है. इन्हें जारी करने वाले के पास इस बॉन्ड को निर्धारित अवधि के बाद बायबैक करने का विकल्प रहता है.

भौगोलिक संकेत (GI) टैग: अर्थ, उद्देश्य, उदाहरण और अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

एक भौगोलिक संकेत (GI) टैग किसी विशेष क्षेत्र / राज्य / देश के उत्पाद निर्माता या व्यवसायियों के समूह को अच्छी गुणवत्ता के कृषि, औद्योगिक, प्राकृतिक वस्तुओं को बनाने के लिए दिया जाता है. जीआई टैग, भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) एक्ट,1999 के अनुसार जारी किए जाते हैं.

जानें शराब की बिक्री से राज्यों को कितना राजस्व प्राप्त होता है?

भारतीय राज्यों ने 2018-19 में शराब पर उत्पाद शुल्क से प्रति माह औसतन 12,500 करोड़ रुपये एकत्र किए,जो 2019-20 में प्रति माह लगभग 15,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया.“उत्तर प्रदेश ने पिछले वित्तीय वर्ष में शराब से 2,500 करोड़ रुपये प्रतिमाह एकत्र किए थे.आइये इस लेख में पड़ताल करते हैं कि कोरोना वायरस फैलने की आशंका के बीच क्यों राज्यों के लिए शराब बेचना जरूरी है?

पेटेंट किसे कहते हैं और यह कैसे प्राप्त किया जाता है?

पेटेंट (Patent) एक ऐसा कानूनी अधिकार है जो किसी व्यक्ति या संस्था को किसी विशेष उत्पाद, खोज, डिजाईन, प्रक्रिया या सेवा के ऊपर एकाधिकार देता है. पेटेंट प्राप्त करने वाले व्यक्ति के अलावा यदि कोई और व्यक्ति या संस्था इनका उपयोग (बिना पेटेंट धारक की अनुमति के) करता है तो ऐसा करना कानूनन अपराध माना जाता है.

नॉमिनल GDP और रियल GDP में क्या अंतर होता है?

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) किसी देश की आर्थिक स्थिति में बारे में बताता है. जिस देश की GDP बढती जाती है वह विकास की नयी ऊँचाइयों पर चढ़ता जाता है. जीडीपी की गणना के दो प्रमुख प्रकार हैं. एक है नोमिनल GDP और दूसरा है रियल GDP. आइये इस लेख में इन दोनों के बीच अंतर को जानते हैं.

भारत पेट्रोलियम भंडार कहाँ और क्यों बना रहा है?

Strategic Petroleum Reserves in India:-वर्तमान में कोविड 19 के चलते पूरे विश्व में तेल की डिमांड बहुत कम हो गयी है जिसके कारण इसके मूल्यों में ऐतिहासिक कमी हुई है. भारत अभी लगभग 20 डॉलर प्रति बैरल की दर से कच्चे तेल का आयात कर रहा है.इसलिए भारत सरकार के पास पूरा मौका है कि इस समय कच्चे तेल का ज्यादा से ज्यादा स्टोरेज कर लिया जाये. आईये इस लेख में जानते हैं कि भारत के पास कितनी स्टोरेज क्षमता है?

इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक क्या है और इससे आम आदमी को क्या सुविधाएँ मिलेगीं?

वर्तमान में भारत में 6 पेमेंट बैंक काम कर रहे हैं जो कि शुरुआत में 11 थे. पेमेंट बैंकों (Payments Banks) की स्थापना के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने 24 नवम्बर 2014 को दिशा निर्देश जारी कर दिए थे. इस लेख में बताया गया है कि किस प्रकार 'इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक' आम आदमी के लिए फायदेमंद होगा?

SHARE MARKET : शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 50 पैसे चढ़कर 81.42 पर पहुंचा

SHARE MARKET : Rupee climbs 50 paise to 81.42 against US dollar in early trade

मुंबई : अमेरिकी डॉलर में कमजोरी और वैश्विक स्तर पर निवेशकों के बीच जोखिम लेने की धारणा में सुधार आने से बुधवार को शुरुआती कारोबार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 50 पैसे चढ़कर 81.42 रुपये पर पहुंच गया। विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि विदेशी पूंजी का सतत निवेश बढ़ने से भी घरेलू मुद्रा को बल मिला।

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया डॉलर के मुकाबले 81.43 पर खुला, और फिर बढ़कर 81.42 पर पहुंच गया, जो पिछले बंद भाव के मुकाबले 50 पैसे की वृद्धि दर्शाता है। रुपया सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 81.92 पर बंद हुआ था। मंगलवार को गुरुनानक जयंती के अवसर पर बाजार बंद थे। इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.01 प्रतिशत बढ़कर 109.64 पर आ गया। वैश्विक तेल सूचकांक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.30 प्रतिशत की गिरावट के साथ 95.07 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था।
शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने सोमवार को शुद्ध रूप से 1,948.51 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे।

कमजोर रुपए से बढ़ती मुश्किलें

डालर के मुकाबले रुपए के कमजोर होने का प्रमुख कारण बाजार में डालर की मांग बहुत ज्यादा हो जाना है।

कमजोर रुपए से बढ़ती मुश्किलें

तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। (फाइल फोटो)

जयंतीलाल भंडारी

देश में खुदरा महंगाई दर को सात फीसद से घटा कर छह फीसद पर लाने के लिए कई और कारगर प्रयासों की जरूरत है। अभी रेपो दर में कुछ और वृद्धि करके अर्थव्यवस्था में नगदी प्रवाह को कम किया जाना उपयुक्त होगा। लेकिन केवल ब्याज दर पर ही अधिक निर्भरता नुकसानदायक हो सकती है।

डालर की तुलना में रुपया ऐतिहासिक रूप से कमजोर है। 17 अगस्त को एक डालर की कीमत 79.50 के स्तर पर पहुंच गई थी। चिंताजनक तो यह कि रुपए में अभी और गिरावट की आशंका है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अब चीन-ताइवान तनाव और वैश्विक आर्थिक मंदी के खतरे के बीच रुपए की कीमत में बड़ी गिरावट के कारण जहां भारतीय अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ रही हैं, वहीं आर्थिक विकास की योजनाएं भी प्रभावित हो रही हैं। इतना ही नहीं, असहनीय महंगाई से जूझ रहे आम आदमी की चिंताएं भी बढ़ती जा रही हैं।

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डालर के मुकाबले रुपए के कमजोर होने का प्रमुख कारण बाजार में डालर की मांग बहुत ज्यादा हो जाना है। वर्ष 2022 की शुरुआत से ही विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआइआइ) भारतीय बाजारों से पैसा निकालने में लगे हैं। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में खासा इजाफा कर दिया है। दुनिया के कई विकसित देशों के केंद्रीय बैंक भी इसी रास्ते पर चल रहे हैं। बैंक आफ इंग्लैंड ने भी सत्ताईस साल बाद चार अगस्त को सबसे अधिक ब्याज दर बढ़ाई है। ऐसे में भारतीय शेयर बाजार में निवेश करने के इच्छुक निवेशक अमेरिका सहित अन्य विकसित देशों में अपने निवेश को ज्यादा लाभप्रद और सुरक्षित मान रहे हैं और इसीलिए भारत से पैसा निकाल कर अमेरिका व दूसरे विकसित देशों में निवेश कर रहे हैं।

गौरतलब है कि अभी भी दुनिया में डालर सबसे मजबूत मुद्रा है। दुनिया का करीब पिच्यासी फीसद कारोबार डालर में होता है। दुनिया के उनतालीस फीसद कर्ज डालर में दिए जाते हैं। इसके अलावा कुल डालर का करीब पैंसठ फीसद उपयोग अमेरिका के बाहर होता है। चूंकि भारत अपनी कच्चे तेल की करीब पचासी फीसद जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है, इसलिए डालर की अहमियत भारत के लिए भी काफी ज्यादा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से भारत को डालर ज्यादा खर्च करने पड़ रहे हैं।

साथ ही देश में कोयला, उवर्रक, वनस्पति तेल, दवा निर्माण के कच्चे माल, रसायन आदि का आयात लगातार बढता जा रहा है, ऐसे में डालर की जरूरत भी बढ़ती जा रही है। स्थिति यह है कि भारत जितना निर्यात करता शुरुआत से विदेशी मुद्रा व्यापारी तक का रास्ता है, उससे अधिक वस्तुओं और सेवाओं का आयात करता है। इससे देश का व्यापार संतुलन लगातार प्रभावित हो रहा है। एसबीआइ की इको रैप रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022-23 के अप्रैल से जुलाई के चार महीनों में भारत का व्यापार घाटा सौ अरब डालर के रेकार्ड स्तर पर पहुंच गया है।

सरकार ने खुद यह स्वीकार किया है कि दिसंबर 2014 से अब तक देश की मुद्रा में पच्चीस फीसद तक गिरावट आ चुकी है। इस वर्ष पिछले सात महीनों में ही रुपया करीब सात फीसद तक लुढ़क चुका है। फिर भी अन्य कई विदेशी मुद्राओं की तुलना में रुपए बेहतर स्थिति में है। ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो जैसी विदेशी मुद्राओं की तुलना में रुपए की स्थिति मजबूत है। इसका कारण भारत में राजनीतिक स्थिरता, भारत से बढ़ते निर्यात, विकास दर वृद्धि की संभावनाएं, पर्याप्त खाद्यान्न भंडार जैसे कारण भी रहे हैं।

रुपया कमजोर होने का एक असर देश में बढ़ती महंगाई के रूप में सामने आया है। हाल में प्रकाशित महंगाई के आंकड़ों के मुताबिक जून 2022 में थोक महंगाई दर 15.18 फीसद और खुदरा महंगाई दर 7.01 फीसद के चिंताजनक स्तर पर पाई गई। पांच अगस्त को ब्याज दरें और बढ़ाने के मौद्रिक नीति समिति के फैसले का एलान करते हुए आरबीआइ के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा भी था कि देश में अभी भी महंगाई की दर ऊंची बनी हुई है। बढ़ती महंगाई पर नियंत्रण के लिए ही एक बार फिर से रेपो रेट में पचास आधार अंकों की बढ़ोतरी की गई है। महंगाई को अभी और नियंत्रित करने के मद्देनजर रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की सितंबर में होने वाली बैठक में रेपो दर में 35-40 आधार अंकों की और बढ़ोतरी की जा सकती है।

इस समय देश में खुदरा महंगाई दर को सात फीसद से घटा कर छह फीसद पर लाने के लिए कई और कारगर प्रयासों की जरूरत है। अभी रेपो रेट में कुछ और वृद्धि करके अर्थव्यवस्था में नगदी प्रवाह को कम किया जाना उपयुक्त होगा। लेकिन केवल ब्याज दर पर अधिक निर्भरता हानिप्रद हो सकती है। अधिक रेपो रेट बढ़ाने में उपभोक्ता और कारपोरेट दोनों प्रभावित होंगे, मांग घटेगी और इसका अर्थव्यवस्था भी प्रतिकूल असर करेगा। ऐसे में सबसे जरूरी यह है कि देश से निर्यात बढ़ाए जाए और आयात नियंत्रित किए जाएं। निसंदेह कमजोर होते रुपए की स्थिति से सरकार और रिजर्व बैंक दोनों चिंतित हैं और इस चिंता को दूर करने के लिए यथोचित कदम भी उठा रहे हैं।

आरबीआइ ने कहा है कि अब वह रुपए की विनिमय दर में तेज उतार-चढ़ाव की अनुमति नहीं देगा। उसका कहना है कि विदेशी मुद्रा भंडार का उपयुक्त उपयोग रुपए की गिरावट को थामने में किया जाएगा। 29 जुलाई को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार करीब पांच सौ तिहत्तर अरब डालर रह गया है। अब आरबीआइ ने विदेशों से विदेशी मुद्रा का प्रवाह देश की ओर बढ़ाने और रुपए में गिरावट को थामने, सरकारी बांड में विदेशी निवेश के मानदंड को उदार बनाने और कंपनियों के लिए विदेशी उधार सीमा में वृद्धि सहित कई उपायों की घोषणा की है। ऐसे उपायों से एफआइआइ पर अनुकूल असर पड़ा है और उनकी कुछ-कुछ वापसी भी देखी जा रही है।

यकीनन इस समय रुपए की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए और अधिक उपायों की जरूरत है। इस समय डालर के खर्च में कमी और डालर की आवक बढ़ाने के रणनीतिक उपाय जरूरी हैं। अब रुपए में वैश्विक कारोबार बढ़ाने अवसर तलाशने होंगे। पिछले महीने रिजर्व बैंक ने भारत और अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपए में किए जाने संबंधी महत्त्वपूर्ण कदम भी उठाया है। इससे भारतीय निर्यातकों और आयातकों को अब व्यापार के लिए डालर की अनिवार्यता नहीं रहेगी। साथ ही अब दुनिया का कोई भी देश भारत से सीधे बिना अमेरिकी डालर के व्यापार कर शुरुआत से विदेशी मुद्रा व्यापारी तक का रास्ता सकता है। इसका एक फायदा यह भी होगा कि डालर संकट का सामना कर रहे रूस, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, श्रीलंका, ईरान, एशिया और अफ्रीका सहित कई छोटे-छोटे देशों के साथ भारत का विदेश व्यापार तेजी से बढ़ेगा, भारतीय रुपया भी मजबूत होगा, भारत का व्यापार घाटा कम होगा और विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ेगा।

जिस तरह चीन और रूस जैसे देशों ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डालर के वर्चस्व को तोड़ने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, उसी तरह अब आरबीआइ के निर्णय से भारत की बढ़ती वैश्विक स्वीकार्यता के कारण रुपए को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्थापित करने में भी मदद मिल सकती है। इस समय जब दुनिया रूस और अमेरिकी-यूरोपीय खेमों में बंटती हुई दिखाई दे रही है, तब भारत को अपनी वैश्विक स्वीकार्यता के मद्देनजर दोनों ही खेमों के विभिन्न देशों में विदेश व्यापार बढ़ाने की संभावनाएं तलाशनी चाहिए। व्यापार में प्रवासी भारतीयों की भूमिका भी बढ़ानी होगी। उत्पाद और सेवा निर्यात बढ़ने से भी विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ेगी और देश की आर्थिक मुश्किलें कम होंगी।

News Analysis

भुगतान संतुलन (बीओपी) की गंभीर समस्या के कारण श्रीलंका की अर्थव्यवस्था संकट का सामना कर रही है। इसका विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से घट रहा है और देश के लिए आवश्यक उपभोग की वस्तुओं का आयात करना कठिन होता जा रहा है।

वर्तमान श्रीलंकाई आर्थिक संकट आर्थिक संरचना में ऐतिहासिक असंतुलन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की ऋण संबंधी शर्तों और सत्तावादी शासकों की गुमराह नीतियों का उत्पाद है।

श्रीलंका संकट से क्यों जूझ रहा है?

पृष्ठभूमि: जब 2009 में श्रीलंका 26 साल के लंबे गृहयुद्ध से उभरा, तो युद्ध के बाद की जीडीपी वृद्धि 2012 तक प्रति वर्ष 8-9% पर काफी अधिक थी।

हालांकि, 2013 के बाद इसकी औसत जीडीपी विकास दर लगभग आधी हो गई क्योंकि वैश्विक कमोडिटी की कीमतें गिर गईं, निर्यात धीमा हो गया और आयात बढ़ गया।

युद्ध के दौरान श्रीलंका का बजट घाटा बहुत अधिक था और 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने उसके विदेशी मुद्रा भंडार को खत्म कर दिया, जिसके कारण देश ने 2009 में आईएमएफ से 2.6 बिलियन डॉलर का ऋण लिया।

इसने 2016 में फिर से 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण के लिए आईएमएफ से संपर्क किया, हालांकि आईएमएफ की शर्तों ने श्रीलंका के आर्थिक स्वास्थ्य को और खराब कर दिया।

हाल के आर्थिक झटके: कोलंबो के चर्चों में अप्रैल 2019 के ईस्टर बम विस्फोटों के परिणामस्वरूप 253 लोग हताहत हुए, परिणामस्वरूप, पर्यटकों की संख्या में तेजी से गिरावट आई, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई।

2019 में गोटबाया राजपक्षे की नई सरकार ने अपने अभियान के दौरान किसानों के लिए कम कर दरों और व्यापक एसओपी का वादा किया था।

इन बेबुनियाद वादों के त्वरित कार्यान्वयन ने समस्या को और बढ़ा दिया।

2020 में कोविड -19 महामारी ने खराब स्थिति को और खराब कर दिया -

चाय, रबर, मसालों और कपड़ों के निर्यात को नुकसान हुआ।

पर्यटन आगमन और राजस्व में और गिरावट आई

सरकारी व्यय में वृद्धि के कारण, राजकोषीय घाटा शुरुआत से विदेशी मुद्रा व्यापारी तक का रास्ता 2020-21 में 10% से अधिक हो गया, और ऋण-सकल घरेलू उत्पाद अनुपात 2019 में 94% से बढ़कर 2021 में 119% हो गया।

श्रीलंका का उर्वरक प्रतिबंध: 2021 में, सभी उर्वरक आयातों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था और यह घोषित किया गया था कि श्रीलंका रातोंरात 100% जैविक खेती वाला देश बन जाएगा।

रातों-रात जैविक खादों के प्रयोग ने खाद्य उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया।

नतीजतन, श्रीलंका के राष्ट्रपति ने बढ़ती खाद्य कीमतों, एक मूल्यह्रास मुद्रा और तेजी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार को रोकने के लिए एक आर्थिक आपातकाल की घोषणा की।

विदेशी मुद्रा की कमी के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर रातों-रात विनाशकारी प्रतिबंध ने खाद्य कीमतों को बढ़ा दिया है। मुद्रास्फीति वर्तमान में 15% से अधिक है और अनुमान है कि यह औसत 17.5% है, जिससे लाखों गरीब श्रीलंकाई लोग कगार पर पहुंच गए हैं।

इस संकट में भारत ने श्रीलंका की किस प्रकार सहायता की है?

जनवरी 2022 से, भारत एक गंभीर डॉलर के संकट की चपेट में द्वीप राष्ट्र को महत्वपूर्ण आर्थिक सहायता प्रदान कर रहा है, जिससे कई डर, एक संप्रभु डिफ़ॉल्ट और आयात-निर्भर देश में आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी का कारण बन सकते हैं।

2022 की शुरुआत से भारत द्वारा दी गई राहत 1.4 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक है - एक अमरीकी डालर 400 मुद्रा स्वैप, एक अमरीकी डालर 500 ऋण स्थगन और ईंधन आयात के लिए एक अमरीकी डालर 500 लाइन ऑफ क्रेडिट।

हाल ही में, भारत ने देश की मदद के लिए श्रीलंका को 1 बिलियन अमरीकी डालर का अल्पकालिक रियायती ऋण दिया क्योंकि यह एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहा है।

श्रीलंका की मदद करना भारत के हित में क्यों है?

महत्वपूर्ण रूप से, चीन के साथ श्रीलंका में कोई भी मोहभंग भारत-प्रशांत में चीन के 'मोतियों के तार' के खेल से श्रीलंकाई द्वीपसमूह को बाहर रखने के भारत के प्रयास को आसान बनाता है।

इस क्षेत्र में चीनी उपस्थिति और प्रभाव को नियंत्रित करना भारत के हित में है।

जहां तक भारत श्रीलंकाई लोगों की कठिनाइयों को कम करने के लिए कम लागत वाली सहायता प्रदान कर सकता है, उसे यह ध्यान में रखते हुए उचित देखभाल के साथ किया जाना चाहिए कि उसकी सहायता का प्रकाशिकी भी मायने रखता है।

आगे का रास्ता क्या हो सकता है?

श्रीलंका के लिए उपाय: जैसे ही कुछ आवश्यक वस्तुओं की कमी समाप्त होती है, सरकार को देश की आर्थिक सुधार के लिए उपाय करने चाहिए, जो कि सिंहल-तमिल नव वर्ष (अप्रैल के मध्य में) की शुरुआत से पहले होने की उम्मीद है।

चिंता:

भुगतान संतुलन (बीओपी) की गंभीर समस्या के कारण श्रीलंका की अर्थव्यवस्था संकट का सामना कर रही है। इसका विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से घट रहा है और देश के लिए आवश्यक उपभोग की वस्तुओं का आयात करना कठिन होता जा रहा है।

वर्तमान श्रीलंकाई आर्थिक संकट आर्थिक संरचना में ऐतिहासिक असंतुलन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की ऋण संबंधी शर्तों और सत्तावादी शासकों की गुमराह नीतियों का उत्पाद है।

श्रीलंका संकट से क्यों जूझ रहा है?

पृष्ठभूमि: जब 2009 में श्रीलंका 26 साल के लंबे गृहयुद्ध से उभरा, तो युद्ध के बाद की जीडीपी वृद्धि 2012 तक प्रति वर्ष 8-9% पर काफी अधिक थी।

हालांकि, 2013 के बाद इसकी औसत जीडीपी विकास दर लगभग आधी हो गई क्योंकि वैश्विक कमोडिटी की कीमतें गिर गईं, निर्यात धीमा हो गया और आयात बढ़ गया।

युद्ध के दौरान श्रीलंका का बजट घाटा बहुत अधिक था और 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने उसके विदेशी मुद्रा भंडार को खत्म कर दिया, जिसके कारण देश ने 2009 में आईएमएफ से 2.6 बिलियन डॉलर का ऋण लिया।

मौजूदा संकट से बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों के बीच युद्ध प्रभावित उत्तरी और पूर्वी प्रांतों के आर्थिक विकास के लिए एक रोडमैप बनाने के लिए सरकार को तमिल राजनीतिक नेतृत्व के साथ हाथ मिलाना चाहिए।

घरेलू कर राजस्व को बढ़ाना और शुरुआत से विदेशी मुद्रा व्यापारी तक का रास्ता उधारी को सीमित करने के लिए सरकारी खर्च को कम करना सबसे अच्छा होगा, विशेष रूप से बाहरी स्रोतों से सॉवरेन उधार।

रियायतों और सब्सिडी के प्रशासन के पुनर्गठन के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए।

भारत की सहायता: भारत के लिए यह पूरी तरह से नासमझी होगी कि चीन को श्रीलंकाई क्षेत्र के विस्तार वाले हिस्से पर अधिकार करने दें। भारत को भारतीय उद्यमियों से श्रीलंका को वित्तीय मदद, नीतिगत सलाह और निवेश की पेशकश करनी चाहिए।

भारतीय व्यवसायों को आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण करना चाहिए जो चाय के निर्यात से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं तक की वस्तुओं और सेवाओं में भारतीय और श्रीलंकाई अर्थव्यवस्थाओं को आपस में जोड़ते हैं।

भारत को, किसी भी अन्य देश के बजाय, एक स्थिर, मैत्रीपूर्ण पड़ोस के पुरस्कारों को प्राप्त करने के लिए श्रीलंका को अपनी क्षमता का एहसास कराने में मदद करनी चाहिए।

अवैध शरण की रोकथाम: तमिलनाडु राज्य ने पहले ही संकट के प्रभाव को महसूस करना शुरू कर दिया है क्योंकि श्रीलंका से अवैध तरीकों से 16 व्यक्तियों के आगमन की सूचना है।

1983 के तमिल विरोधी नरसंहार के बाद तमिलनाडु लगभग तीन लाख शरणार्थियों का घर था।

भारत और श्रीलंका दोनों में अधिकारियों को शुरुआत से विदेशी मुद्रा व्यापारी तक का रास्ता यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वर्तमान संकट का उपयोग तस्करी गतिविधियों और तस्करी या दोनों देशों में भावनाओं को भड़काने के लिए नहीं किया जाता है।

एक अवसर के रूप में संकट: न तो श्रीलंका और न ही भारत तनावपूर्ण संबंधों को बर्दाश्त कर सकता है। एक बड़े देश के रूप में, यह भारत पर है, इसे अत्यंत धैर्य रखने और श्रीलंका को और भी अधिक नियमित और निकटता से जोड़ने की आवश्यकता है।

कोलंबो के घरेलू मामलों में किसी भी तरह के हस्तक्षेप से दूर रहते हुए अपनी जन-केंद्रित विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ाने की भी आवश्यकता है।

इस संकट का उपयोग नई दिल्ली और कोलंबो के लिए पाक खाड़ी मत्स्य विवाद का समाधान निकालने के लिए द्विपक्षीय संबंधों में एक लंबे समय से अड़चन अवसर के रूप में किया जाना चाहिए।

4 से 80 तक भारत की आजादी के बाद से रुपये की यात्रा पर एक नजर

भारत अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है और अगले 25 वर्षों के दौरान अपने लोगों के लिए एक लचीला आर्थिक विकास को साकार करने के चौराहे पर है - जिसे सरकार देश का "अमृत काल" कहती है।अर्थव्यवस्था के अन्य पहलुओं को एक तरफ रखते हुए, आइए एक नज़र डालते हैं कि भारतीय मुद्रा रुपया 1947 के बाद से अन्य वैश्विक बेंचमार्क साथियों के मुकाबले कैसा रहा। किसी देश की मुद्रा का मूल्य उसके आर्थिक मार्ग का आकलन करने के लिए एक प्रमुख संकेतक है।

1947 के बाद से व्यापक आर्थिक मोर्चे पर बहुत कुछ हुआ है, जिसमें 1960 के दशक में खाद्य और औद्योगिक उत्पादन में मंदी के कारण आर्थिक तनाव भी शामिल है। फिर भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान आए जिन्होंने खर्च को बढ़ाया और भुगतान संतुलन संकट को जन्म दिया। उच्च आयात बिलों का सामना करना पड़ा,

भारत डिफ़ॉल्ट के करीब था क्योंकि विदेशी मुद्रा भंडार लगभग सूख गया था। रिपोर्टों के अनुसार, तत्कालीन इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार को रुपये के भारी अवमूल्यन के लिए जाना पड़ा था। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य 4.76 रुपये से घटकर 7.5 रुपये हो गया। फिर 1991 में, भारत ने फिर से खुद को एक गंभीर आर्थिक संकट में पाया क्योंकि देश अपने आयात और अपने बाहरी ऋण दायित्वों को पूरा करने की स्थिति में नहीं था। फिर से, भारत डिफ़ॉल्ट के कगार पर था, जिसने देश की अर्थव्यवस्था को खोलने वाले बहुत जरूरी सुधारों को आवश्यक बना दिया।

संकट को नकारने के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक ने कथित तौर पर रुपये का दो तेज चरणों में अवमूल्यन किया - क्रमशः 9 प्रतिशत और 11 प्रतिशत। अवमूल्यन के बाद, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य लगभग 26 था।

आजादी के दौरान 4 रुपये से तत्कालीन बेंचमार्क पाउंड स्टर्लिंग के मुकाबले अब अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग 79 रुपये से 80 रुपये तक, पिछले 75 वर्षों में रुपये में 75 रुपये की गिरावट आई है।

फॉरेक्स एंड बुलियन, गौरांग सोमैया ने कहा, "इन वर्षों में रुपये की कमजोरी में कई कारकों का योगदान दिया गया है, जिसमें व्यापार घाटा अब 31 बिलियन अमरीकी डालर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है, जो स्वतंत्रता की शुरुआत में लगभग कोई घाटा नहीं था।" विश्लेषक, मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज "हम उम्मीद करते हैं कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट जारी रह सकती है, लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार में सुधार में आरबीआई द्वारा बड़े पैमाने पर युद्ध छाती के निर्माण के बाद मूल्यह्रास की गति धीमी हो सकती है।" जोड़ा गया। भले ही गिरते रुपये से पूरी अर्थव्यवस्था को फायदा न हो, लेकिन एक अवमूल्यन मुद्रा के निश्चित रूप से इसके गुण हैं क्योंकि यह निर्यात को बढ़ावा देने में सहायता करता है। 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से, सीएजीआर पर रुपया 3.74 प्रतिशत की दर से मूल्यह्रास कर रहा है ( ब्रोकरेज हाउस एचडीएफसी सिक्यूरिट के रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार ने कहा कि अमेरिका और भारत के बीच मुद्रास्फीति और ब्याज दर के अंतर के कारण अमेरिकी डॉलर के मुकाबले चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) यानी।

2000 और 2007 के बीच, रुपया देश में पर्याप्त विदेशी निवेश के प्रवाह के कारण एक हद तक स्थिर हो गया, लेकिन बाद में 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान गिरावट आई। "आगे अतीत को देखते हुए, हम देखते हैं कि 2009 से 46.5 से शुरू हुआ प्रमुख मूल्यह्रास शुरू हुआ। 2000 से 2009 तक लगभग अपरिवर्तित की तुलना में अब 79.5, 4.3 प्रतिशत सीएजीआर, 46.7 से 46.5 तक, "परमार ने कहा। लगभग सभी देशों की आरक्षित मुद्रा अमेरिकी डॉलर अन्य मुद्राओं के लिए हानिकारक है, खासकर तेज समय में वित्तीय बाजारों में अस्थिरता के रूप में यह सहकर्मी मुद्राओं को कमजोर करता है। चूंकि आयात की लागत अधिक हो जाती है, घरेलू मुद्रास्फीति को ट्रिगर किया जा सकता है, जो बदले में अर्थव्यवस्था में क्रय शक्ति को कम कर सकता है। आयात की बढ़ती लागत से चालू खाता घाटा (सीएडी) भी बढ़ सकता है। अप्रैल-जुलाई 2022 की अवधि के लिए, भारत का व्यापार घाटा 100.01 बिलियन अमरीकी डॉलर था।

व्यापक व्यापार घाटा भी रुपये के कमजोर होने का एक योगदान कारक है। रिकॉर्ड के लिए, जुलाई में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले मनोवैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण 80 के स्तर से नीचे फिसल गया, क्योंकि तंग वैश्विक आपूर्ति के बीच कच्चे तेल की उच्च कीमतें पहली बार थीं।

अमेरिकी डॉलर की मांग बढ़ी। हालांकि, एक उम्मीद की किरण है। एसबीआई रिसर्च ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा कि वैश्विक मुद्रा बाजार में एक दिलचस्प विकास हो रहा है क्योंकि तेल और अन्य वस्तुओं के व्यापार में उल्लेखनीय उछाल आया है। रेनमिनबी, हांगकांग डॉलर और अरब अमीरात दिरहम जैसी मुद्राएं रियायती दरों पर। "डॉलर डिस्टेंसिंग आखिरकार हो रही है और यह भारत के लिए बदलती विश्व व्यवस्था में एक विश्वसनीय, धर्मनिरपेक्ष विकल्प के रूप में रुपये को पिच करने का समय है?

" एसबीआई रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में सवाल किया। वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार में अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी के लिए, यह इक्कीसवीं सदी की शुरुआत से सिकुड़ रहा है, दिसंबर 2021 के अंत तक 59 प्रतिशत के करीब गिर रहा है। दो दशक पहले 70 प्रतिशत से ऊपर।

भारतीय रिजर्व बैंक भी अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को कम करने के लिए उत्सुक है क्योंकि इस साल की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए रुपये में भुगतान का निपटान करने के लिए एक तंत्र की घोषणा की गई थी, खासकर भारत के निर्यात के लिए। तंत्र को फलीभूत होने पर रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण में एक लंबा रास्ता तय किया जा सकता है। लंबे समय में>।

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