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क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है?

क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है?
3.85 अरब डॉलर की गिरावट के बाद देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2 साल के सबसे निचले स्तर 524.52 अरब डॉलर रह गया है.

अमेरिकी डॉलर को रौंद रही रूस-चीन की स्ट्रैटजी: पुतिन ने सस्ता तेल बेचा, जिनपिंग ने सस्ता कर्ज बांटा; भारत भी अहम किरदार

24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला करते ही रूस पर प्रतिबंधों की बाढ़ आ गई। अमेरिकी डॉलर में कारोबार न कर पाने का संकट खड़ा हो गया। रूसी करेंसी रूबल की वैल्यू धड़ाम हो गई। रूस की इकोनॉमी तबाह होने की भविष्यवाणियां होने लगीं, लेकिन पुतिन तो जैसे इसी मौके के इंतजार में थे। उन्होंने जिनपिंग के साथ एक ऐसी स्ट्रैटजी को एक्टिवेट कर दिया, जिसकी तैयारी दोनों पिछले कई सालों से कर रहे थे। ये स्ट्रैटजी दुनिया से अमेरिका डॉलर के दबदबे को खत्म कर सकती है।

भास्कर एक्सप्लेनर में हम रूस-चीन की उसी स्ट्रैटजी को आसान भाषा में जानेंगे, लेकिन उससे पहले 2 सवालों के जवाब जान लेना जरूरी है.

सवाल- 1: अमेरिकी डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी कैसे बन गई?

जवाबः 1944 से पहले तक ज्यादातर देश अपनी मुद्रा को सोने के मूल्य के आधार पर तय करते थे। यानी उस देश की सरकार के पास सोने का जितना भंडार है, बस उतनी ही मूल्य की करेंसी जारी करते थे।

1944 में न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स में दुनिया के विकसित देश मिले और उन्होंने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सभी मुद्राओं की विनिमय दर यानी करेंसी एक्सचेंज रेट को तय किया, क्योंकि उस वक्त अमेरिका के पास सबसे ज्यादा सोने का भंडार था।

1944 से ही अमेरिकी डॉलर दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडार पर राज कर रहा है। (फाइल फोटो)

इसका असर एक छोटे से उदाहरण से समझिए। मान लीजिए भारत को पाकिस्तान की करेंसी पर भरोसा नहीं है। वो उससे डॉलर में कारोबार कर सकता था, क्योंकि उसे पता था कि अमेरिकी डॉलर डूबेगा नहीं और जरूरत पड़ने पर अमेरिका डॉलर के बदले सोना दे देगा।

ये व्यवस्था करीब 3 दशक चली। 1970 की क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? शुरुआत में कई देशों ने डॉलर के बदले सोने की मांग शुरू कर दी। ये देश अमेरिका को डॉलर देते और उसके बदले में सोना लेते थे। इससे अमेरिका का स्वर्ण भंडार खत्म होने लगा।

1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने डॉलर को सोने से अलग कर दिया। इसके बावजूद देशों ने डॉलर में लेन-देन जारी रखा, क्योंकि तब तक डॉलर दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा बन चुका था।

1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने डॉलर को सोने से अलग कर दिया। इसके बावजूद देशों ने डॉलर में लेन-देन जारी रखा, क्योंकि तब तक डॉलर दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा बन चुका था।

डॉलर की मजबूती की एक बड़ी वजह थी। दरअसल 1945 में अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने सऊदी के साथ एक करार किया। करार की शर्त ये थी कि उसकी सुरक्षा अमेरिका करेगा और बदले में सऊदी सिर्फ डॉलर में तेल बेचेगा। यानी अगर देशों को तेल खरीदना है, तो उनके पास डॉलर होना जरूरी है।

फिलहाल दुनिया का 80% व्यापार डॉलर में होता है और दुनिया का करीब 60% विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में है।

सवाल- 2: डॉलर की पावर के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए कैसे अरबों कमाता है?

जवाबः SWIFT नेटवर्क के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए अरबों कमाता है। मान लीजिए अडाणी ग्रुप को पाकिस्तान के किसी कारोबारी से 10 हजार डॉलर की सूरजमुखी खरीदना है। SWIFT नेटवर्क के जरिए ये ट्रांजैक्शन 5 स्टेप में होगा…

स्टेप-1: सबसे पहले अडाणी ग्रुप अपने भारतीय बैंक को 10 हजार डॉलर के बराबर भारतीय रुपए भेजेगा।

स्टेप-2: भारतीय बैंकों का अमेरिकी बैंक में खाता होता है। वहां से वो डॉलर में एक्सचेंज करके पेमेंट करने को कहेंगे।

स्टेप-3: भारतीय खाते वाला अमेरिकी बैंक दूसरे पाकिस्तानी खाते वाले अमेरिकी बैंक में पैसा ट्रांसफर करेगा।

स्टेप-4: दूसरा अमेरिकी बैंक पाकिस्तानी बैंक में पैसे ट्रांसफर कर देगा।

स्टेप-5: पाकिस्तानी बैंक से कारोबारी 10 हजार डॉलर के बराबर पाकिस्तानी रुपए निकाल सकता है।

SWIFT नेटवर्क में फिलहाल 200 से ज्यादा देशों के 11,000 बैंक शामिल हैं। जो अमेरिकी बैंकों में अपना विदेशी मुद्रा भंडार रखते हैं। अब सारा पैसा तो व्यापार में लगा नहीं होता, इसलिए देश अपने एक्स्ट्रा पैसे को अमेरिकी बॉन्ड में लगा देते हैं, जिससे कुछ ब्याज मिलता रहे। सभी देशों को मिलाकर ये पैसा करीब 7 ट्रिलियन डॉलर है। यानी भारत की इकोनॉमी से भी दोगुना ज्यादा। इस पैसे का इस्तेमाल अमेरिका अपनी ग्रोथ में करता है।

अब आते हैं अपने प्रमुख सवाल पर। यानी डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन-रूस की स्ट्रैटजी क्या है? सबसे पहले बात रूस की.

रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ब्रासीलिया की एक बैठक में साथ-साथ मौजूद।

रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल और गैस का उत्पादन करने वाला देश है और उसके सबसे बड़े खरीदार यूरोपीय देश हैं। रूस ने प्राकृतिक गैस खरीदने वाले यूरोपीय संघ के देशों से कहा कि वो डॉलर या यूरो के बजाय बिल का भुगतान रूबल में करें।

यानी जो देश पहले रूस से गैस खरीदने के लिए अमेरिकी बैंक में डॉलर रिजर्व रखते थे, उन्हें अब रूसी सेंट्रल बैंक में रूबल रिजर्व रखना पड़ रहा है। इसी तरह बाकी चीजों के निर्यात के लिए भी रूस अनफ्रेंडली देशों से रूबल में पेमेंट करने की मांग कर रहा है।

जून 2022 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने BRICS देशों की करेंसी का एक नया इंटरनेशनल रिजर्व बनाने की बात कही थी। पुतिन के इस प्रपोजल पर फिलहाल विचार किया जा रहा है। BRICS देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका हैं।

डॉलर को युआन से रिप्लेस करने के लिए चीन की कोशिशें

SWIFT की ही तरह चीन के सेंट्रल बैंक पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने CIPS नाम का सिस्टम बनाया है। इस पेमेंट सिस्टम से करीब 103 देशों के 1300 बैंक जुड़ चुके हैं। पिछले साल इस सिस्टम के जरिए 80 ट्रिलियन युआन (चीन की करेंसी) से ज्यादा का ट्रांजैक्शन हुआ। जनवरी 2022 में युआन क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा ट्रांजैक्शन वाली करेंसी बन गई। उससे आगे सिर्फ US डॉलर, यूरो और ब्रिटिश पाउंड थे।

युआन रिजर्व को बढ़ावा देने के लिए चीन ने 40 से ज्यादा देशों के साथ करेंसी स्वैप एग्रीमेंट किया है। इस एग्रीमेंट के तहत 2 देशों को व्यापार करने कि लिए हर बार SWIFT सिस्टम की जरूरत नहीं। एक फिक्स अमाउंट का ट्रेड वो देश अपनी करेंसी में कर सकते हैं।

इसके अलावा सऊदी अरब से भी युआन में तेल बेचने की बात हो रही है। यानी जो देश तेल खरीदने के लिए अभी डॉलर रिजर्व रखते हैं, वो युआन में रिजर्व रखेंगे। इससे डॉलर का दबदबा कम होगा।

रूस-चीन की इस कोशिश में भारत का किरदार

डॉलर के दबदबे को कम करने की चीन-रूस की कोशिश में भारत भी एक किरदार निभा रहा है। यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद भारत और रूस ने डॉलर को दरकिनार करते हुए रुपए और रूबल में आपसी कारोबार शुरू किया।

14 सितंबर को फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के प्रेसिडेंट ए. शक्तिवेल ने कहा है कि भारत ने रूस के साथ रुपए में कारोबार के लिए SBI को आथोराइज किया है। 7 सितंबर को रिजर्व बैंक और फाइनेंस मिनिस्ट्री ने बैंक से इंपोर्ट और एक्सपोर्ट ट्रांजैक्शन को रुपए में करने का बढ़ावा देने की बात कही थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक इससे रुपए को मजबूती मिलेगी।

आर्टिकल में आगे बढ़ने से पहले एक पोल पर हम आपकी राय जानना चाहते हैं.

आगे का रास्ता.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन और रूस की कोशिशें नुकसान तो पहुंचा रहीं, लेकिन बड़ा इम्पैक्ट आने में काफी वक्त लगेगा। डॉलर के खिलाफ इस अभियान में रूस और चीन को दूसरे देशों के साथ की दरकार है।

हालांकि, एक्सपर्ट्स युआन को डॉलर की जगह फिट नहीं पाते। इसकी सबसे बड़ी वजह चीन की सरकार है। यहां लोकतंत्र नहीं है, जिस वजह से इंस्टीट्यूशन में ट्रांसपेरेंसी भी नहीं है। कोई भी देश ऐसी किसी करेंसी को रिजर्व नहीं रखना चाहेगा, जिसके डूबने का खतरा ज्यादा हो।

References…

ऐसे ही नॉलेज बढ़ाने वाले एक्सप्लेनर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

इकोनॉमिस्ट्स ने कहा, विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ाने और रुपया में गिरावट रोकने में बहुत सफल नहीं होंगे RBI के उपाय

Dollar Vs Rupees: विदेशी माहौल अनुकूल नहीं है जिससे आरबीआई के उपायों से छोटी अवधि में थोड़ा फायदा हो सकता है। लेकिन, इनसे रुपया की दिशा बदलने की उम्मीद कम है। मंगलवार को शुरुआती कारोबार में रुपया 80 के लेवल को पार कर गया

RBI ने देश में विदेशी मुद्रा (Foreign Currency) की आवक बढ़ाने के जो उपाय किए हैं, उनका ज्यादा फायदा मिलने की उम्मीद नहीं है। इस वजह से डॉलर के मुकाबले रुपया के एक्सचेंज रेट पर इसका असर नहीं पड़ेगा। इकोनॉमिस्ट्स ने मनीकंट्रोल को यह बात बताई है। पिछले कुछ समय से डॉलर के मुकाबले रुपया में लगातार कमजोरी आ रही है।

कोटक सिक्योरिटीज में करेंसी डेरिवेटिव के हेड विकास बजाज ने कहा, "हमने रुपया में कमजोरी आने पर इस तरह के उपाय पहले भी देखे हैं। इनका खास असर नहीं पड़ता है। हमें यह इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि करंट अकाउंट (बढ़ता व्यापार घाटा) और कैपिटल अकाउंट (पूंजी का देश से बाहर जाना) दोनों ही मोर्चों पर रुपया को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उधर, डॉलर को लेकर माहौल काफी सपोर्टिव है और वित्तीय स्थितियां कठिन हो रही हैं।"

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rupee

उन्होंने कहा कि विदेशी माहौल अनुकूल नहीं है जिससे आरबीआई के उपायों से छोटी अवधि में थोड़ा फायदा हो सकता है। लेकिन, इनसे रुपया की दिशा बदलने की उम्मीद कम है। मंगलवार को शुरुआती कारोबार में रुपया 80 के लेवल को पार कर गया।

RBI ने इस महीने की शुरुआत में देश में विदेशी करेंसी की आवक बढ़ाने के लिए कई उपायों का ऐलान किया था। उम्मीद थी कि इन उपायों से डॉलर क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? के मुकाबले रुपया पर दबाव घटेगा। इनमें बैंकों को नॉन-रेजिडेंट्स इंडियंस से विदेशी मुद्रा जुटाने के लिए ज्यादा आजादी दी गई थी। सरकारी और प्राइवेट कंपनियों के बॉन्ड में छोटी अवधि के लिए विदेशी इनवेस्टर्स के निवेश की सीमा हटा दी गई थी।

इस साल डॉलर के मुकाबले रुपया 4.5 फीसदी कमजोर हो चुका है। इस दौरान RBI रुपया को सहारा देने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? इस्तेमाल करता रहा है। ट्रेडर्स का अनुमान है कि RBI ने स्पॉट और फॉरवर्ड मार्केट में पिछले छह हफ्तों में 30 से 40 अरब डॉलर की बिक्री की है। रूस ने 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला किया था। 18 फरवरी को इंडिया का विदेशी मुद्रा भंडार 632.95 अरब डॉलर था। 24 जून को यह घटकर 593.32 अरब डॉलर पर आ गया।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि RBI ने विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के साथ ही यह संकेत देने के लिए इन उपायों का ऐलान किया है कि वह लगातार रुपये में आ रही कमजोरी को रोकना चाहता है। साथ ही वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार को गिरने से बचाना चाहता है। एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि RBI के उपायों से स्पॉट मार्केट में कुछ हद तक डॉलर की कमी दूर करने में मदद मिल सकती है।

IFA Global के फाउंडर अभिषेक गोएनका ने कहा, "सेंटिमेंट के लिहाज से ये उपाय अहम हैं। इससे मार्केट पार्टिसिपेंट्स को यह संकेत जाता है कि RBI रुपया में लगातार आ रही गिरावट को रोकने को लेकर प्रतिबद्ध है। वह इसमें उतार-चढ़ाव पर भी अंकुश लगाना चाहता है। "

MoneyControl News

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First Published: Jul 19, 2022 1:22 PM

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Foreign Exchange Reserves: देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2 साल के निचले स्तर पर, 524.52 अरब डॉलर रह गया रिजर्व

RBI के आंकड़ों के अनुसार देश का फॉरेन करेंसी असेट्स 465.075 अरब डॉलर और गोल्ड रिजर्व 37,206 अरब डॉलर रह गया.

Foreign Exchange Reserves: देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2 साल के निचले स्तर पर, 524.52 अरब डॉलर रह गया रिजर्व

3.85 अरब डॉलर की गिरावट के बाद क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2 साल के सबसे निचले स्तर 524.52 अरब डॉलर रह गया है.

Foreign Exchange Reserves: भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले दो साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक 21 अक्टूबर को खत्म हुए हफ्ते में देश का विदेशी मुद्रा भंडार में 3.85 अरब डॉलर घटकर 524.52 अरब डॉलर रह गया है. जुलाई 2020 के बाद यह सबसे निचले स्तर पर है. इससे पिछले हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 4.50 अरब डॉलर की गिरावट के बाद 528.37 अरब डॉलर रह गया था. पिछले कई महीनों से विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट दर्ज की जा रही है.

एफसीए और गोल्ड रिजर्व में भी गिरावट

आरबीआई द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 21 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में मुद्राभंडार का महत्वपूर्ण घटक मानी जाने वाली फॉरेन करेंसी एसेट्स (FCA) 3.593 अरब डॉलर घटकर 465.075 अरब डॉलर रह गई है. इसके साथ ही देश के गोल्ड रिजर्व 24.7 करोड़ डॉलर घटकर 37,206 अरब डॉलर रह गया. केंद्रीय बैंक के मुताबिक स्पेशल ड्राइंग राइट्स (SDRs) 70 लाख डॉलर बढ़कर 17.44 अरब डॉलर हो गया है.

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रुपये में गिरावट को रोकने के प्रयास जारी

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की प्रमुख वजह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट को रोकने के लिए RBI मुद्रा भंडार से मदद ले रहा है. अक्टूबर 2021 में देश का विदेश मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के साथ सबसे ऊंचे स्तर पर था. आरबीआई द्वारा घरेलू करंसी के मूल्य को गिरावट से बचाने के लिए पिछले एक साल में अब तक 115 अरब डॉलर की बिकवाली कर चुका है.

विदेशी मुद्रा भंड़ार में गिरावट का असर

कोई भी देश जरूरत पड़ने पर अपने देश की करंसी में आई तेज गिरावट को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा भंड़ार की मदद लेता है. हालांकि इसमें गिरावट के नुकसान भी हैं. अगर मुद्रा भंड़ार ज्यादा कम हो जाता है, तो करंसी में अनियंत्रित गिरावट हो सकती है. इससे आयात पर निर्भर देशों पर बुरा असर पड़ता है, क्योंकि करंसी में गिरावट की वजह से आयात पर दिये जाने वाली लागत बढ़ जाती है.

Forex Reserves: भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डॉलर के पार, जानिए क्या है विदेशी मुद्रा भंडार

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अप्रैल के बाद सबसे अधिक बढ़ा है। 27 मई को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 3.9 अरब डॉलर बढ़कर 600 अरब डॉलर से अधिक हो गया। विदेशी मुद्रा भंडार में हुई बढ़ोतरी देश के लिए एक अच्छा संकेत है।

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। भारतीय विदेशी मुद्रा में इजाफा हुआ है। 27 मई को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा (FX) भंडार लगभग 3.9 बिलियन डॉलर बढ़कर 600 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया। यह राहत भरी खबर तब आई, जब ग्लोबल मार्केट में फ्यूल की कीमतें काफी बढ़ी हुई हैं।

एक महीने से अधिक समय तक 600 बिलियन डॉलर से नीचे रहने और लगातार 10 सप्ताह तक गिरने के बाद देश का आयात कवर लगातार दूसरे सप्ताह बढ़ा है। यह ऐसे समय में आया है, जब रुपये में कई बार उतार-चढ़ाव देखा गया। इस समय रुपया 77.61 डॉलर पर कारोबार कर रहा है। एक माह पहले रुपया 76 रुपये प्रति डॉलर पर कारोबार कर रहा था। आरबीआई के साप्ताहिक सांख्यिकीय आंकड़ों से पता चला है कि 27 मई के सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 3.854 अरब डॉलर बढ़कर 601.363 अरब डॉलर हो गया।

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क्या कहते हैं जानकार

डॉयचे बैंक में फॉरेक्स रिसर्च के ग्लोबल चीफ जॉर्ज सरवेलोस ने रॉयटर्स को बताया कि डॉलर एक सुरक्षित-हेवन जोखिम प्रीमियम का मूल्य निर्धारण कर रहा है, जो समय के साथ बना रहता है और अब न खत्म होने की क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? प्रक्रिया में है। लेकिन, विश्लेषकों का तर्क है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व का कड़ा चक्र यूरोप की तुलना में मजबूत विकास पर है। विश्लेषकों का मानना है कि रूसी तेल प्रतिबंध के बाद यूरो क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है।

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13 मई को हुई थी 2.676 बिलियन डॉलर की गिरावट

बता दें कि 13 मई को समाप्‍त हुए सप्‍ताह में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 2.676 बिलियन डॉलर की गिरावट दर्ज की गई थी। वहीं, 3 सितंबर 2021 को भारत का Forex Reserve सर्वकालिक उच्‍च स्‍तर 642.453 बिलियन डॉलर के स्‍तर पर पहुंच गया था। इसके बाद इसमें काफी तेजी से गिरावट दर्ज की गई। हालांकि, अब भारत का आयात कवर 600 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है, जो एक स्वस्थ्य संकेत है।

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क्या है विदेशी मुद्रा भंडार?

विदेशी मुद्रा (Foreign Currency) या क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Currency Reserve) अनिवार्य रूप से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा विदेशी मुद्राओं में आरक्षित के रूप में रखी गई संपत्ति है, जिसका इस्तेमाल आर्थिक संकट में किया जाता है। आमतौर क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? पर इसका यूज एक्सचेंज दर का समर्थन करने और मौद्रिक नीति बनाने के लिए किया जाता है। भारत के मामले में विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, सोना और विशेष आहरण अधिकारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का कोटा शामिल है। कुछ केंद्रीय बैंक अपने अमेरिकी डॉलर के भंडार के अलावा ब्रिटिश पाउंड, यूरो, चीनी युआन या जापानी येन को भी अपने भंडार में रखते हैं।

स्टॉक मार्केट और रुपये दोनों पर विदेशी संकेतों का दबाव, जानिए कैसे रहे आज के बाजार?

आज के कारोबार में शेयर बाजार के इंडेक्स और डॉलर के मुकाबले रुपया कारोबार के अंत में अपना कुछ नुकसान कवर करने में सफल रहे.

स्टॉक मार्केट और रुपये दोनों पर विदेशी संकेतों का दबाव, जानिए कैसे रहे आज के बाजार?

TV9 Bharatvarsh | Edited By: सौरभ शर्मा

Updated on: Nov 18, 2022 | 6:36 PM

घरेलू बाजारों में आज विदेशी संकेतों की दबाव देखने को मिल रहा. आज के कारोबार में स्टॉक मार्केट और रुपये दोनों में ही कमजोरी देखने को मिली है. हफ्ते के आखिरी कारोबारी सत्र में घरेलू स्टॉक मार्केट लगातार दूसरे दिन गिरावट के साथ बंद हुए. वहीं डॉलर के मुकाबले रुपये में भी आज कमजोरी देखने को मिली है. हालांकि खास बात ये है कि दोनो ही मार्केट में गिरावट सीमित ही दर्ज हुई. बाजार के एक्सपर्ट्स की माने तो फिलहाल घरेलू बाजारों को विदेशी संकेतों से दिशा मिल रही है. फिलहाल विदेशी बाजारों में अनिश्चितता है जिसका नुकसान घरेलू बाजारों को हो रहा है.

कहां पहुंचे घरेलू शेयर बाजार

ग्लोबल मार्केट में सुस्त रुख और ऑटो, फाइनेंस और पावर तथा ऊर्जा कंपनियों के शेयरों में बिकवाली से घरेलू शेयर बाजार में शुक्रवार को लगातार दूसरे दिन गिरावट दर्ज की गई. शुरुआती कारोबार में 400 से अधिक अंक लुढ़कने के बाद सेंसेक्स कुछ हद तक उबरते हुए 87.12 अंक या 0.14 प्रतिशत टूटकर 61,663.48 पर बंद हुआ. इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 36.25 अंक या 0.20 प्रतिशत की गिरावट के साथ 18,307.65 पर बंद हुआ.

सेंसेक्स की कंपनियों में महिंद्रा एंड महिंद्रा के शेयर में सबसे अधिक 2.46 प्रतिशत की गिरावट आई. मारुति, बजाज फाइनेंस, इंडसइंड बैंक, एनटीपीसी, भारती एयरटेल, आईटीसी और विप्रो के शेयर भी प्रमुख रूप से गिरावट में रहे. दूसरी तरफ, हिंदुस्तान यूनिलीवर, एशियन पेंट्स, एचसीएल टेक्नोलॉजीज, भारतीय स्टेट बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक के शेयर बढ़त के साथ बंद हुए.

जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा, घरेलू मोर्चे पर कोई ख़ास हलचल नहीं होने के कारण स्थानीय बाजार अब भविष्य की दिशा के लिए वैश्विक रुझान पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. उन्होंने कहा, विकसित देशों के बाजारों में नकारात्मक रुझान और अमेरिकी केंद्रीय बैंक की आक्रामक टिप्पणियों ने दुनिया भर में चल रहे सकारात्मक रुझानों को प्रभावित किया है.

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कैसे रहे करंसी मार्केट

वहीं घरेलू शेयर बाजार में कमजोर रुख और कच्चे तेल कीमतों में तेजी आने के बीच अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया छह पैसे टूटकर 81.70 (अस्थायी) प्रति डॉलर पर बंद हुआ. सूत्रों ने कहा कि विदेशी बाजारों में डॉलर के कमजोर होने और ताजा विदेशी निवेश बढ़ने से रुपये में गिरावट सीमित रही. आज रुपया तेजी के साथ 81.59 पर खुला. कारोबार के दौरान रुपया 81.52 के दिन के उच्चस्तर और 81.78 के निचले स्तर को छूने के बाद अंत में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले छह पैसे की गिरावट के साथ 81.70 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. रुपया बृहस्पतिवार को 81.64 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था. इस बीच, दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की कमजोरी या मजबूती को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.28 प्रतिशत घटकर 106.39 रह गया.

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