स्प्रेड कॉस्ट

फंड आधारित उधार दर या एमसीएलआर की सीमांत लागत क्या है?
उधारकर्ताओं को उच्च स्तर की पारदर्शिता और लागत प्रभावशीलता प्रदान करने के उद्देश्य से, बैंकिंग प्रणाली ने समय-समय पर विभिन्न दर-निर्धारण पद्धतियों को पेश किया है, जिसके आधार पर ऋण ब्याज दरें निर्धारित और गणना की जाती हैं। इसी उद्देश्य के साथ, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अप्रैल 2016 में MCLR दर व्यवस्था की शुरुआत की।
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कोरोना: किस मुख्यमंत्री ने सबसे अच्छा काम किया? शाह ने दिया यह जवाब
कोरोना: किस मुख्यमंत्री ने सबसे अच्छा काम किया? शाह ने दिया यह जवाब
aajtak.in
- नई दिल्ली,
- 30 मई 2020,
- अपडेटेड 9:45 PM IST
मोदी सरकार 2.0 के एक साल के कार्यकाल पूरे होने के मौके पर आजतक ने खास कार्यक्रम ई-एजेंडा आयोजित किया. ई-एजेंडा आजतक के मंच पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता ने शिरकत की. ई-एजेंडा के सत्र मोदी 2.O का एक साल में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कोरोना वायरस के मामले ज्यादातर घनी आबादी वाले क्षेत्रों में मिले हैं. कोरोना के खिलाफ हर राज्य अपने स्तर पर लड़ाई अच्छे ढ़ंग से लड़ रहा है. शाह ने नारायण राणे के महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग पर कहा वो उनकी व्यक्तिगत मांग है, बीजेपी पार्टी की नहीं. प्रवासी मजदूरों को घर भेजने में सबसे ऊपर गुजरात है. पैदल जाने वाले मजदूरों की संख्या अब कम गई है. देखें वीडियो.
स्प्रेड कॉस्ट
आरबीआई के इस आदेश से लोन लेने वाले सभी ग्राहकों को होगा फायदा, इस दिन से लागू होगा नियम
नई दिल्ली। आरबीआई ने नया लोन लेने वाले अपने ग्राहकों को बड़ा तोहफा दिया है। केंद्रीय बैंक ने निर्देश दिया है कि सभी बैंक रीपो रेट में कटौती का सीधा फायदा ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए कर्ज को रीपो लिंक्ड लेंडिंग रेट (RLLR) से जोड़ें, जो 1 अक्टूबर से लागू होगा। हालांकि इसका तुरंत फायदा नया लोन लेने वालों को मिलेगा, मौजूदा ग्राहकों को नई दर का फायदा मिलने में थोड़ा समय लगेगा क्योंकि इसके लिए लोन कन्वर्जन चार्ज देना होगा और साथ ही कन्सेंट फॉर्म भरना होगा।
रीपो लिंक्ड लेंडिंग रेट (RLLR) से बेहतर ट्रांसमिशन होगा और पारदर्शिता बढ़ना तय है। SBI, बैंक ऑफ बड़ौदा, कॉरपोरेशन बैंक, कैनरा बैंक आदि द्वारा अब तक घोषित RLLR बेस्ड होम लोन से यह बात साफ भी हो रही है। उदाहरण के लिए रीपो रेट में 35 बेसिस पॉइंट्स की कमी के बाद एसबीआई ने RLLR बेस्ड होम लोन रेट में भी इतनी ही कमी की। 8.4% के इसके मिनिमम रेट से यह घटाकर एसबीआई के नए और मौजूदा, दोनों बॉरोअर्स के लिए 8.05 प्रतिशत की गई, लेकिन कई तरह के चार्जेस के कारण मौजूदा ग्राहकों को देर से फायदा मिल सकेगा।
मौजूदा ग्राहकों पर लोन का आधार शिफ्ट करने पर लगेंगे कई चार्ज
आपको अपफ्रंट कन्वर्जन फीस का असर शामिल करते हुए ब्याज भुगतान में होने वाली बचत की गणना करनी होगी। उदाहरण के लिए, एसबीआई ने स्कीम लॉन्च करते समय बकाया लोन अमाउंट पर 0.25 प्रतिशत का कन्वर्जन चार्ज लगाने की घोषणा की थी। इसी तरह कॉरपोरेशन बैंक का कन्वर्जन चार्ज 0.20 पर्सेंट है, जो लोन की बकाया राशि पर लागू होगा। हालांकि अगर आप दूसरे बैंक के पास जाना चाहते हों तो प्रोसेसिंग, वैल्यूएशन और लीगल फीस जैसे दूसरे चार्ज भी आपको देने होंगे।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि आपके अपने बैंक के बाद आपको अन्य बैंकों के रीपो रेट लिंक्ड होम लोन आने तक इंतजार करना चाहिए और उसके बाद विकल्प खंगालें। ऐसा करने से हो सकता है कि दूसरे बैंक के पास शिफ्ट करने में होने वाली परेशानी और लागत से बचा जा सकेगा। जब आपके पास पर्याप्त विकल्प हों तो शिफ्ट करने से पहले होमवर्क कर लें क्योंकि इसमें लागत का मसला भी है।
बैंकों को जिन बाहरी मानकों से अपने ऋण की ब्याज दरों को जोड़ना होगा उनमें रेपो, तीन या छह महीने के ट्रेजरी बिल पर प्रतिफल या फाइनेंशियल बेंचमार्क्स इंडिया प्राइवेट लि. (एफबीआईएल) द्वारा प्रकाशित कोई अन्य मानक हो सकता है। केंद्रीय बैंक ने कहा है कि बाहरी मानक आधारित ब्याज दर को तीन महीने में कम से कम एक बार नए सिरे से तय किया जाना जरूरी होगा।
भारतीय स्टेट बैंक अपने कुछ ऋणों को रेपो से जोड़ने वाला पहला बैंक है। बाद में कई और बैंकों स्प्रेड कॉस्ट ने भी अपने ऋण को रेपो या किसी अन्य बाहरी मानक से जोड़ा है। अगस्त, 2017 में रिजर्व बैंक ने एमसीएलआर प्रणाली की समीक्षा को आंतरिक अध्ययन समूह (आईएसजी) का गठन किया था। आईएसजी ने ऋणों को बाहरी मानक से जोड़ने की सिफारिश की थी।
RLLR पर स्प्रेड जितना कम, उतना कम ब्याज
RLLR पर एसबीआई का स्प्रेड 40-110 बेसिस पॉइंट्स का है। यह रिस्क स्कोर और लोन अमाउंट पर निर्भर करता है। एक्सपर्ट्स का कहना है, 'RLLR पर स्प्रेड जितना कम होगा, बॉरोअर के लिए इंटरेस्ट कॉस्ट उतनी ही कम होगी।' अगर शुरुआत में रेट कम लगे तो भी प्रोसेस शुरू हो जाने पर कई फैक्टर्स फाइनल रेट को ऊंचा कर सकते हैं।' मॉर्गेजवर्ल्ड के फाउंडर विपुल पटेल ने कहा, 'इंटरेस्ट रेट पर लोन टु वैल्यू रेशियो, बॉरोअर के क्रेडिट स्कोर, उसके पास मौजूदा मकानों की संख्या जैसे कई कारकों का असर पड़ता है।
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मनी मार्केट फंड: आखिर क्यों इसमें निवेश करना चाहिए और कैसे मिलता है यहां स्प्रेड कॉस्ट अच्छा रिटर्न, एक्सपर्ट से जानें पूरी जानकारी
मनी मार्केट फंड अन्य सभी डेट योजनाओ में यह घोषित लक्ष्य रखते हैं कि वे प्राथमिक रूप से मनी मार्केट साधनों में निवेश करेंगे. फंड मैनेजर 1 साल तक की परिपक्वता अवधि वाले साधनों में निवेश का लचीलापन रखते हैं, यह प्रचलित बाजार दर और क्रेडिट स्प्रेड के माहौल पर निर्भर करता है.
TV9 Bharatvarsh | Edited By: आशुतोष वर्मा
Updated on: Jul 31, 2021 | 2:25 PM
मनी मार्केट भी वित्तीय बाजार का ही एक हिस्सा होता है जो बहुत शॉर्ट टर्म के निश्चित आय वाले साधनों को डील करता है. मनी मार्केट साधनों की परिपक्वता अवधि एक साल से कम होती है. मनी मार्केट साधनों में ओवरनाइट सिक्यूरिटीज (ऐसी प्रतिभूतियां जो एक रात में ही परिपक्व हो जाती हैं) शामिल होती हैं, जैसे कि ट्राई पार्टी रेपोज, कॉमर्शियल पेपर्स (CPs), सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट्स, ट्रेजरी बिल्स आदि. मनी मार्केट साधनों को सरकार (ट्रेजरी बिल), कंपनियां (CPs)और वित्तीय संस्थाएं जारी करती हैं.
मनी मार्केट फंड अन्य सभी डेट योजनाओ में यह घोषित लक्ष्य रखते हैं कि वे प्राथमिक रूप से मनी मार्केट साधनों में निवेश करेंगे. फंड मैनेजर 1 साल तक की परिपक्वता अवधि वाले साधनों में निवेश का लचीलापन रखते हैं, स्प्रेड कॉस्ट यह प्रचलित बाजार दर और क्रेडिट स्प्रेड के माहौल पर निर्भर करता है. अब चूंकि ये साधन 1 साल तक की परिपक्वता वाले साधनों में निवेश करते हैं, इसलिए स्प्रेड कॉस्ट आपको इन फंडों के लिए न्यूनतम एक साल की निवेश अवधि रखनी चाहिए.
मनी मार्केट साधनों में निवेश करने वाले म्यूचुअल फंड
सभी डेट म्यूचुअल फंड मनी मार्केट साधनों में निवेश करते हैं, लेकिन निम्न श्रेणी के डेट म्यूचुअल फंड प्राथमिक रूप से मनी मार्केट साधनों में निवेश करते हैं.
ओवरनाइट फंड: ये फंड ऐसे साधनों में निवेश करते हैं जो कि एक रात भर में परिपक्व हो जाते हैं
लिक्विड फंड: लिक्विड फंड ऐसे साधनों में निवेश करते हैं जो कि 91 दिन से कम में परिपक्व हो जाते हैं
अल्ट्रा-शॉर्ट ड्यूरेशन फंड: ये फंड ऐसे साधनों में निवेश करते हैं जिससे उनके पोर्टफोलियो की अवधि 3 से 6 महीने रहती है
मनी मार्केट फंड: ये फंड ऐसे साधनों में निवेश करते हैं जिनकी परिपक्वता अवधि 1 साल तक होती है.
मनी मार्केट फंडों में क्यों निवेश करें?
उच्च तरलता – इनमें निहित साधनों की परिपक्वता अवधि बहुत कम होती है. ये फंड आमतौर पर एग्जिट लोड चार्ज नहीं करते.
ब्याज दर से जुड़ा जोखिम कम- मनी मार्केट साधनों में लंबी अवधि के साधनों की तुलना में ब्याज दर की संवदेनशीलता (जोखिम) कम होती है.
ओवरनाइट और लिक्विड फंडों के मुकाबला ऊंचा यील्ड – मनी मार्केट फंडों का यील्ड ओवरनाइट और लिक्विड फंडों के मुकाबले ज्यादा होता है.
मौजूदा हालत में शॉर्ट टर्म निवेश के लिए उपयुक्त- कमोडिटी की कीमतों में अनिश्चितता की वजह से महंगाई की दिशा अनिश्चित ही रहती है. इसलिए लांग टर्म के यील्ड आगे और सख्त हो सकते हैं. लेकिन 1 दिन से 1 साल के भीतर के यील्ड तुलनात्मक रूप से कम जोखिम वाले और कम स्थायित्व वाले होते हैं.
मनी मार्केट फंड और डेट श्रेणी के अन्य फंडों के प्रदर्शन की तुलना
नीचे दिए गए चार्ट यह दर्शाते हैं कि मनी मार्केट फंडों की तुलना में अन्य लोकप्रिय फंडों की श्रेणियों में पिछले 5 साल में सालाना औसत रिटर्न कितना मिला है; इस दौरान हमने अलग-अलग ब्याज दरों (बढ़ते और घटते दोनों) का माहौल देखा है. मनी मार्केट फंड पिछले एक साल की निवेश अवधि के दौरान सबसे ज्यादा स्थायी प्रदर्शन वाले रहे हैं. कम अवधि वाले फंडों जैसे अन्य डेट श्रेणियों की तुलना में मनी मार्केट फंडों में उतार-चढ़ाव भी कम होता है.
किसी श्रेणी के औसत रिटर्न को हासिल करने के लिए विशिष्ट श्रेणियों में सभी फंडों के औसत सालाना रिटर्न देखा गया. साल 2021 का रिटर्न 20 जुलाई तक का है. ध्यान रहे कि औसत रिटर्न किसी म्यूचुअल फंड स्प्रेड कॉस्ट की श्रेणियों का रिटर्न है और किसी भी तरह से यह किसी एक म्यूचुअल फंड योजना के रिटर्न का संकेत नहीं देता.
एसेट के आवंटन में मनी मार्केट फंड की भूमिका
अपने फिक्स्ड इनकम वाले साधनों की विविधता के लिए आपको विभिन्न पोर्टफोलियो के सभी तरह के डेट फंडों में विवेकपूर्ण तरीके से एसेट आवंटन करना होगा. अलग-अलग अवधि में आवंटन आपके जोखिम प्रोफाइल और वित्तीय लक्ष्य पर निर्भर करेगा-शॉर्ट टर्म, मीडियम टर्म और लॉन्ग टर्म. मनी मार्केट फंड शॉर्ट टर्म के वित्तीय लक्ष्यों के लिए स्प्रेड कॉस्ट उपयुक्त होते हैं जैसे 1 या 2 साल की अवधि.
कम जोखिम चाहने वाले निवेशक भी लंबी निवेश अवधि के साथ ऐसे फंडों में निवेश कर सकते हैं. निवेशक किसी मनी मार्केट फंड में सिस्टमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) के द्वारा भी निवेश कर सकते हैं. एसआईपी के द्वारा निवेश करने से आपको अपनी खरीद मूल्य को औसत स्प्रेड कॉस्ट करने (रूपी कॉस्ट एवरेजिंग) के लिए एनएवी में उतार-चढ़ाव का फायदा भी मिलता है.
मनी मार्केट फंड में निवेश करने से पहले इन बातों पर करें गौर
- आपको हमेशा अपनी जोखिम ले सकने की क्षमता और वित्तीय जरूरतों के लिहाज से निवेश करना चाहिए.
- मनी मार्केट फंड ऐसे निवेशकों के लिए उपयुक्त हैं जो थोड़ा कम जोखिम चाहते हैं
- मनी मार्केट फंड में निवेश करते समय निवेशकों को रिटर्न के बारे में तार्किक उम्मीदें ही रखनी चाहिए.
वैसे तो ये फंड तुलनात्मक रूप से ब्याज दरों की कम जोखिम वाले होते हैं, लेकिन ब्याज दर की हालत के हिसाब से कुछ उतार-चढ़ाव हो सकता है. निवेशकों को किसी योजना की अवधि प्रोफाइल को देखना चाहिए और अपनी जोखिम लेने की क्षमता के आधार पर निवेश करना चाहिए.
मनी मार्केट फंड में क्रेडिट का जोखिम हो सकता है. निवेशकों को निवेश करने से पहले उस योजना की क्रेडिट क्वालिटी पर गौर करना चाहिए. मनी मार्केट साधनों की रेटिंग A1 या A2 होती है और आमतौर पर ये कम क्रेडिट जोखिम वाले होते हैं. निवेशकों को मनी मार्केट फंड निवेश करने के लिए कम से कम 1 साल की तय निवेश अवधि रखनी चाहिए.
इस लेख के लेखक मिरे एसेट इनवेस्टमेंट मैनेजर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड हेड- प्रोडक्ट, मार्केटिंग एवं कम्युनिकेशंस, वैभाव शाह हैं.
अब नहीं मिलेगा सस्ता लोन, बैंकों ने डाला यह रोड़ा
आरबीआई ने 7 फरवरी को आई मॉनेटरी पॉलिसी में कहा था कि बैंक अप्रैल 2018 से बेस रेट कस्टमर को सस्ते कर्ज का फायदा दें. यानी उनके लोन एमसीएलआर से लिंक कर दिए जाएं.
आरबीआई ने 7 फरवरी को आई मॉनेटरी पॉलिसी में कहा था कि बैंक अप्रैल 2018 से बेस रेट कस्टमर को सस्ते कर्ज का फायदा दें. यानी उनके लोन एमसीएलआर से स्प्रेड कॉस्ट लिंक कर दिए जाएं.
- News18Hindi
- Last Updated : February 19, 2018, 12:44 IST
बैंकों ने कस्टमर्स को अब सस्ता लोन देने पर रोक लगाने का फैसला किया है. आरबीआई को बैंकों ने कहा है कि बिना अहम बदलाव किए बेस रेट कस्टमर को एमसीएलआर का फायदा नहीं दिया जा सकता है. इसके लिए बैंकों ने आरबीआई से कहा है कि अप्रैल 2019 के पहले कोई कदम न उठाया जाए.
लोन एमसीएलआर से लिंक कर दिए जाए
जबकि आरबीआई ने 7 फरवरी को आई मॉनेटरी पॉलिसी में कहा था कि बैंक अप्रैल 2018 से बेस रेट कस्टमर को सस्ते कर्ज का फायदा दें. यानी उनके लोन एमसीएलआर से लिंक कर दिए जाएं. अभी लोन देने के सिस्टम में एमसीएलआर (मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट) का मॉडल अपनाया जा रहा है. जबकि अप्रैल 2016 से पहले बैंक बेस रेट के आधार पर कस्टमर को लोन देते थे.
आरबीआई ने ये क्या कहा था
> पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के समय कर्ज देने के लिए बेस रेट की जगह एमसीएलआर फॉर्मूला लाया गया था. इसको लाने के पीछे तर्क यह था कि बेस रेट पर कर्ज सस्ता होने का फायदा तुरंत कस्टमर को नहीं मिलता है.
> आरबीआई की प्रॉब्लम यह है कि अभी बैंकों के कस्टमर का बड़ा हिस्सा बेस रेट पर ही लोन ले रखा है. जिसकी वजह से एमएसएलआर में कटौती के बाद भी सस्ते कर्ज का फायदा नहीं मिल रहा है.
> अभी बैंकों द्वारा दिए गए कुल लोन में 60 फीसदी से ज्यादा कर्ज बेस रेट पर है. इसी को देखते हुए आरबीआई ने एक वर्किंग ग्रुप का गठन किया है.
बैंकों ने तीन प्वाइंट पर किया विरोध
> सूत्रों के अनुसार आरबीआई के सामने बैंकों ने तीन प्वाइंट पर विरोध किया है. उनका कहना है कि जब तक इन प्वाइंट्स में सुधार नहीं किया जाता है, तब तक नए सिस्टम को नहीं लागू किया जाए. ऐसे में आरबीआई को अप्रैल 2018 की जगह 2019 की डेडलाइन तय की जाय. बैंकों ने कहा है कि डिपॉजिट रेट के आधार पर लेंडिंग बेंचमार्क को सुधार किया जाए.
> बैंकों ने आरबीआई से कहा है कि अभी भारत में आइडियल इंटरेस्ट रेट स्वैप मार्केट डेवलप नहीं हो पाया है. ऐसे में पूरी इंडस्ट्री के लिए बेंचमार्क तय करते समय डिपॉजिट रेट के आधार पर फॉर्मूला तैयार किया जाए.
> इसी तरह इंटरेस्ट रेट फिक्स करने के लिए रिसेट पीरियड को भी बदला जाना चाहिए जिससे कि नए सिस्टम में वह इफेक्टिव रूप से बाजार से लिंक हो पाए. अभी होम लोन कस्टमर का लोन एक साल बाद रिसेट होता है. यानी अगर एमसीएलआर में कटौती हो स्प्रेड कॉस्ट भी जाय, तो भी कस्टमर का लोन उसके द्वारा लिए गए लोन की डेट के एक साल बाद ही तय होगा.
> इसी तरह बैंक इंटरेस्ट रेट फिक्स करते समय एमसीएलआर के साथ-साथ लोन की क्वॉलिटी के आधार पर स्प्रेड तय करते हैं. यानी अगर एसबीआई का एमसीएलआर 8.30 फीसदी है, तो वह होम लोन या स्प्रेड कॉस्ट कार सहित दूसरे लोन देते समय एक फिक्स स्प्रेड यानी अतिरिक्त इंटरेस्ट तय करता है. ऐसे में इफेक्टिव रेट 8.30 की जगह 8.5 फीसदी या कुछ और हो सकता है.
> इसको तय करने का अधिकार पूरी तरह से बैंकों के पास होना चाहिए. साथ ही अपनी सिचुएशन के आधार पर उसे घटा-बढ़ा भी सके. बैंकों के अनुसार इन तीन प्वाइंट को एड्रेस करने का बाद ही नए सिस्टम को लागू करने की डेडलाइन तय की जाय. ऐसे में इसे एक अप्रैल 2019 की डेट तय की जानी चाहिए.
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