समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार

इस फैसले को लेने के बाद वाणिज्य विभाग ने एक बयान जारी करते हुए संवाददाताओं को बताया कि, निर्यात संवर्धन परिषदों और निर्यातकों से बार-बार अनुरोध प्राप्त करने के बाद, सरकार से ऐसा करने का आग्रह करने के बाद विस्तार दिया गया.
भारत नई विदेश व्यापार नीति लाने में क्यों कर रहा है देरी?
By: ABP Live | Updated at : 27 Sep 2022 06:06 PM (IST)
केंद्र सरकार ने सोमवार यानी 26 सितंबर को इस समय लागू विदेश व्यापार नीति (2015-20) को छह महीनों के लिए आगे बढ़ाने का फैसला किया है. जिसका मतलब है कि नई विदेश व्यापार नीति (FTP) लाने में अभी 6 महीने का और समय लगेगा.
दरअसल वर्तमान में लागू विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) 2015-20, 30 सितंबर तक थी. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि इस समय सीमा के खत्म होते ही केंद्र सरकार नई विदेश व्यापार नीति लागू करेगी. लेकिन सरकार ने पुरानी नीति को ही छह महीने समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार और बढ़ा दिया है. यह 1 अक्टूबर से प्रभावी होगा.
बता दें कि सरकार ने बीते दो साल से व्यापार नीति नहीं जारी की है. पहले भी कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए मौजूदा पॉलिसी को ही बढ़ा दिया गया था और अब एक बार फिर नई व्यापार नीति को लाने की समयसीमा 6 महीने आगे बढ़ा दी गई है. इस बीच सवाल उठता है कि आखिर भारत नई विदेश व्यापार नीति लाने में देरी क्यों कर रहा है?
विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन
अमेरिकी डॉलर के बरअक्स भारतीय रुपये की विनिमय दर की बात करें तो कहा जा सकता है कि चीजें जितनी बदलती हैं, उतनी ही वे पहले जैसी बनी रहती हैं। चंद छोटे अंतरालों को छोड़ दिया जाए तो डॉलर के मुकाबले रुपये की प्रभावी वास्तविक विनिमय दर काफी हद तक अधिमूल्यित रही है। सितंबर 1949, जून 1966 और जुलाई 1991 में रुपये का क्रमश: 30.5, 57 और 19.5 फीसदी अवमूल्यन हुआ था।
सन 1949 में भारतीय रुपये का अवमूल्यन इसलिए हुआ कि दूसरे विश्वयुद्ध के बजाय पाउंड स्टर्लिंग, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ था। सन 1950 समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार के दशक से ही अक्सर घरेलू हितों को ध्यान में रखते हुए रिजर्व बैंक और भारत सरकार ने अधिमूल्यित रुपये का समर्थन किया। अभी हाल ही में अमेरिका, यूरोप, जापान और यूनाइटेड किंगडम के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों को लंबे समय तक काफी कम रखा और वास्तविक ब्याज दरें 2008 के बाद लंबे समय के लिए ऋणात्मक हो गईं।
रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा देश का विदेशी मुद्रा भंडार, जानिए भारत को कैसे होगा फायदा
देश का विदेशी मुद्रा भंडार 24 जुलाई को समाप्त सप्ताह के दौरान 4.99 अरब डॉलर बढ़कर 522.63 अरब डॉलर के रिकॉर्ड सर्वकालिक ऊंचाई पर पहुंच गया। भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों में यह जानकारी दी गई। इससे पूर्व के सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.275 अरब डॉलर बढ़कर 517.637 अरब डॉलर हो गया था।
इसलिए हुई वृद्धि
पांच जून को समाप्त सप्ताह में पहली बार देश का विदेशी मुद्रा भंडार 500 अरब डॉलर के स्तर से ऊपर गया था। उस समय यह 8.223 अरब डॉलर की जोरदार वृद्धि के साथ 501.703 अरब डॉलर हो गया था। देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होने का कारण 24 जुलाई को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा आस्तियों का बढ़ना है, जो कुल मुद्रा भंडार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
मुक्त व्यापार समझौते के मोर्चे पर भारत के लिए कई अवसर
वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के कारण सुस्त होती जा रही है। ऐसी स्थिति में विश्व व्यापार में हमारी हिस्सेदारी यदि 3-4 फीसदी भी बढ़ती है तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उत्साहजनक होगा। इसी कारण भारत ने मुक्त व्यापार समझौते अर्थात एफटीए पर अपना रुख बदला है। विश्व में अनेक क्षेत्रीय व्यापार समझौते हुए हैं। भारत ने भी 2012 के बाद श्रीलंका, बांग्लादेश, जापान, दक्षिण कोरिया इत्यादि देशों के समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। भारत में उद्योग एवं सरकार में अवधारणा बनी कि एफटीए पर पहले के रुख से भारत को लाभ नहीं मिला, बल्कि उद्योग जगत को नुकसान हुआ। यही कारण था कि भारत, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से 2019 में अलग हो गया।
आरसीईपी समझौते को लेकर भारत की आशंका थी कि शुल्क मुक्त चीनी सामान से घरेलू बाजार भर जाएगा। हालांकि आरसीईपी से अलग होने के बावजूद चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा बीते तीन सालों से बढ़ता ही जा रहा है। यही कारण समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार है कि भारत ने एफटीए को लेकर एक अंतराल के बाद अपना रुख बदला है। संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए हो चुका है। इस क्रम में ब्रिटेन, कनाडा और यूरोपीय यूनियन से वार्ता विभिन्न चरणों में जारी है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार ब्रिटेन के साथ एफटीए वार्ता जल्द पूरी होने वाली है।
भारत के व्यापार घाटे में करीब 23 फीसदी का उछाल, जानिए क्या है इसके मायने
बीते सितंबर महीने में भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 22.59 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले साल के इसी महीने में 2.96 अरब डॉलर था। वहीं, आयात और निर्यात में भी तेजी आई है। बहरहाल, आइए जान लेते हैं कि व्यापार घाटा बढ़ने के क्या मायने हैं।
क्या हैं इसके मायने: व्यापार घाटा बढ़ने का मतलब ये हुआ कि सितंबर महीने में भारत ने निर्यात के मुकाबले आयात ज्यादा किए हैं। यही वजह है कि व्यापार घाटा बढ़ गया है। लंबे समय तक व्यापार घाटा बढ़ते रहना, इकोनॉमी के लिए अच्छी खबर नहीं होती है। इससे देश को विदेशी मुद्रा भंडार ज्यादा खर्च करना पड़ता है। दरअसल, निर्यात के जरिये विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है जबकि आयात की स्थिति में इसके उलट होता है। आयात में विदेशी मुद्रा भंडार खर्च होते हैं।