तरलता निर्धारण

interest is the reward given to people for surrendering their liquidity preference.
वैधानिक तरलता अनुपात (एस.एल.आर.) की वर्तमान दर क्या है (अप्रैल 2019)?
The Canara Bank is soon expected to release the official notification for the Canara Bank PO 2022. A total number of 800 vacancies were released in the previous recruitment cycle for Canara Bank PO. This year, it is expected that the bank will release the same or more than the previous cycle's vacancies. The selection of the candidates for the post of Clerk depends on two stages - Online Exam and Group Discussion & Interview. With a decent pay scale of Rs.23,700 to Rs. 42,020, it is a golden opportunity for aspirants who wants to work in the banking sector. Check the Canara Bank PO Eligibility Criteria here.तरलता निर्धारण
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ब्याज का तरलता का सिद्धांत | The Principle of Liquidity of Interest In Hindi
interest is the reward given to people for surrendering their liquidity preference.
वे कहते हैं ब्याज का निर्धारण अन्य कीमतों के निर्धारण की तरह ही मांग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होता हैं। मुद्रा की मांग और पूर्ति के द्वारा ब्याज की दर निश्चित होती हैं। मुद्रा की पूर्ति समाज में उपलब्ध संपूर्ण मुद्रा की मात्रा के बराबर होती है तथा मुद्रा की मांग तरलता की रुचि द्वारा तब होती हैं।
ब्याज की दर तरलता को इच्छा तथा मुद्रा की पूर्ति दोनों ही प्रभावित करती हैं। जब तरलता की रुचि काफी मजबूत रहती है तो ब्याज की दर ज्यादा होती हैं। तरलता की रुचि कमजोर हो जाने पर ब्याज की दर भी कमजोर हो जाती हैं। इस तरफ ब्याज उपभोग के त्याग के लिए नहीं दिया जाता।
तरलता की रुचि के मजबूत होने का मतलब यह है कि तरलता के लिए लोगों में ज्यादा आकर्षण हो और बिना ज्यादा कीमत लिए वे उस तरलता का त्याग नहीं कर सकते हैं। इसलिए इस परिस्थिति में ब्याज ज्यादा देना पड़ता है। तरलता की रुचि के कमजोर होने का अर्थ है कि तरलता के लिए लोगों में विशेष लालच नहीं है और कम ब्याज मिलने पर भी तरलता का त्याग किया जा सकता हैं। इसलिए ब्याज की दर यहां कम होती हैं। इस प्रकार से तरलता की रुचि और ब्याज की दर में सीधा संबंध होता हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि लोग अपनी आय को तरल साधन के रूप में ही रखना क्यों पसंद करते हैं। कीन्स ने इन रुचियों की व्याख्या की है और इसके तरलता निर्धारण लिए तीन कारण बताए हैं –
- Transaction Motive – लेन- देन की प्रवृति से मनुष्य की उस प्रवृत्ति का बोध तरलता निर्धारण होता है जिस प्रवृत्ति से वे अपने पास सदैव ही मुद्रा को दैनिक क्रय- विक्रय के लिए रखना चाहते हैं। किसी भी व्यक्ति अथवा व्यापारिक संस्था की आय और खर्च का सहज ही संतुलन अल्पकाल में नहीं होता । उसकी आय और व्यय के बीच जितना व्यक्तिक्रम रहता हैं। उसके अनुपात में ही उसके पास नगद मुद्रा रखने की आवश्यकता होती हैं।
इस नगद मुद्रा को रखने का औसतन परिणाम व्यक्ति की आमदनी तथा अदायमी पर निर्भर करता है और मुद्रा की संपूर्ण राशि की आवश्यकता किसी भी आर्थिक क्षेत्र में लेन-देन के लिए उस दो की राष्ट्रीय आय, रोजगार तथा सामान्य मूल्य स्तर के आधार पर निश्चित होती है।
- Precautionary Motive – प्राय: व्यक्ति अथवा फर्म भविष्य की अव्यक्त परिस्थितियों के सामना करने के लिए भी नगद मुद्रा रखा करते हैं जिससे उनकी समय विशेष की हानि प्रभावहीन बन सके अथवा वे एक वर्तमान अव्यवस्था से उत्पन्न दूसरी अव्यवस्था का सामना कर सकें।
जैसी बीमारी से आय घट सकती है और व्यय बढ़ सकता हैं। ऐसी परिस्थिति में दूसरे से कर्ज लेने की आवश्यकता किसी भी क्षण आ सकती है ताकि वह अगले परिस्थिति से मुकाबला कर सके। मुद्रा रखने की यह प्रवृत्ति प्रत्येक व्यक्ति या फर्म में अलग-अलग होती है। इस भिन्नता का कारण उनकी प्रवृत्ति, व्यापार, आर्थिक शक्ति तथा साख का क्षेत्र आदि हो सकते हैं।
- Speculative Motive – लोग सट्टेबाजी के लिए भी मुद्रा संचय करते हैं। कीन्स ने इसकी परिभाषा कुछ इस प्रकार से दी हैं –
कीन्स के अनुसार दो कारणों के लिए मुद्रा की मांग का प्रभाव सूद की दर पर प्रत्यक्ष रुप से नहीं पड़ता । कारण यह हैं कि पहले दो कारणों में मुद्रा प्रायः स्थायी रहती है तथा इसमें कम परिवर्तन होने की संभावना रहती हैं। अतः सूद की दर के निर्धारण पर सट्टेबाजी की प्रवृत्ति का ही मुख्यतः प्रभाव पड़ता है क्योंकि सट्टेबाजी की प्रवृत्ति ऋणदाताओं की मनोवैज्ञानिक स्थिति पर निर्भर करती हैं। इस प्रकार सूद की दर में परिवर्तन का यही प्रधान और उचित कारण जान पड़ता हैं।
तरलता निर्धारण
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ब्याज दर निर्धारित की जाती है .
निविष्ट पूंजी पर प्रतिफल की दर द्वारा केंद्र सरकार द्वारा तरलता अधिमान द्वारा वाणिज्यिक बैंकों द्वारा
Solution : ब्याज के तरलता अधिमान सिद्धांत के अनुसार, ब्याज दर का निर्धारण तरलता अधिमान (Liquidity Preference) तथा मुद्रा की पूर्ति पर निर्भर करता है।
ब्याज का तरलता का सिद्धांत | The Principle of Liquidity of Interest In Hindi
interest is the reward given to people for surrendering their liquidity preference.
वे कहते हैं ब्याज का निर्धारण अन्य कीमतों के निर्धारण की तरह ही मांग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होता हैं। मुद्रा की मांग और पूर्ति के द्वारा ब्याज की दर निश्चित होती हैं। मुद्रा की पूर्ति समाज में उपलब्ध संपूर्ण मुद्रा की मात्रा के बराबर होती है तथा मुद्रा की मांग तरलता की रुचि द्वारा तब होती हैं।
ब्याज की दर तरलता को इच्छा तथा मुद्रा की पूर्ति दोनों ही प्रभावित करती हैं। जब तरलता की रुचि काफी मजबूत रहती है तो ब्याज की दर ज्यादा होती हैं। तरलता की रुचि कमजोर हो जाने पर ब्याज की दर भी कमजोर हो जाती हैं। इस तरफ ब्याज उपभोग के त्याग के लिए नहीं दिया जाता।
तरलता की रुचि के मजबूत होने का मतलब यह है कि तरलता के लिए लोगों में ज्यादा आकर्षण हो और बिना ज्यादा कीमत लिए वे उस तरलता का त्याग नहीं कर सकते हैं। इसलिए इस परिस्थिति में ब्याज ज्यादा देना पड़ता है। तरलता की रुचि के कमजोर होने का अर्थ है कि तरलता के लिए लोगों में विशेष लालच नहीं है और कम ब्याज मिलने पर भी तरलता का त्याग किया जा सकता हैं। इसलिए ब्याज की दर यहां कम होती हैं। इस प्रकार से तरलता की रुचि और ब्याज की दर में सीधा संबंध होता हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि लोग अपनी आय को तरल साधन के रूप में ही रखना क्यों पसंद करते हैं। कीन्स ने इन रुचियों की व्याख्या की है और इसके लिए तीन कारण बताए हैं –
- Transaction Motive – लेन- देन की प्रवृति से मनुष्य की उस प्रवृत्ति का बोध होता है जिस प्रवृत्ति से वे अपने पास सदैव ही तरलता निर्धारण मुद्रा को दैनिक क्रय- विक्रय के लिए रखना चाहते हैं। किसी भी व्यक्ति अथवा व्यापारिक संस्था की आय और खर्च का सहज ही संतुलन अल्पकाल में नहीं होता । उसकी आय और व्यय के बीच जितना व्यक्तिक्रम रहता हैं। उसके अनुपात में ही उसके पास नगद मुद्रा रखने की आवश्यकता होती हैं।
इस नगद मुद्रा को रखने का औसतन परिणाम व्यक्ति की आमदनी तथा अदायमी पर निर्भर करता है और मुद्रा की संपूर्ण राशि की आवश्यकता किसी भी आर्थिक क्षेत्र में लेन-देन के लिए उस दो की राष्ट्रीय आय, रोजगार तथा सामान्य मूल्य स्तर के आधार पर निश्चित होती है।
- Precautionary Motive – प्राय: व्यक्ति अथवा फर्म भविष्य की अव्यक्त परिस्थितियों के सामना करने के लिए भी नगद मुद्रा रखा करते हैं जिससे उनकी समय विशेष की हानि प्रभावहीन बन सके अथवा वे एक वर्तमान अव्यवस्था से उत्पन्न दूसरी अव्यवस्था का सामना कर सकें।
जैसी बीमारी से आय घट सकती है और व्यय बढ़ सकता हैं। ऐसी परिस्थिति में दूसरे से कर्ज लेने की आवश्यकता किसी भी क्षण आ सकती है ताकि वह अगले परिस्थिति से मुकाबला कर सके। मुद्रा रखने की यह प्रवृत्ति प्रत्येक व्यक्ति या फर्म में अलग-अलग होती है। इस भिन्नता का कारण उनकी प्रवृत्ति, व्यापार, आर्थिक शक्ति तथा साख का क्षेत्र आदि हो सकते हैं।
- Speculative Motive – लोग सट्टेबाजी के लिए भी मुद्रा संचय करते हैं। कीन्स ने इसकी परिभाषा कुछ इस प्रकार से दी हैं –
कीन्स के अनुसार दो कारणों के लिए मुद्रा की मांग का प्रभाव सूद की दर पर प्रत्यक्ष रुप से नहीं पड़ता । कारण यह हैं कि पहले दो कारणों में मुद्रा प्रायः स्थायी रहती है तथा इसमें कम परिवर्तन होने की संभावना रहती हैं। अतः सूद की दर के निर्धारण पर सट्टेबाजी की प्रवृत्ति का ही मुख्यतः प्रभाव पड़ता है क्योंकि सट्टेबाजी की प्रवृत्ति ऋणदाताओं की मनोवैज्ञानिक स्थिति पर निर्भर करती हैं। इस प्रकार सूद की दर में परिवर्तन का यही प्रधान और उचित कारण जान पड़ता हैं।
वैश्विक बाजारों को ब्याज दर बढ़ोतरी का जोखिम संभव’
वैश्विक वित्तीय बाजारों की निगाहें अब अगले सप्ताह दरों के संबंध में अमेरिकी फेडरल रिजर्व (फेड) की होने वाली बैठक के नतीजों पर टिकी हुई हैं। बड़ौदा बीएनपी पारिबा म्युचुअल फंड के मुख्य निवेश अधिकारी (इक्विटी) संजय चावला ने पुनीत वाधवा को दिए साक्षात्कार में कहा कि भारतीय बाजार वित्त वर्ष 23 में 10 से 12 प्रतिशत की आय वृद्धि की तैयारी कर रहे हैं। आय की मौजूदा रफ्तार और मौजूदा आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह स्तर हासिल किया जा सकता है। संपादित अंश:
यह सुधार नतीजों के सीजन के साथ हुआ है, जहां कॉरपोरेट क्षेत्र की ज्यादातर रिपोर्ट सकारात्मक रहीं, विशेष रूप से घरेलू मांग पर निर्भर रहने वाली। इससे बाजार को फिर से इस बात का भरोसा मिला है कि कि हालांकि वैश्विक अनिश्चितताएं हैं, लेकिन मांग में तीव्र सुधार देखा गया है। कुछ वैश्विक
अनिश्चितताएं भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकती हैं। चीन+1 रणनीति के अलावा, यूरोजोन में चल रही उथल-पुथल की वजह से कई निर्माण कंपनियां पूर्वी यूरोप में वैकल्पिक विनिर्माण केंद्रों पर विचार कर रही हैं। इसने हमें निवेश का बड़ा मौका प्रदान किया और हमारे पोर्टफोलियो को दोबारा से व्यवस्थित किया है।
क्या आपको लगता है कि बाजारों के लिए अगली बड़ी चिंता तब होगी, जब फेड अपनी बैलेंस शीट को स्थिर करना शुरू कर देगा, जिससे तरलता में कमी शुरू हो सकती है?
अमेरिका का एम2/जीडीपी अनुपात ऊंचा बना हुआ है, जो यह दर्शाता है कि तरलता को सामान्य होने में लंबा समय लगेगा। बैलेंस शीट को तेजी से स्थिर करने के मुकाबले ब्याज दर संबंधी कार्रवाई अगला कदम हो सकता है, जो प्रतिफल पथ में बदलाव करते हुए अल्पकालिक दरों को बढ़ा सकता है। प्रमुख केंद्रीय बैंकों में दर संबंधी कदम वैश्विक बाजारों के लिए अधिक जोखिम पैदा हो सकता है तथा तरलता में कमी की अपेक्षा इसके परिणामस्वरूप वैश्विक वृद्धि पर असर पड़ सकता है। अगर वास्तव में ही फेड द्वारा तरलता में कमी की योजना बनाई जाती है, तो समस्या बढ़ सकती है।
इक्विटी से जुड़ी योजनाओं में प्रवाह कम हो रहा है। क्या यह बात आपको फंड प्रबंधक के रूप में दिक्कत तरलता निर्धारण देती है कि आपकी निवेश वाली राशि में कमी आ रही है?
पहले से उलट जब खुदरा निवेशक उस वक्त घबरा जाते थे, जब बाजार में गिरावट होती था, कोविड-19 के दौरान हमने खुदरा निवेशकों को निवेश में बने और परिसंपत्ति वर्ग के रूप में इक्विटी आवंटन में वृद्धि देखी थी। एसआईपी (सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) बुक लगातार बढ़ रही है। एमएफ निवेश सहित वित्तीय परिसंपत्तियां अन्य विकासशील देशों की तुलना में भारतीय परिवारों की वित्तीय बचत के लिहाज से अपेक्षाकृत कम अनुपात में बनी हुई हैं। सामाजिक सुरक्षा के बिना और एकल परिवारों की वजह से वित्तीय बचत ही मुद्रास्फीति को मात देने का एकमात्र तरीका होगा। इसलिए हम निकासी के बावजूद प्रवाह के संबंध में आशावादी बने हुए हैं।
हम प्रीमियम और मास सेगमेंट के बीच मूल्य निर्धारण परिदृश्य को अलग-अलग तरीके से काम करता देख रहे हैं। बेहतर मूल्य निर्धारण शक्ति की वजह से प्रीमियम सेगमेंट कीमत बढ़ोतरी को अग्रसरित करने में सक्षम रहा है और शहरी मांग में जोरदार सुधार हुआ है। हालांकि जहां तक मूल्य का सवाल है, तो मास सेगमेंट अब भी प्रयास में है।