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एक सीमा आदेश क्या है

एक सीमा आदेश क्या है

नई दिल्ल । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बिल्डरों को (To Builders) बड़ा झटका देते हुए (Giving A Big Blow) 8 प्रतिशत ब्याज दर की सीमा के आदेश (Order of 8 Percent Interest Rate Limit) को वापस ले लिया (Has Withdrawn) । प्रधान न्यायाधीश यू.यू. ललित ने जून 2020 के उस आदेश को वापस ले लिया, जिसमें नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बिल्डरों द्वारा भूमि की कीमत के भुगतान एक सीमा आदेश क्या है में देरी पर 15-23 प्रतिशत की ब्याज दर को 8 प्रतिशत पर सीमित करने का आदेश दिया गया था।

केंद्रीय सूचना आयोग

क्या द्वितीय अपील दाखिल करने के लिए कोई समय सीमा है?

हाँ, प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश के विरुद्ध एक द्वितीय अपील, उस तिथि से 90 (नब्बे) दिन के अन्दर दाखिल किया जा सकता है, जिस तिथि को प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा आदेश दिया जाना चाहिए था या वह वास्तव में प्राप्त हुआ था।

सुरक्षा के आदेशों के बारे में आपको क्या जानना चाहिए

आप फैमिली कोर्ट से सुरक्षा का आदेश मांग सकते हैं यदि:

  • आप कानूनी रूप से विवाहित हैं या दुर्व्यवहार करने वाले से तलाकशुदा हैं;
  • आप गाली देने वाले से खून से जुड़े हुए हैं;
  • दुर्व्यवहार करने वाले के साथ आपका एक एक सीमा आदेश क्या है सामान्य बच्चा है;
  • आप दुर्व्यवहार करने वाले के साथ अंतरंग संबंध में हैं या रहे हैं (इसमें डेटिंग, साथ रहना और समान-लिंग संबंध शामिल हैं); और/या,
  • आप और गाली देने वाला एक ही घर के सदस्य हैं।

संरक्षण के आदेश के एक सीमा आदेश क्या है साथ आपराधिक मामला लंबित होने पर भी आप फैमिली कोर्ट से सुरक्षा के आदेश की मांग कर सकते हैं।

यदि शिकायत की गई घटना "पारिवारिक अपराध" है, तो आपको पारिवारिक न्यायालय में सुरक्षा का आदेश प्राप्त हो सकता है। इन अपराधों में शामिल हैं:

  • उच्छृंखल आचरण
  • पीछा
  • पहली या दूसरी डिग्री में उत्पीड़न
  • दूसरी या तीसरी डिग्री में खतरनाक
  • खतरे से लापरवाह
  • दूसरी या तीसरी डिग्री में हमला
  • हमले का प्रयास
  • कुछ वित्तीय अपराध

संरक्षण का आदेश क्या करेगा?

जब सुरक्षा का आदेश जारी किया जाता है, तो न्यायालय कर सकता है:

  • अपने जीवनसाथी या साथी को आपसे, आपके बच्चों, आपके घर और आपके कार्यस्थल से दूर रहने का आदेश दें;
  • अपने जीवनसाथी या साथी को आदेश दें कि वह आपको और आपके बच्चों को नुकसान पहुँचाना बंद करे;
  • अपने जीवनसाथी या साथी को आदेश दें कि वह आपसे संपर्क न करे, जिसमें तीसरे पक्ष के माध्यम से, या सोशल मीडिया के माध्यम से भी शामिल है।

यदि आपका जीवनसाथी या साथी सुरक्षा के आदेश का पालन करने में विफल रहता है तो उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है।

सुरक्षा का आदेश कितने समय तक चलता है?

फैमिली कोर्ट में सुरक्षा के अंतिम आदेश की अवधि आम तौर पर दो एक सीमा आदेश क्या है साल की होती है। अवधि को पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है यदि याचिका में आरोपित आचरण सुरक्षा के वैध आदेश का उल्लंघन करता है या अदालत गंभीर परिस्थितियों का पता लगाती है।

क्या सुरक्षा के आदेश बढ़ाए जा सकते हैं?

हां, यदि यह अभी भी आवश्यक है तो आदेश को आगे बढ़ाने के लिए आप अपने आदेश की समय सीमा समाप्त होने से पहले अदालत में आवेदन कर सकते हैं।

अस्वीकरण

इस दस्तावेज़ की जानकारी द लीगल एड सोसाइटी द्वारा केवल सूचना के उद्देश्यों के लिए तैयार की गई है और यह कानूनी सलाह नहीं है। यह जानकारी बनाने का इरादा नहीं है, और इसकी प्राप्ति एक वकील-ग्राहक संबंध नहीं बनाती है। आपको पेशेवर कानूनी सलाहकार को बनाए रखे बिना किसी भी जानकारी पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए।

आदेश 7/11 क्या है, जिसके आधार पर कोर्ट फैसला करेगा कि Gyanvapi Masjid Case में याचिका सुनवाई के योग्य है या नहीं

Gyanvapi Masjid Dispute: ज्ञानवापी मामले में आम लोगों को एक शब्द 7/11 मिला है. इसका इस्तेमाल तो सभी कर रहे हैं, लेकिन इसका मतलब क्या है. इस शब्द में क्या खास है. ये बहुत कम लोग जानते हैं. इसी पर ज्ञानवापी मामले का पूरा भविष्य टिका है. कोर्ट इसी के आधार पर फैसला करेगा कि हिंदू पक्ष की याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं.

ज्ञानवापी मस्जिद

ज्ञानवापी मस्जिद

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 26 मई 2022,
  • (Updated 26 मई 2022, 4:13 PM IST)

CPC के 7/11 पर टिका है ज्ञानवापी केस का भविष्य

इसी के आधार पर तय होगा कि याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले में आदेश देते हुए वाराणसी की जिला अदालत को कहा कि प्राथमिकता के आधार पर इस याचिका के सुनवाई योग्य होने पर फैसला करें. यानी पहले सुनवाई इस मुद्दे पर हो कि हिंदू पक्षकारों की ये याचिका सुनवाई योग्य है भी या नहीं.
इस सुनवाई का मुख्य आधार उपासना स्थल कानून के साथ सिविल प्रक्रिया संहिता में आदेश 7 नियम 11 ही है. ये आदेश मुख्यतया किसी वाद यानी याचिका को अदालत में खारिज करता है. इसकी और विस्तार में व्याख्या इस तरह की गई है. दीवानी प्रक्रिया संहिता यानी सिविल प्रोसीजर कोड CPC का आदेश 7 नियम 11 कहता है कि किसी वाद यानी मुकदमे को अदालत सुनने से अस्वीकार कर देगी, अगर इन कसौटियों पर वो दावा खरा ना उतरे.

1. जहां अर्जी में कॉज ऑफ एक्शन यानी कार्रवाई करने का कोई कारण नहीं दिखाया या बताया गया हो.
2. जहां दावा की गई राहत का कम मूल्यांकन किया गया हो. वादी, अदालत की ओर से तय समय सीमा के भीतर मूल्यांकन को सही करने के लिए निर्देश देने के बाद भी दूसरा पक्ष ऐसा करने में विफल रहे.
3. जहां दावा की गई राहत का उचित मूल्यांकन तो किया गया हो, लेकिन वाद के दस्तावेजों पर अपर्याप्त धनराशि की स्टाम्प लगी हो. अदालत की ओर से तय मोहलत के भीतर आवश्यक स्टाम्प लगाने के आदेश के बावजूद वादी ऐसा करने में विफल रहे.
4. जहां वादपत्र में दिया गया कोई बयान या प्रार्थना किसी कानून से निषिद्ध यानी सुनवाई से वर्जित प्रतीत होता हो.
5. जहां इसे डुप्लीकेट में दाखिल नहीं किया गया.
6. जहां वादी नियम 9 के प्रावधान का पालन करने में विफल रहे. यानी वादी के जरिए वाद की अपेक्षित प्रतियां दाखिल करने के अदालती आदेशों का पालन करने में विफल रहे.

मुस्लिम पक्ष का क्या है दावा-
इस मामले में मुस्लिम पक्षकार अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी वाराणसी ने कहा है कि हिंदू पक्ष की याचिका 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट के तहत सुनवाई के लिए वर्जित है. इसलिए ये CPC आदेश 7 नियम 11 के प्रावधान e के तहत आता है, जिसमें कहा गया है कि जहां वादपत्र में दिया गया कोई बयान किसी कानून द्वारा वर्जित प्रतीत होता है, उसे अदालत अस्वीकार करेगी.

हिंदू पक्ष का दावा-
हिन्दू पक्षकारों का कहना है कि वहां 15 अगस्त 1947 से पहले और बाद तक लगातार देवी श्रृंगार गौरी की पूजा अर्चना होती रही है. लिहाजा उनका वाद ऑर्डर 7 नियम 11 के प्रावधान चार की परिधि से बाहर और ऊपर है. यानी कोर्ट इस पर न केवल सुनवाई कर एक सीमा आदेश क्या है सकता है बल्कि उनके दावे के मुताबिक न्याय कर उनका अधिकार भी दिला सकता है. इसमें उपासना स्थल कानून और आर्डर सात नियम 11 और प्रावधान (d) भी प्रभावी नहीं होता.

8 प्रतिशत ब्याज दर की सीमा के आदेश को वापस लेकर बिल्डरों को बड़ा झटका दिया सुप्रीम कोर्ट ने


नई दिल्ल । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बिल्डरों को (To Builders) बड़ा झटका देते हुए (Giving A Big Blow) 8 प्रतिशत ब्याज दर की सीमा के आदेश (Order of 8 Percent Interest Rate Limit) को वापस ले लिया (Has Withdrawn) । प्रधान न्यायाधीश यू.यू. ललित ने जून 2020 के उस आदेश को वापस ले लिया, जिसमें नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बिल्डरों द्वारा भूमि की कीमत के भुगतान में देरी पर 15-23 प्रतिशत की ब्याज दर को 8 प्रतिशत पर सीमित करने का आदेश दिया गया था।

यह भी पढ़ें | सुप्रीम कोर्ट में आज का दिन ऐतिसाहिक, तीसरी बार पूर्ण महिला बेंच करेगी सुनवाई, 2 जज शामिल

सुनवाई के दौरान नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र कुमार ने शीर्ष अदालत को बताया कि भुगतान में देरी के लिए ब्याज दर को लगभग 8 प्रतिशत पर ही सीमित करने के आदेश से प्राधिकरणों को 7,500 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होगा और बिल्डरों को लाभ होगा।

अधिकारियों ने पिछले साल सितंबर में शीर्ष अदालत से अपने आदेश को वापस लेने का आग्रह किया था। महामारी के बीच जून 2020 में शीर्ष अदालत ने ब्याज को सीमित रखने के पीछे आवास परियोजनाओं को गति देने की आवश्यकता का हवाला दिया था, लेकिन अधिकांश परियोजनाएं अब भी अधूरी हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि हम निर्देश देते हैं कि बकाया प्रीमियम और अन्य देय राशि पर ब्याज की दर 8 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से वसूल की जाए और नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों के अधिकारियों को पुनर्भुगतान अनुसूची का पुनर्गठन करने दिया जाए, ताकि राशि का भुगतान किया जा सके।

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