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“अंतर्राष्ट्रीय कोवडि-19 महामारी की स्थिति पर विश्लेषण रिपोर्ट” — अमेरिका का महामारी की रोकथाम में सबसे खराब प्रदर्शन है

सीजीटीएन थिंक टैंक ने 23 जुलाई को “अंतर्राष्ट्रीय कोरोना महामारी की स्थिति पर विश्लेषण रिपोर्ट” जारी की। रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया भर के देशों और क्षेत्रों में महामारी के प्रमुख संकेतकों जैसे कि पुष्ट मामलों की संख्या, मौतों की संख्या और टीकाकरण की संख्या में ध्रुवीकरण की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। […]

सीजीटीएन थिंक टैंक
ने 23
जुलाई को “अंतर्राष्ट्रीय कोरोना महामारी की स्थिति पर विश्लेषण रिपोर्ट”
जारी की। रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया भर के देशों और क्षेत्रों में महामारी
के प्रमुख संकेतकों जैसे कि पुष्ट मामलों की संख्या , मौतों की संख्या और टीकाकरण की संख्या में ध्रुवीकरण
की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। विभिन्न देशों की सरकारें महामारी की रोकथाम प्रक्रिया
में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। महामारी की रोकथाम के प्रदर्शन के पांच सांख्यिकीय
आयामों में , अमेरिका के तीन संकेतक
हैं जो दुनिया के सभी देशों में सबसे खराब प्रदर्शन करते हैं।

यह
रिपोर्ट जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी की वेबसाइट , अवर वर्ल्ड इन डेटा वेबसाइट और फार्मास्युटिकल टेक्नोलॉजी
वेबसाइट पर प्रकाशित सांख्यिकीय आंकड़ों पर आधारित है । इसके साथ महामारी विज्ञान अनुसंधान साहित्य और स्वास्थ्य
के क्षेत्र में प्रसिद्ध विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तावित रोकथाम और नियंत्रण उपायों से , “ पुष्ट मामलों की संख्या” , “ नई पुष्ट संख्या” , “ मृतकों की संख्या” , “ टीकाकरण संख्या” , और “समग्र महामारी नियंत्रण चक्र”
के पांच आयाम में 14 जुलाई तक 51 नमूना
देशों के महामारी रोकथाम के आंकड़ों की रैंकिंग करके वर्तमान महामारी की स्थिति और
दुनिया के देशों की रोकथाम और नियंत्रण प्रभावों को दर्शाता है।

रिपोर्ट
के मुताबिक अमेरिका सबसे गंभीर महामारी रोकथाम चुनौती का सामना कर रहा है , इसके बाद ब्राजील , भारत , ब्रिटेन , फ्रांस और अन्य देश हैं। 3.4 करोड़ से अधिक पुष्ट
मामलों और 6 लाख से अधिक मौतों के साथ अमेरिका महामारी की गंभीरता में दुनिया में पहले
स्थान पर है। जबकि न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया सबसे कम प्रभावित देश हैं।

संकेतक विश्लेषण

पर्यावरण अध्ययन में चित्र पढ़ना .

पर्यावरण अध्ययन में चित्र पढ़ना एक महत्तवपूर्ण क्रियाकलाप है। निम्नलिखित में से कौन सा/से संकेतक/संकेतकों का बच्चों में आकलन चित्र पढ़ने के द्वारा हो सकता है?
A. अवलोकन और अभिलेखन
B. अभिव्यक्‍ति
C. विश्लेषण
D. प्रयोग करना
कूट

नए संकेतक मददगार

महामारी के दौरान बहुत से विश्लेषकों और यहां तक कि नीति निर्माताओं ने भी अर्थव्यवस्था की स्थिति की संकेतक विश्लेषण बेहतर समझ के लिए गैर-परंपरागत उच्च बारंबारता (फ्रीक्वेंसी) वाले संकेतकों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। लंबी अवधि के आंकड़ों के अभाव को मद्देनजर रखते हुए तात्कालिक सकल घरेलू उत्पाद जैसे ज्यादा परंपरागत मापकों को दर्शाने वाले सूचकांकों का इन संकेतकों से निर्माण करना इस समय विज्ञान से ज्यादा एक कला है। भारतीय रिजर्व संकेतक विश्लेषण बैंक (आरबीआई) के मासिक बुलेटिन में हाल के एक शोध पत्र में उन चुनौतियों का जिक्र किया गया है, जिन पर पार पाने की जरूरत है। लेखकों ने लिखा है कि बुंडेसबैंक जैसे केंद्रीय बैंकों ने ऐसे सूचकांक बनाए हैं, जो अर्थव्यवस्था में तिमाही दर तिमाही बदलाव की दर मुहैया कराते हैं। निस्संदेह 2020 से भारत में बहुत से वाणिज्यिक एवं निवेश बैंकों ने भी आर्थिक गतिविधियों की फिर से शुरुआत और सुधार संकेतक विश्लेषण के संकेतक विकसित किए हैं क्योंकि देशव्यापी लॉकडाउन से उबरने की दर निवेशकों के लिए सबसे अहम हो गई थी।

लेखकों ने रेल माल ढुलाई, गूगल रुझान, श्रम बल भागीदारी दर जैसे उच्च बारंबारता वाले संकेतकों पर आधारित बहुत से अलग-अलग सूचकांकों का सुझाव दिया है। दो साल पहले आरबीआई के इसी पत्र में इन्हीं संकेतकों का इस्तेमाल कर ऐसा एक सूचकांक बनाया गया था। लेकिन दो साल के अनुभव से महामारी के शुरुआती महीनों के मुकाबले ज्यादा लक्षित और सटीक सूचकांक बनाना संभव हो सकता है। असल बात यह है कि ऐसे सूचकांक महामारी की अर्थव्यवस्था के बाद भी उपयोगी होंगे। सामान्य समय में भी भारतीय आंकड़ों में बहुत देरी होती है और ये प्रभावी उपयोग के लिए नीति निर्माताओं और निवेशकों को समय पर मुहैया नहीं कराए जाते हैं। इस वजह से पत्र में कहा गया है कि उनके द्वारा सुझाए गए सूचकांकों में इस्तेमाल बहुत से उच्च बारंबारता वाले संकेतक वही हैं, जिनका इस्तेमाल केंद्रीय सांख्यिकी संगठन राष्ट्रीय आय के अत्यधिक शुरुआती या आरंभिक अनुमानों में करता है।

इस तरह नीति निर्माण के आधार के रूप में उनके इस्तेमाल के कुछ ठोस उदाहरण मौजूद हैं। अब केवल उच्च बारंबारता वाले संकेतकों के एक बड़े और ज्यादा भरोसेमंद समूह की दरकार है। इन सूचकांकों में तकनीकी विकास की बदौलत शामिल एक उपयोगी नए उच्च बारंबारता संकेतक का उदाहरण तात्कालिक सकल निपटान प्रणाली एवं खुदरा भुगतानों के तहत हस्तांतरण की मात्रा है। डेटा संग्रह और प्रशासन का डिजिटलीकरण तेजी से हो रहा है, इसलिए सरकार को यह मानना चाहिए कि इस डेटा को लेकर खुलापन और इसे आरबीआई तथा बड़े विश्लेषक समुदाय के साथ साझा करना भारतीय अर्थव्यवस्था को समझने एवं संभालने में बड़ा मददगार होगा। आरबीआई को स्वाभाविक रूप से यह फैसला लेने में सावधानी की जरूरत होगी कि वह अपने निर्णयों में संकेतक विश्लेषण कच्चे माल के रूप में कैसे और किन संकेतकों का इस्तेमाल करेगा।

व्यापक बाजारों के सही फैसले लेने के लिए उनकी ज्यादा से ज्यादा सूचनाओं तक पहुंच होने के सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों कारण हैं। नए तकनीकी टूल को मद्देनजर रखते हुए इस बात की पूरी उम्मीद है कि भारतीय आर्थिक विश्लेषण में एक बड़ी कमी (आधिकारिक आंकड़े जारी करने में देरी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की सही स्थिति का पता नहीं चल पाना) को बड़ी तादाद में उच्च बारंबारता वाले संकेतकों का इस्तेमाल कर दूर किया जा सकता है। आरबीआई किसी भी समय की तात्कालिक अर्थव्यवस्था की बेहतर समझ में संकेतकों एवं सूचकांकों के नए समूहों का इस्तेमाल कर सकता है, जबकि आधिकारिक सांख्यिकी प्रणाली भी डेटा संग्रह के दायरे को बढ़ाने और उन्हें जारी करने में देरी कम करने में इस्तेमाल कर सकती है।

जीडीपी पर सरकार ने कहा- संकेतकों के विश्लेषण पर आधारित है डॉ. अरविंद सुब्रमण्यम की रिपोर्ट

सांकेतिक तस्वीर

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने समय-समय पर जीडीपी संकलन में शामिल जटिलताओं को समझाने के लिए विवरण जारी किया है.

  • News18Hindi
  • Last Updated : June 11, 2019, 22:43 IST

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने जीडीपी को लेकर अपना स्पष्टीकरण जारी किया है. इस स्पष्टीकरण में मंत्रालय ने कहा है कि डॉ. अरविंद सुब्रमण्यम का हवाला देते हुए मीडिया के एक हिस्से में रिपोर्ट सामने आई है, जो मुख्य रूप से संकेतकों के विश्लेषण पर आधारित है, जैसे कि बिजली की खपत, दोपहिया वाहनों की बिक्री, वाणिज्यिक वाहन बिक्री आदि जैसे अर्थमितीय मॉडल और संबद्ध धारणाओं का उपयोग करना. मंत्रालय द्वारा जारी जीडीपी का अनुमान स्वीकृत प्रक्रियाओं, कार्यप्रणाली और उपलब्ध आंकड़ों पर आधारित है और यह अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के योगदान को मापता है.

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने साफ किया है कि मंत्रालय की तरफ से समय-समय पर जीडीपी संकलन में शामिल जटिलताओं को समझाने के लिए विवरण जारी किया गया है. किसी भी अर्थव्यवस्था में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गणना कठिन कार्य है, जहां अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन को बेहतर ढंग से मापने के लिए कई उपाय और मैट्रिक्स विकसित किए जाते हैं. वैश्विक मानकीकरण और तुलनात्मकता के उद्देश्य से, देश में विस्तृत परामर्श के बाद संयुक्त राष्ट्र में विकसित राष्ट्रीय लेखा प्रणाली का पालन करते हैं. राष्ट्रीय खातों के लिए नेशनल अकाउंट्स 2008 (2008 एसएनए) की प्रणाली अंतरराष्ट्रीय सांख्यिकीय मानक का नवीनतम संस्करण है.

मंत्रालय के अनुसार किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मानक के लिए डेटा की बहुत अधिक आवश्यकता होती है और भारत जैसी विविध अर्थव्यवस्थाओं को एसएनए आवश्यकताओं के साथ पूरी तरह से जुड़ने से पहले प्रासंगिक डेटा स्रोतों को विकसित करने में समय लगता है. डेटा की अनुपस्थिति में, जीडीपी/जीवीए के लिए विभिन्न क्षेत्रों के योगदान का अनुमान लगाने के लिए वैकल्पिक स्रोतों या सांख्यिकीय सर्वेक्षणों का उपयोग किया जाता है. एसएनए यह भी निर्धारित करता है कि अनुमानों के आधार वर्ष को समय-समय पर संशोधित किया जा सकें ताकि आर्थिक वातावरण में बदलाव, पद्धतिगत अनुसंधान में प्रगति और उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं पर उचित रूप से कार्य किया जा सके.

अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन के साथ, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी), उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आदि जैसे बड़े आर्थिक संकेतकों के आधार वर्ष को संशोधित करना आवश्यक है, ताकि समय-समय पर यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे प्रासंगिक बने रहें और संरचनात्मक परिवर्तनों को वास्तविक रूप से प्रतिबिंबित करते रहे. इस तरह के संशोधन न केवल सेंसर और सर्वेक्षण से नए डेटा का उपयोग करते हैं, बल्कि उनमें प्रशासनिक डेटा की जानकारी भी शामिल होती है. भारत में, सकल घरेलू उत्पाद श्रृंखला का आधार वर्ष 2004-05 से 2011-12 तक संशोधित किया गया और 30 जनवरी, 2015 को एसएनए 2008 के अनुरूप स्रोतों और विधियों के अनुकूलन के बाद जारी किया गया.

भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के विशेष डेटा प्रसार मानक (एसडीडीएस) की सदस्यता ली है और अनुमान जारी करने के लिए एक एडवांस रिलीज कैलेंडर तय किया गया है. आईएमएफ ने भारतीय जीडीपी श्रृंखला में दोहरे अपस्फीति के उपयोग पर कुछ मुद्दे उठाए थे और भारत ने आईएमएफ को सूचित किया था कि मौजूदा डेटा उपलब्धता वर्तमान में भारत में इसके आवेदन की अनुमति नहीं देती है. राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (ACNAS) की सलाहकार समिति ने इस स्तर पर दोहरे अपस्फीति को अपनाने पर सहमति नहीं दी थी. इसके अलावा दोहरे अपस्फीति का उपयोग केवल कुछ देशों में किया जाता है.

विश्व बैंक के अनुसार, राष्ट्रीय खातों की सटीकता का अनुमान और तुलना का अनुमान डेटा के समय पर संशोधन पर निर्भर करता है. अलग-अलग देशों में जीडीपी की गणना संकेतक विश्लेषण अलग-अलग तरीके-मासिक त्रैमासिक या वार्षिक होती है. इसके अलावा, आईएमएफ के अनुच्छेद IV के तहत एक मिशन सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ आर्थिक विकास और नीतियों से संबंधित मुद्दों पर सालाना बातचीत करता है. जीडीपी के संकलन के लिए बैक सीरीज सहित विस्तृत कार्यप्रणाली मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है.

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संकेतक विश्लेषण

Stochastic Indicator is one of the most popular momentum based indicator for technical analysis. It is also known as divergence or leading indicator. It measures the price momentum. Stochastic Indicator is useful both in trending & range-bound/sideways market. It is based on the basic principle that momentum will slow before the price starts decreasing & vice versa. Therefore, Stochastic Indicator is also known as leading indicator. The level of 80 & 20 are overbought & oversold levels but Stochastic Indicator cannot be used on a standalone basis. Another imp point is that fast and slow Stochastic Indicator is nothing but change in संकेतक विश्लेषण settings.

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