विदेशी मुद्रा बाजार में पैसा कैसे कमाए

Multibagger Stock Tips: Rakesh Jhunjhunwala ने 9 दिन में इस स्टॉक से कमाए 640 करोड़ रुपये, क्या आपके पास है?
Share Market News: राकेश झुनझुनवाला होल्डिंग स्टॉक बुधवार को 42.05 रुपये प्रति शेयर की बढ़त के साथ खुला और सुबह के सौदों में 52-सप्ताह के नए शिखर पर चढ़ गया.
By: abp news | Updated at : 13 Oct 2021 04:20 PM (IST)
राकेश झुनझुनवाला (फाइल फोटो)
Multibagger Stock: टाटा मोटर्स का शेयर बुधवार को एनएसई पर अपने नए 52-सप्ताह के उच्च स्तर 502.90 विदेशी मुद्रा बाजार में पैसा कैसे कमाए रुपये पर चढ़ गया. राकेश झुनझुनवाला होल्डिंग स्टॉक बुधवार को 42.05 रुपये प्रति शेयर की बढ़त के साथ खुला और सुबह के सौदों में 52-सप्ताह के नए शिखर पर चढ़ गया. टाटा का शेयर पिछले एक महीने से आसमान छू रहा है क्योंकि पिछले एक महीने में यह 60 फीसदी चढ़ा है. हालाँकि, अगर हम अक्टूबर 2021 में टाटा मोटर्स के शेयर के प्रदर्शन को देखें, तो इस ऑटो स्टॉक ने राकेश झुनझुनवाला की कुल संपत्ति को केवल 9 व्यापार सत्रों में 640 करोड़ रुपये के करीब बढ़ने में मदद की है.
टाटा मोटर्स की शेयर प्राइस हिस्ट्री
पिछले 9 व्यापार सत्रों में, राकेश झुनझुनवाला का यह स्टॉक 333.35 रुपये (30 सितंबर 2021 को बंद कीमत) से बढ़कर 502.90 रुपये प्रति शेयर स्तर पर पहुंच गया है. यानि इस अवधि में 169.55 रुपये प्रति शेयर बढ़ा है. टाटा मोटर्स के शेयरों में यह तेजी इस महीने के 9 कारोबारी सत्रों में दर्ज की गई है.
राकेश झुनझुनवाला टाटा मोटर्स में होल्डिंग
अप्रैल से जून 2021 तिमाही के लिए टाटा मोटर्स के शेयरहोल्डिंग पैटर्न के अनुसार, राकेश झुनझुनवाला के पास 3,77,50,000 शेयर हैं, जो टाटा मोटर्स की कुल जारी चुकता पूंजी का 1.14 प्रतिशत है.
झुनझुनवाला ने टाटा मोटर्स से ₹640 करोड़ कैसे कमाए?
चूंकि पिछले 9 व्यापार सत्रों में टाटा मोटर्स के शेयरों में 169.55 रुपये की बढ़ोतरी हुई है और राकेश झुनझुनवाला के पास 3,77,50,000 टाटा मोटर्स के शेयर हैं तो राकेश झुनझुनवाला की कुल संपत्ति में शुद्ध वृद्धि लगभग ₹640 करोड़ ( ₹169.55 x 3,77,50,000) है.
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और कमा सकते थे झुनझुनवाला
राकेश झुनझुनवाला इस स्टॉक से और अधिक कमा सकते थे यदि उन्होंने जून 2021 की तिमाही में टाटा मोटर्स में अपनी हिस्सेदारी घटाई न होती. बिग बुल ने मार्च 2021 तिमाही में अपने शेयरों को 1.29 फीसदी से घटाकर जून 2021 तिमाही में 1.14 फीसदी कर टाटा मोटर्स में अपनी हिस्सेदारी घटा दी थी. अप्रैल से जून 2021 की तिमाही में राकेश झुनझुनवाला ने टाटा मोटर्स के 50 लाख शेयर बेचे. टाटा मोटर्स ने अभी तक अपनी सितंबर 2021 की शेयरहोल्डिंग की घोषणा नहीं की है.
डिस्क्लेमर: (यहां मुहैया जानकारी सिर्फ़ सूचना हेतु दी जा रही है. यहां बताना ज़रूरी है की मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है. निवेशक के तौर पर पैसा लगाने से पहले हमेशा एक्सपर्ट से सलाह लें. ABPLive.com की तरफ से किसी को भी पैसा लगाने की यहां कभी भी सलाह नहीं दी जाती है.)
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Published at : 13 Oct 2021 04:20 PM (IST) Tags: ABP News Share Market Stock Market Tata Motors Stock Rakesh JhunJhunwala हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi
निवेशकों ने एक ही दिन में कमा लिए 3 लाख करोड़ रुपये, जानिए कैसे
Share Market News Today (आज का शेयर बाजार), 08 September 2022: कारोबार के अंत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड कंपनियों का मार्केट कैप 2,82,71,605.02 करोड़ रुपये हो गया।
Share Market News Today, 08 Sept 2022: विदेशी कोषों की आवक और ग्लोबल मार्केट में सकारात्मक रुख की वजह से गुरुवार को शेयर बाजार बढ़त के साथ खुले और बंद के दौरान भी सेंसेक्स- निफ्टी हरे निशान पर थे। इससे आज विदेशी मुद्रा बाजार में पैसा कैसे कमाए निवेशकों को तीन लाख करोड़ रुपये का फायदा हुआ। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का प्रमुख इंडेक्स सेंसेक्स 659.31 अंक यानी 1.12 फीसदी उछलकर 59,688.22 के स्तर पर बंद हुआ। वहीं नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ्टी 174.35 अंक यानी 0.99 फीसदी बढ़कर 17,798.75 के स्तर पर बंद हुआ।
इन कारकों से आई बढ़त
क्रूड ऑल की कीमत में गिरावट, मजबूत वैश्विक रुख, विदेशी संस्थागत निवेशकों के (FII) प्रवाह और डॉलर के मुकाबले रुपये की मजबूती से आज हफ्ते के चौथे कारोबारी दिन शेयर बाजार में भारी उछाल दर्ज किया गया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में डॉलर के मुकाबले आज रुपया 24 पैसे चढ़कर 79.71 (अस्थायी) प्रति डॉलर पर बंद हुआ।
सेक्टोरल इंडेक्स पर नजर
पीएसयू बैंक के शेयरों में सबसे ज्यादा तेजी आई। यह 2.51 फीसदी बढ़ा। निफ्टी ऑटो, बैंक, एफएमसीजी, आईटी और प्राइवेट बैंक भी हरे निशान पर बंद हुए। वहीं मेटल फार्मा, रियल्टी और मीडिया लाल निशान पर बंद हुए।
दिग्गज शेयरों की बात करें, तो बीएसई पर टेक महिंद्रा, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक, एम एंड एम, भारती एयरटेल, एसबीआई, अल्ट्राटेक सीमेंट, एशियन पेंट्स, बजाज फाइनेंस, विप्रो, इंफोसिस, आईटीसी, एचडीएफसी, एचडीएफसी बैंक, एल एंड टी, डॉक्टर रेड्डी, सन फार्मा, रिलायंस, मारुति, टीसीएस, आदि बढ़त के साथ बंद हुए।
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जानिए कैसा था राकेश झुनझुनवाला का सफर
राकेश झुनझुनवाला ने निवेश की दुनिया में साल 1985 में कदम रखा था। इस दौरान उन्होंने महज 5 हजार रुपये से निवेश की शुरुआत की थी और निधन से पहले उनकी कुल 'नेटवर्थ' 41 हजार करोड़ रुपये से अधिक की थी । झुनझुनवाला ने इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट से सीए की डिग्री भी ली। बताया जाता है कि शेयर बाजार में झुनझुनवाला की दिलचस्पी पिता के कारण हुई। उनके पिता टैक्स ऑफिसर थे। उनके पिता अक्सर अपने दोस्तों के साथ शेयर बाजार की बातें किया करते थे। झुनझुनवाला अपने पिता की बातें गौर से सुनते थे। इसके बाद से उन्होंने दलाल स्ट्रीट को समझना शुरू कर दिया और यहीं से उन्होंने निवेश की दुनिया में उड़ान भरनी शुरू कर दी। निवेश की दुनिया में जब उन्हें फायदा होने लगा तो उन्हें पक्का यकीन हो गया कि अगर कहीं से बड़ा पैसा बनाया जा सकता है तो वह सिर्फ यही जगह है।
झुनझुनवाला ने एक कार्यक्रम में बताया था कि उन्होंने अपना सफर 5 हजार रुपये से शुरू किया था और सीए भाई की मदद से महज 2 साल में उनकी नेटवर्थ 50 लाख रुपये हो गई। 1990 के बजट को वह बेहद अहम बताते हैं, जिसके बाद तगड़ा बूम आया था। तब झुनझुनवाला की नेटवर्थ 2 विदेशी मुद्रा बाजार में पैसा कैसे कमाए करोड़ रुपये थी, जो कुछ ही समय में 20 करोड़ रुपये हो गई। वह कहते हैं कि रिस्क लेना जरूरी है, लेकिन उसका नतीजा भी पता होना चाहिए।
टाटा के शेयर विदेशी मुद्रा बाजार में पैसा कैसे कमाए से चमकी थी किस्मत
झुनझुनवाला शुरू से ही रिस्क लेने वाले थे। उसने अपने भाई के ग्राहकों से बैंक सावधि जमा की तुलना में अधिक रिटर्न के साथ इसे वापस करने के वादे के साथ पैसे उधार लिए। 1986 में, उन्होंने अपना पहला महत्वपूर्ण लाभ तब कमाया जब उन्होंने 43 रुपये में टाटा टी के 5,000 शेयर खरीदे और तीन महीने के भीतर स्टॉक बढ़कर 143 रुपये हो गया। उसने अपने पैसे से तीन गुना से अधिक कमाया। उन्होंने तीन साल में 20-25 लाख रुपये कमाए। झुनझुनवाला ने पिछले कुछ वर्षों में टाइटन, क्रिसिल, सेसा गोवा, प्राज इंडस्ट्रीज, अरबिंदो फार्मा और एनसीसी में सफलतापूर्वक निवेश किया है।
कैसे बने शेयर मार्केट के बेताज बादशाह
राकेश झुनझुनवाला महज तीन साल में ही शेयर में पैसे लगाकर करोड़ों का मुनाफा कमा लिया। इसके बाद उन्होंने आए कई कंपनियों में दांव लगाए और खूब लाभ कमाया। लेकिन झुनझुनवाला को जिसने बिग बुल बनाया वह थी टाटा की टाइटन कंपनी। दरअसल, झुनझुनवाला ने साल 2003 में टाटा समूह की कंपनी टाइटन में पैसा लगाए थे। उस वक्त उन्होंने महज तीन रुपये के हिसाब से टाइटन के छह करोड़ शेयर खरीद लिए थे जिसकी वैल्यू 7000 करोड़ रुपये से अधिक हो गई।
रिकॉर्ड निचले स्तर पर रुपया: डॉलर के मुकाबले रुपया 51 पैसे कमजोर होकर 80.47 पर पहुंचा, अमेरिकी केंद्रीय बैंक के ब्याज दर बढ़ाने का असर
भारतीय रुपए में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। आज, यानी 22 सितंबर के शुरुआती कारोबार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 51 पैसे गिरकर अब तक के सबसे निचले स्तर 80.47 रुपए पर खुला है। इससे पहले बुधवार, यानी 21 सितंबर को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 26 पैसे गिरकर 80 के स्तर पर बंद हुआ था।
अमेरिकी केंद्रीय बैंक के ब्याज दर बढ़ाने का असर
अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने बुधवार को लगातार तीसरी बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने ब्याज दरों में 0.75% की बढ़ोतरी की। ब्याज दरें बढ़ाकर 3-3.25% की गई हैं। महंगाई को नियंत्रित करने के लिए लगातार तीसरी बार ब्याज दरें बढ़ी हैं।
अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ जाने से वहां की मुद्रा, यानी डॉलर की कीमत बढ़ जाती है। डॉलर मजबूत होने लगता है। इससे डॉलर की तुलना में रुपया जैसी दूसरी करेंसी की वैल्यू घट जाती है। दूसरी तरफ विदेशी निवेशकों द्वारा भारत से पैसा निकाला जाता है, तब भी रुपया कमजोर होगा।
कैसे तय होती है करेंसी की कीमत?
करेंसी के उतार-चढ़ाव के कई कारण होते हैं। डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो इसे उस करेंसी का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में - करेंसी डेप्रिशिएशन। हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह विदेशी मुद्रा बाजार में पैसा कैसे कमाए अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करता है।
विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है। अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर है तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा।
कहां नुकसान या फायदा?
नुकसान: कच्चे तेल का आयात महंगा होगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी। देश में सब्जियां और खाद्य पदार्थ महंगे होंगे। वहीं भारतीयों को डॉलर में पेमेंट करना भारी पड़ेगा। यानी विदेश घूमना महंगा होगा, विदेशों में पढ़ाई महंगी होगी।
फायदा: निर्यात करने वालों को फायदा होगा, क्योंकि पेमेंट डॉलर में मिलेगा, जिसे वह रुपए में बदलकर ज्यादा कमाई कर सकेंगे। इससे विदेश में माल बेचने वाली IT और फार्मा कंपनी को फायदा होगा।
करेंसी डॉलर-बेस्ड ही क्यों और कब से?
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में अधिकांश मुद्राओं की तुलना डॉलर से होती है। इसके पीछे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ ‘ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट’ है। इसमें एक न्यूट्रल ग्लोबल करेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। हालांकि, तब अमेरिका अकेला ऐसा देश था जो आर्थिक तौर पर मजबूत होकर उभरा था। ऐसे में अमेरिकी डॉलर को दुनिया की रिजर्व करेंसी के तौर पर चुन लिया गया।
कैसे संभलती है स्थिति?
मुद्रा की कमजोर होती स्थिति को संभालने में किसी भी देश के केंद्रीय बैंक का अहम रोल होता है। भारत में यह भूमिका रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की है। वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार से और विदेश से डॉलर खरीदकर बाजार में उसकी मांग पूरी करने का प्रयास करता है। इससे डॉलर की कीमतें रुपए के मुकाबले स्थिर करने में कुछ हद तक मदद मिलती है।
छोटा बुलबुला कैसे बना
यह ऊंची वृद्धि (आंतरिक रूप से उत्पन्न होने के बजाय) बाहरी रूप से प्रेरित परिघटना थी. चीन के बाद भारत ही वित्तीय अंतर्प्रवाह का दूसरा सबसे चहेता गंतव्य स्थल बन गया था, जबकि कई अन्य विकासशील देश भी इसी प्रक्रिया से गुजर रहे थे. हमारे मामले में घरेलू और विदेशी निवेशकों को दी गई रियायतों ने इसे बड़ी हद तक सहज बनाया. 2003-04 के बजट में दीर्घ अवधि वाले पूंजी प्राप्ति करों की समाप्ति एक प्रमुख कदम था, जिसने तमाम व्यावहारिक अर्थों में भारत के इक्विटि बाजार को कर-मुक्त अड्डे में बदल दिया; फलतः विदेशी संस्थागत निवेशकों व अन्य स्रोतों से निवेशों की बाढ़-सी आ गई. बाद के वर्षों में (अभी हाल तक) भी कमोबेश यह बाढ़ बरकरार रही. यह कहने की जरूरत नहीं कि किसी को भी इस बात की चिंता नहीं रही कि पूंजी प्राप्ति कर के रूप में राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत सरकार के हाथ से निकल गया.
विदेशी पूंजी का यह बढ़ा हुआ अंतर्प्रवाह मुख्यतः शेयर बाजार में, उपभोक्ता सामग्री बाजार की सटोरिया गतिविधियों में और कुछ हद तक रियल इस्टेट में भी मनमौजी वित्तीय निवेशों के रूप में सामने आया. इस तत्व ने जीडीपी की वृद्धि में तो योगदान किया, किंतु अर्थतंत्र के वास्तविक उत्पादक क्षेत्रों को इसने अत्यंत सीमित हद तक ही प्रोत्साहित किया.
बहरहाल, विदेशी पूंजी के बड़े अंतर्प्रवाहों से उत्पन्न तरल मुद्रा प्रचुरता ने ऋण को सस्ता बना दिया, जिसने अपनी बारी में कम से कम तीन तरीकों से औद्योगिक वृद्धि को आवेग प्रदान किया. पहला, इसने आॅटोमोबाइल्स की खरीद को बढ़ावा दिया और आॅटोमोबाइल उद्योग में उभार पैदा किया, जिसे हाईवे और एक्सप्रेस-वे के विस्तारण से भी बल मिला. दूसरा, इसने आवास-निर्माण व रियल इस्टेट में निवेश को प्रोत्साहित किया, जिससे निर्माण-सामग्रियों के उत्पादन में वृद्धि हुई और बड़ी संख्या में (कैजुअल) रोजगारों का सृजन हुआ. तीसरा, ऊंची आय-समूह वाले लोग जल्द धनी होने लगे, क्योंकि उनमें से कइयों के लिए प्रभावकारी आय-कर दरें गिर रही थीं, और कर्ज के विदेशी मुद्रा बाजार में पैसा कैसे कमाए पैसे से विभिन्न किस्म की आयातित व देशी उपभोक्ता सामग्रियों की खरीद के अवसर से खुश होकर वे बेतहाशा खर्च कर रहे थे और ‘लाइफस्टाइल उत्पादों’ की मांग में वृद्धि ला रहे थे. इन तमाम चीजों की अभिव्यक्ति कुल बैंक ऋण में व्यक्तिगत कर्जों के तेजी से बढ़ते अनुपात में हो रही थी. इस प्रकार, ऋण-प्रेरित उपभोग व निवेश में विस्तार जीडीपी में वृद्धि का एक महत्वपूर्ण करीबी कारण बन गया.
एक अन्य कारक साॅफ्टवेयर, पेट्रो-रसायनों, धातुओं और आभूषणों वगैरह के निर्यात में हो रही वृद्धि में भी खोजा जा सकता है. निर्यात में यह वृद्धि अधिकांशतः वाह्य कारणों से, अर्थात् भारत के आर्थिक प्रदर्शन से पृथक, विश्व बाजार की स्थितियों में आए अनुकूल परिवर्तनों से, प्रेरित हो रही थी. उदाहरणार्थ, अत्यंत प्रदूषणकारी स्पोंज आइरन समेत लोहा-इस्पात उद्योग में वृद्धि, और नतीजतन कोयला व लौह-अयस्क निकासी में भी हुई वृद्धि बड़ी हद तक वैश्विक मांग में आए उभार से प्रेरित थी, जो अन्य चीजों के अलावा, चीन में बीजिंग ओलिंपिक की तैयारियों से भी पैदा हुआ था.
निर्यात में वृद्धि एक हद तक बेहतर प्रतियोगी माहौल का भी नतीजा थी: ‘वर्ल्ड इकाॅनोमिक फोरम’ द्वारा तैयार ग्लोबल कंपीटिटिवनेस रिपोर्ट (2005-06) के अनुसार ग्रोथ कंपीटिटिवनेस (वृद्धि प्रतियोगिता) सूचकांक में भारत 2004 के अपने 55वें स्थान से ऊपर उठकर अगले वर्ष 50वें स्थान पर चला आया. यह बात खास तौर पर साॅफ्टवेयर निर्यातों के क्षेत्र में ज्यादा सही थी; इसका निर्यात वित्तीय वर्ष 1996 में एक अरब डाॅलर से भी कम था, लेकिन वर्ष 2005 में वह बढ़कर 23 अरब डाॅलर के करीब पहुंच गया और यह वृद्धि कमोबेश हाल-हाल तक जारी रही. सेवाओं के समग्र निर्यात में विदेशी मुद्रा बाजार में पैसा कैसे कमाए तेज उछाल के पीछे यह प्रमुख कारण रहा है, और इस क्षेत्रा में शुद्ध निर्यातक के बतौर भारत की सुविधाजनक स्थिति ने माल-व्यापार में भारत के बड़े और बढ़ते नकारात्मक संतुलन को दुरुस्त करने में काफी मदद की.
ऊपर वर्णित क्षेत्रों में भारतीय उद्यमों की वृद्धि में जिन तुलनात्मक लाभकारी स्थितियों से मदद मिली, उनमें निश्चय ही सर्वप्रमुख बात थी कम लागत वाले मानव-संसाधनों की उपलब्धता– न सिर्फ सस्ता श्रम, बल्कि तकनीकी और प्रबंधकीय कुशलता भी, जो पश्चिमी मुल्कों की अपेक्षा यहां आधी से चैथाई कीमत पर उपलब्ध थी (कुछ मामलों में, जैसे कि औषधि-निर्माण, साॅफ्टवेयर और आइटी-निर्भर सेवाओं के क्षेत्रा में यह कुशलता ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है). दूसरी लाभकारी स्थिति यह है कि अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त आबादी के लिहाज से भारत दुनिया का (अमेरिका के बाद) दूसरा सबसे विशाल देश माना जाता है (हालांकि, इस अर्थ में चीन की तेज अग्रगति से भारत की यह स्थिति लंबे समय तक शायद न टिक सके). बहरहाल, बुनियादी ढांचे के स्तर पर चीन की तुलना में भारत कोसों दूर है और यह कमजोरी वृद्धि के रास्ते का बड़ा अवरोधक मानी जा रही है. दूसरी ओर, अन्य विकासशील देश भी इस मुनाफे-भरे विश्व बाजार में प्रवेश कर रहे हैं; इसीलिए, भारत की यह तुलनात्मक लाभकारी स्थिति उसी समय तक बनी रहेगी, जब तक कि सस्ते श्रम वाले अन्य देश समान कौशल के साथ श्रम बल न तैयार कर लें.
वृद्धि में योगदान करने वाला दूसरा महत्वपूर्ण कारक था विदेशी मुद्रा बाजार में पैसा कैसे कमाए विदेशों में काम कर रहे भारतीयों द्वारा भेजा गया धन – खासकर, बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय मजदूर अपनी आमदनी का सबसे बड़ा अंश अपने घर भेजते हैं. विदेशों में कमाए गए और भारत में खर्च किए गए इस पैसे से आंतरिक बाजार का विस्तार हुआ. उसके एक हिस्से को लद्यु उद्योगों में निवेशित किया गया जिससे रोजगार-सृजन करने वाले अनौपचारिक क्षेत्र में स्वस्थ उभार पैदा हो सका; और साथ ही इससे हमारा विदेशी मुद्रा भंडार भी मजबूत बन गया. बहरहाल, वैश्विक स्तर पर मंदी आने के बाद यह स्रोत अंशतः सूखने लगा, और साॅफ्टवेयर तथा आइटी-निर्भर सेवाओं के निर्यात से होने वाली आमदनी भी गिरने लगी. आइटी-निर्भर सेवाओं के निर्यात और प्रवासी मजदूरों द्वारा देश में भेजी जाने वाली राशि की संयुक्त वृद्धि दर 2009-10 और 2010-11 में गिरकर क्रमशः 4 और 8 प्रतिशत हो गई. 2011-12 में यह बढ़कर 20 प्रतिशत हुई, लेकिन फिर 2012-13 में गिरकर यह अनुमानित 4 प्रतिशत पर आ गई.
प्रोत्साहन देने वाला एक अन्य महत्वपूर्ण कारण था भारतीय राज्य द्वारा विशाल रियायतों की शक्ल में बड़े काॅरपोरेटों को उपलब्ध कराया गया असाधारण मुनाफे का उपहार. इसने उद्योग व सेवा के कतिपय क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित किया. कुछ वर्षों तक भुगतान संतुलन के सरदर्द के बगैर वृद्धि दर संतोषजनक ढंग से बढ़ती रही, क्योंकि ऊंची निर्यात आमदनी और प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजे गए धन के अलावा विदेशी पूंजी का पर्याप्त से भी ज्यादा अंतर्प्रवाह हो रहा था. मुद्रास्फीति की समस्या जरूर टकरा रही थी, लेकिन इसे सहनीय सीमा के अंदर समझा जा रहा था. एक कारण यह था कि रुपये की मजबूत स्थिति ने तेल के आयात बिल और अन्य आयात-लागतों को नियंत्रण में बनाए रखा था. बहरहाल, यह अभूतपूर्व वृद्धि दर उन लोगों की जिंदगी में रोशनी नहीं ला सकी, जिन्होंने अपने श्रम से इसे संभव बनाया था.