फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट क्या है

भारत में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का विनियमन इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 के तहत होता है। इस एक्ट के अनेक सामान्य प्रावधान हैं जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए प्रासंगिक हैं। इनमें कॉन्ट्रैक्ट निर्माण, पक्षों के दायित्व और कॉन्ट्रैक्ट भंग की स्थिति में होने वाले परिणाम शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, मॉडल एपीएमसी (एग्रीकल्चरल प्रोडूस मार्केट कमिटी) एक्ट, 2003 में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के प्रायोजकों का अनिवार्य पंजीकरण, और विवादों का निपटारा जैसे विशेष प्रावधान भी किए गए हैं।
फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट क्या है
Independent policy analyst
यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसानों को उनके उत्पादों की बेहतर कीमत मिले और फसल कटने के बाद होने वाले नुकसानों में कमी हो, सरकार किसानों को कृषि उद्योगों से जोड़ने का प्रयास करती रही है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (संविदा कृषि) इसी दिशा में एक रामवाण के रूप में सामने आती दिखी है।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का आशय किसानों तथा प्रसंस्करण और/ या मार्केटिंग कंपनियों के बीच फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट के तहत, प्रायः पहले से तय कीमतों पर कृषि उत्पादों के उत्पादन और सप्लाई के फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट क्या है लिए होने वाले समझौते से है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसानों को कीमत संबंधी जोखिम और अनिश्चितता से बचा देती है, नए कौशल विकसित करने में उनकी मदद करती है तथा उनके लिए नए बाजार उपलब्ध कराती है। इसके बावजूद कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का बाजार विफलताओं का शिकार होता है:
फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस क्या हैं? निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें
TV9 Bharatvarsh | Edited By: राघव वाधवा
Updated on: Sep 16, 2022 | 5:35 PM
हर कोई अपने निवेश से मुनाफा कमाना चाहता है. मार्केट (बाजार) में निवेश के कई विकल्प मौजूद हैं. आज हम वित्तीय साधनों (फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट) के बारे में बात करेंगे, जिन्हें फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के तौर पर जाना जाता है. फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट क्या है जरिए न केवल शेयरों में, बल्कि सोने, चांदी, एग्रीकल्चर कमोडिटी और कच्चे तेल (क्रड ऑयल) सहित कई अन्य डेरिवेटिव सेगमेंट में भी कारोबार करके पैसा कमाया जा सकता है. फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस को समझने से पहले उस मार्केट को समझना जरूरी है, जिसमें ये प्रोडक्ट्स खरीदे और बेचे जाते हैं.
डेरिवेटिव्स क्या होते हैं?
डेरिवेटिव वित्तीय साधन (फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट) हैं, जो एक अंतर्निहित परिसंपत्ति (अंडरलाइंग एसेट) या बेंचमार्क से अपनी कीमत (वैल्यू) हासिल करते हैं. उदाहरण के लिए, स्टॉक, बॉन्ड, करेंसी, कमोडिटी और मार्केट इंडेक्स डेरिवेटिव में इस्तेमाल किए जाने वाले कॉमन एसेट हैं. अंतर्निहित परिसंपत्ति (अंडरलाइंग एसेट) की कीमत बाजार की स्थितियों के मुताबिक बदलती रहती है. मुख्य रूप से चार तरह के डेरिवेटिव कॉन्ट्रेक्ट हैं – फ्यूचर (वायदा), फॉरवर्ड, ऑप्शन और स्वैप.
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट के जरिए खरीदार (या विक्रेता) भविष्य में एक पूर्व निर्धारित तिथि पर एक पूर्व निर्धारित मूल्य पर संपत्ति खरीद या बेच सकता है. वायदा कारोबार (फ्यूचर ट्रेडिंग) करने वाले दोनों पक्ष अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) को पूरा करने के लिए बाध्य होते हैं. इन अनुबंधों का स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार होता है. वायदा अनुबंध की कीमत अनुबंध खत्म होने तक मार्केट के हिसाब से बदलती रहती है.
डेरीवेटिव के प्रकार (TYPES OF DERIVATIVE)
अगर बात करे फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट क्या है तो फॉरवर्ड डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट (Forward Derivative Contract) के बारे में तो इसकी अंग्रजी परिभाषा ये कहती है कि –
Forwards Are Customized Contract Made Today Between Buyer And Seller For The Transaction Which Will Happen In Future,
फॉरवर्ड buyer और seller के बीच होने वाला एक व्यक्तिगत कॉन्ट्रैक्ट होता है, जिस कॉन्ट्रैक्ट में असली TRANSACTION फ्यूचर में किसी दिन होने वाला होता है,
जैसे – अनाज उगाने वाला किसान अपने फसल को बेचने के लिए अगर किसी अनाज के व्यापारी से एक कॉन्ट्रैक्ट या अग्रीमेंट करता है कि किसान उस अनाज के व्यापारी को फ्यूचर में माल बेचेगा, जिसकी कीमत आज तय हो जाएगी, और उसी कीमत पर किसांन अपना वो माल उस व्यापारी को बेचेगा,
फ्यूचर डेरीवेटिव फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट क्या है कॉन्ट्रैक्ट (Future Derivative Contract)
सिम्पली फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट, फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट का next version है, जिसमे फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में आने वाली प्रोब्लेम्स को सोल्व करने के लिए बनाया गया है, अगर इसके परिभाषा की बात करे तो फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट भी Buyer और Seller के बीच होने वाला एक व्यक्तिगत नहीं बल्कि स्टैण्डर्ड कॉन्ट्रैक्ट होता है, और इस कॉन्ट्रैक्ट में असली TRANSACTION फ्यूचर में किसी दिन होने वाला होता है,
फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की खास बात ये है कि –
- कॉन्ट्रैक्ट standardized हो, मतलब हर एक के लिए बराबर हो, पहले से तय एक जैसे नियम हो,
- कॉन्ट्रैक्ट किसी मार्केट (स्टॉक एक्सचेंज) में लिस्टेड हो, जहा से कोई भी खरीद सके, बेच सके,
- एक्सचेंज एक गारंटर के रूप हो ताकि कोई पार्टी डिफ़ॉल्ट ना करे,
- कॉन्ट्रैक्ट का जो पूरा टाइम पीरियड है उसके अन्दर वो कॉन्ट्रैक्ट किसी और को ट्रान्सफर किया जा सता हो ,
आप्शन डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट (Option Derivative Contract)
आप्शन डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट भी बिल्कुल एक फ्यूचर डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट होता है, जिसमे हमारे पास फ्यूचर में किसी डेट को कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार सौदा करने का अधिकार होता है, लेकिन ऑब्लिगेशन नहीं होता है …यानी ये जरुरी नहीं होता कि हमें वो सौदा करना ही करना है…
अगर हमें उस फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट से फायदा हो रहा है तो हम उस कॉन्ट्रैक्ट को एक्सीक्यूट या फिर सेटल करके लाभ कमा सकते है ..
लेकिन अगर उस कॉन्ट्रैक्ट में हमें कोई फायदा नहीं होने वाला, लोस होने वाला है तो फिर हम उस कॉन्ट्रैक्ट को नहीं करेंगे…….इस तरह का आप्शन यानि विकल्प देता है …आप्शन कॉन्ट्रैक्ट…
और इसीलिए इस कॉन्ट्रैक्ट का नाम है आप्शन कॉन्ट्रैक्ट ..
क्योकि …आप्शन कॉन्ट्रैक्ट एक तरह क फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट होता है , जिसमे हमें राईट तो होता है ..यानि हम अगर चाहे तो सौदे को एक्सीक्यूट कर सकते है, लेकिन अगर हम नहीं चाहे तो हमारे ऊपर कोई ऑब्लिगेशन नहीं है कि उस सौदे को सेटल या कम्पलीट करना ही करना है …