वैश्विक संकेतक

समग्र विकास हेतु आवश्यक है नीतिगत सुधार
कोविड-19 महामारी से बचाव के लिये टीका आ जाने से अब जन-जीवन पर इसका प्रभाव धीरे-धीरे कम हो रहा है। महामारी वैश्विक संकेतक के दौरान देश को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिन्होंने अर्थव्यवस्था तथा समाज को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया। अतः विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये नीति-निर्माताओं को अर्थव्यवस्था को अधिक लचीला तथा समृद्ध बनाने के लिये के नई आर्थिक नीतियों या मॉडल को अपनाने की आवश्यकता है।
वैश्विक वजहों से शेयर बाजार में गिरावट: हसमुख अधिया
केंद्रीय वित्त एवं राजस्व सचिव हसमुख अधिया का कहना है कि शेयर बाजारों में वैश्विक संकेतक जारी भारी गिरावट की वजह वैश्विक संकेतक हैं।
आईएएनएस
वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा 1 फरवरी वैश्विक संकेतक को पेश बजट के बाद से शेयर बाजार में सुस्ती छाई हुई है। बजट के बाद शेयर बाजार में पहले सप्ताह के कारोबार की शुरुआत भी बेहद खराब हुई। 5 फरवरी को घरेलू बाजारों में जोरदार गिरावट के साथ बाजार की शुरुआत हुई। शुरुआती कारोबार में ही सेंसेक्स में 500 अंकों से ज्यादा की गिरावट देखने को मिली है।
बाजार में इस हलचल पर केंद्रीय वित्त एवं राजस्व सचिव हसमुख अधिया का कहना है कि शेयर बाजारों में भारी गिरावट की वजह, दीर्घकालीन पूंजीगत लाभ (एलटीसीजी) कर लगाना नहीं, बल्कि वैश्विक संकेतक हैं। अधिया ने कहा, “शेयरों से कमाई पर सिर्फ 10 फीसदी एलटीसीजी लगाया गया है, जिससे शेयरों में निवेश अभी भी आकर्षक बना हुआ है।” 5 फरवरी को सीआईआई के एक कर्याक्रम को संबोधित करते हुए अधिया ने कहा कि अन्य परिसंपत्तियों के मुकाबले शेयरों पर एलटीसीजी कर कम है।
गौरतलब है कि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 1 फरवरी को आम बजट पेश करते हुए शेयरों से 1 लाख रुपये से अधिक की कमाई पर 10 फीसदी एलटीसीजी कर लगाने का ऐलान किया था। इससे सरकार को 20,000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद है। हालांकि, 31 जनवरी 2018 तक शेयरों से होने वाली कमाई पर छूट दी जाएगी और शेयरों को एक साल तक रखने पर 15 फीसदी की दर से टैक्स लगाया जाएगा।
बीएसई का सेंसेक्स 5 फरवरी को 400 से अधिक अंकों की गिरावट के साथ खुला और 35,000 के मनोवैज्ञानिक स्तर से नीचे फिसल गया। जबकि एनएसई का सूचकांक निफ्टी भी 150 अंकों से अधिक की गिरावट पर खुला। बाजार विश्लषेकों का मानना है कि वैश्विक संकेतकों के साथ बैंकिंग, कैपिटल गुड्स, वाहन, तेल एवं गैस शेयरों में गिरावट से शेयर बाजार में गिरावट का रुख बना हुआ है।
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Global Recession वैश्विक मंदी क्या है
ऐसी मंदी जो दुनिया भर के कई देशों को प्रभावित करती है और जिसमें आर्थिक उत्पादन में गिरावट आती है उसे वैश्विक आर्थिक मंदी या Global Recession कहते हैं। वैश्विक मंदी में एक लंबे समय तक दुनिया भर में आर्थिक गिरावट देखी जाती है।
Global Recession meaning in Hindi
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार यदि प्रति व्यक्ति वैश्विक संकेतक वास्तविक विश्व जीडीपी (क्रय शक्ति समता भारित) में गिरावट को कहते हैं जिसके साथ ही यदी सात अन्य वैश्विक वृहद आर्थिक संकेतकों औद्योगिक उत्पादन, व्यापार , पूंजी प्रवाह, तेल की खपत, बेरोजगारी दर, प्रति व्यक्ति निवेश और प्रति व्यक्ति खपत में से किसी एक या अधिक में भी गिरावट दिखाई दे तो उसे Global Recession कहते हैं। क्रय शक्ति समता यानी Purchasing power parity में अलग अलग देशों में वस्तुओं की क्रय शक्ति के अनुसार गणना की जाती है।
Understanding Global Recession वैश्विक मंदी को समझना
IMF यानी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की उपर दी गई परिभाषा के अनुसार जीडीपी में गिरावट के वैश्विक संकेतक साथ साथ यदी अन्य आर्थिक संकेतक जैसे कि औद्योगिक उत्पादन, व्यापार , पूंजी प्रवाह, तेल की खपत, बेरोजगारी दर, प्रति व्यक्ति निवेश और प्रति व्यक्ति खपत भी मंदी का संकेत दें तो वैश्विक मंदी मानी जा सकती है। हालांकि IMF ने इसके लिए कोई अवधि निर्धारित नहीं की है पर लगातार दो तीन तिमाही तक चलने वाली मंदी को ही वास्तविक मंदी माना जा सकता है। 1970 के बाद 1975, 1982, 1991 और 2009 में आईं मंदी को वैश्विक मंदी माना जाता है।
Coronavirus recession कोरोना वायरस मंदी
2020 में कोरोना वायरस के कारण विश्व भर के देशों में हुए लॉकडाउन के कारण गंभीर वैश्विक मंदी का दौर शुरू हो चुका है। ना सिर्फ़ जी 7 देश अपितु कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण कई विकासशील देश भी कोरोना वायरस मंदी की चपेट में आ गए हैं। लॉकडाउन में आर्थिक गतिविधियाँ धीमी पड़ गईं, तेल की माँग बहुत तेज़ी से गिर गई जिसके कारण क्रूड की क़ीमतें धड़ाम से नीचे गिरने लगीं। बेरोज़गारी बढ़ गई और वस्तुओं की माँग में बेतहाशा कमी आई।
Coronavirus recession कोरोना वायरस मंदी का असर
कोरोना वायरस ने लोगों के पैसा खर्च करने के तरीकों पर भी असर किया है। लॉकडाउन के आदेश के कारण स्पष्ट रूप से कई वैश्विक संकेतक प्रकार के व्यवसाय प्रभावित हुए हैं। विशेष रूप से खुदरा स्टोर, रेस्तरां और होटल, जिम, मनोरंजन स्थल, थियेटर, सौंदर्य सैलून और स्पा आदि व्यवसाय बहुत दबाव में है। ट्रेवेल और परिवहन पर भी इसका बुरा असर हुआ है। होटल, पर्यटन और एयरलाइंस उद्योग पर भी इसकी मार पड़ी है।
मंदी से बाहर आना
खुशी की बात है कि कोई वैश्विक संकेतक भी वैश्विक मंदी हमेशा नहीं रहती। यह एक आर्थिक चक्र है जो चलता रहता है। मंदी के बाद तेज़ी आती है। ऐसे व्यवसाय जो नई परिस्थितियों में अपने वैश्विक संकेतक को ढाल लेते हैं और नई माँग पैदा करने में सक्षम रहते हैं वही मंदी में भी अपने व्यवसाय को क़ायम रखने में सफल रहते हैं।
वैश्विक संकेतक
आरबीआई को मौद्रिक सख्ती की गति को कम करने पर विचार करना चाहिए : सीआईआई
नई दिल्ली, 27 नवंबर (आईएएनएस)। घरेलू मांग में अच्छी तरह से सुधार हो रहा है, जैसा कि कई उच्च आवृत्ति संकेतकों के प्रदर्शन से पता चलता है। हालांकि, वैश्विक सुस्ती का असर भारत की ग्रोथ संभावनाओं पर भी पड़ सकता है।
नई दिल्ली, 27 नवंबर (आईएएनएस)। घरेलू मांग में अच्छी तरह से सुधार हो रहा है, जैसा कि कई उच्च आवृत्ति संकेतकों के प्रदर्शन से पता चलता है। हालांकि, वैश्विक सुस्ती का असर भारत की ग्रोथ संभावनाओं पर भी पड़ सकता है।
मुख्य रूप से वैश्विक अनिश्चितताओं से उत्पन्न घरेलू विकास की बाधाओं को देखते हुए, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को पहले के 50 आधार अंकों से अपनी मौद्रिक सख्ती की गति को कम करने पर विचार करना चाहिए। यह बात सीआईआई ने आरबीआई को आगामी मौद्रिक नीति पर अपेक्षाओं के संबंध में कही।
जबकि सीआईआई इस तथ्य से अवगत है कि इस वित्तवर्ष में अब तक आरबीआई की ब्याज दर में 190 आधार अंकों की बढ़ोतरी मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने के लिए जरूरी है, कॉर्पोरेट क्षेत्र ने अब इसके प्रतिकूल प्रभाव को महसूस करना शुरू कर दिया है।
दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर 2022) में 2000-विषम कंपनियों के परिणामों के सीआईआई के विश्लेषण से पता चलता है कि टॉप-लाइन और बॉटम-लाइन वैश्विक संकेतक दोनों क्रमिक और वार्षिक आधार पर मॉडरेट हुए हैं। इस प्रकार, मौद्रिक सख्ती की गति में संयम समय की जरूरत है।
हालांकि, स्टिकी कोर मुद्रास्फीति को लगभग 6 प्रतिशत अंक पर देखते हुए आरबीआई मुद्रास्फीति को कम करने के लिए प्रमुख ब्याज दरों में अतिरिक्त 25 से 35 आधार अंकों की बढ़ोतरी पर विचार कर सकता है। अक्टूबर 2022 में सीपीआई हेडलाइन प्रिंट में हालिया मॉडरेशन के बावजूद, हेडलाइन प्रिंट लगातार 10 महीनों तक आरबीआई की लक्ष्य सीमा से बाहर रहा। इसके अलावा, क्रेडिट और डिपॉजिट ग्रोथ के बीच मौजूद जम्हाई के अंतर के साथ, एक अतिरिक्त दर वृद्धि बचतकर्ताओं को प्रोत्साहित करेगी, इस प्रकार डिपॉजिट ग्रोथ को प्रोत्साहन प्रदान करेगी और क्रेडिट-डिपॉजिट वेज को कम करने में मदद करेगी।
सीआईआई ने कहा कि इसके अलावा, बढ़ते वैश्विक जोखिम से बचने के कारण हमारे विदेशी पूंजी प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, यह हमारे चालू खाता घाटे के वित्तपोषण के लिए चुनौतियां पेश करता है। वास्तव में, हमें तीनों बकेट में पूंजी प्रवाह पर नजर रखने की जरूरत है, यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), एनआरआई प्रवाह और विदेशी पोर्टफोलियो प्रवाह (एफपीआई)। केवल एफपीआई संख्या पर अधिक ध्यान देना हमेशा पूरी तस्वीर नहीं दे सकता है।
सीआईआई ने कहा, घरेलू रिकवरी के प्रारंभिक संकेतों को सामान्य विकास परि²श्य की ओर गति में तेजी लाने में मदद करने के लिए संरक्षित करने की जरूरत है। अतीत की तरह, आरबीआई को अपने शस्त्रागार में सभी हथियारों का उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए करना चाहिए कि अपने कार्यो के माध्यम से मुद्रास्फीति की उम्मीदों को अच्छी तरह से नियंत्रित किया जाता है, इसे किसी भी तरह से विकास की गति को कम नहीं करना चाहिए।