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क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं?

क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं?

विदेश यात्रा के समय झंझट और भारी करेंसी कन्वर्जन खर्च से बचना है, तो काम आ सकते हैं ये रुपए डेनोमिनटेड कार्ड

अगर आप घूमने के लिए विदेश जाते हैं तो पैसे खर्च करने के लिए करेंसी की उपलब्धता को लेकर काफी मुश्किल रहती है। करेंसी कैसे बदलवाई जाए, कहां और किसके पास जाएं, ऐसे कई सवाल होते हैं। ऐसे में आपको रुपया डेनोमिनटेड कार्ड आपके काम आ सकता है। कुछ फिनटेक और नियो-बैंक (केवल-ऑनलाइन बैंक) रुपया डेनोमिनटेड प्रीपेड कार्ड प्रदान करते हैं। आप ऐसे बैंकों के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।

क्या होते हैं रुपया डेनोमिनटेड कार्ड
आमतौर पर, विदेशी मुद्रा कार्ड कई विदेशी मुद्राओं में डेनोमिनटेड होते हैं। दूसरी ओर, रुपया डेनोमिनटेड कार्ड भारतीय रुपए के साथ आता है। रुपया कार्ड, क्रेडिट और डेबिट कार्ड से बेहतर काम करता है क्योंकि जब आप विदेश में क्रेडिट/डेबिट कार्ड का उपयोग करते हैं, तो आपको भारी शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। नकदी में विदेशी मुद्रा प्राप्त करना भी इन दिनों एक समस्या है।

कैसे लें रुपया डेनोमिनटेड कार्ड
नियो (रुपया-विदेशी मुद्रा डेबिट कार्ड), हॉप (रुपया विदेशी मुद्रा डेबिट-कार्ड) और हैपे (प्री-पेड अंतर्राष्ट्रीय कार्ड) वर्तमान में उपलब्ध तीन रुपया डेनोमिनटेड हैं। इसलिए, यदि आप एक ही यात्रा के दौरान कई देशों की यात्रा करते हैं, तो आपको प्रत्येक देश में जरूरी राशि की गणना करनी होगी और उसके अनुसार अपना विदेशी मुद्रा कार्ड लोड करना होता है और यदि राशि का पूरी राशि का उपयोग नहीं हो पता तो आपको फिर से करेंसी रूपांतरण चार्ज देना पड़ेगा। आप रुपया डेनोमिनटेड कार्डों को बैंक, नियो-बैंक वेबसाइटों या यहां तक ​​कि विदेशी मुद्रा एजेंटों के माध्यम से ऑनलाइन खरीद सकते हैं। वर्तमान में बहुत से यात्रा-सेवा प्रदाता इस सेवा की पेशकश नहीं करते हैं। आपको ऑनलाइन केवाईसी (अपने ग्राहक को जानिए) से गुजरना होगा और भागीदार बैंकों के साथ एक बैंक खाता खोलना होगा।

लागत और शुल्क क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं? कम
रुपया डेनोमिनटेड कार्ड पर कन्वर्जन चार्ज सबसे कम(आमतौर पर 1-1.5 प्रतिशत) है जबकि नकद में विदेशी मुद्रा के लिए 10-15 प्रतिशत देना होता है, इसी तरह मौजूदा क्रेडिट और डेबिट कार्ड 3.5-5 प्रतिशत तक चार्ज करते हैं। यह एक घरेलू कार्ड है, इस कारण आपको मुद्रा दर में उतार-चढ़ाव के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं होगी। इन कार्डों का उपयोग 150-180 देशों में किया जा सकता है। इन कार्ड के जरिए उपयोगकर्ता अंतरराष्ट्रीय व्यापारियों के साथ और कई मुद्राओं में निकासी और ऑनलाइन लेनदेन भी कर सकते हैं।

कार्ड के लिए देना होता है चार्ज
आप ऐसा न समझें की इन कार्ड के लिए कोई शुल्क नहीं है। बैंक अकाउंट को एक्टिवेट कराने या कार्ड से जुड़ने के लिए आपको शुल्क का भुगतान करना होगा। कुछ कार्ड खरीदते समय कार्ड-एक्टिवेशन शुल्क लगा सकते हैं। इसके अलावा, आपको उसी बैंक में खाता खोलना होगा जिससे आप अपना कार्ड खरीदते हैं। लेकिन जब आप रुपया-ट्रैवल कार्ड का उपयोग करते हैं तो एटीएम से नकद निकासी पर 150-200 रुपये का शुल्क लागू नहीं होगा। नियो ग्लोबल कार्ड के नियमों और शर्तों के अनुसार, कुछ देशों में रेलवे, पेट्रोल स्टेशन पर 10-30 रुपए का सरचार्ज लग क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं? सकता है।

क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं?

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भारत में सस्ता होगा पेट्रोल, डीज़ल. देश के भीतर ही तेल के कुओं से निकाला जाएगा कच्चा तेल

भारत में सस्ता होगा पेट्रोल, डीज़ल. देश के भीतर ही तेल के कुओं से निकाला जाएगा कच्चा तेल

देश में बढ़ते पेट्रोल और डीजल की मांग और दाम दोनों से सरकार और जनता परेशान है. मांग बढ़ती है तब देश को ज्यादा तेल विदेशों से खरीदना पड़ता है जिसके वजह से विदेशी मुद्रा भंडार कम होता है और सरकार चिंतित होती है. वहीं विदेशी मुद्रा भंडार के कम होने के वजह से भारतीय रुपए पर दबाव बनता है और यह भी एक कारण होता है कि पेट्रोल और डीजल के दाम नीचे जल्दी से नहीं आ पाते हैं और ऐसी स्थिति में जनता परेशान होती हैं.

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भारत कम करेगा आयात.

अभी मौजूदा स्थिति में भारत अपनी जरूरत का अधिकांश हिस्सा कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है जिसके वजह से इसकी कीमतें विदेशी प्रभाव में हमेशा रहते हैं. भारतीय सरकार अब कच्चे तेल के लिए विदेशों पर निर्भर करके देश के भीतर स्थित तेल भंडारों को उपयोग में लाएगी.

सरकार का कहना है कि 2030 तक भारत खुद अपने उपयोग का 25% कच्चा तेल देश के भीतर ही पूरा कर लेगा और इसके लिए 26 ब्लॉक का आवंटन क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं? किया गया है. मौजूदा स्थिति में भारत अपनी जरूरत का 85% तेल विदेशों से आयात करता है जिसके दाम जियोपोलिटिक्स और अन्य क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं? कारकों पर अक्सर इधर-उधर होते रहते हैं.

भारत क्या करेगा सस्ते तेल के लिए.

भारत पेट्रोल और डीजल में बायोफ्यूल का उपयोग बढ़ा रहा है और एथेनॉल ब्लेंडिंग को तेजी से आगे कर रहा है.

बिहार मध्य प्रदेश राजस्थान और कई अन्य राज्यों में कच्चे तेल के भंडार के पता लगाए जा रहे हैं.

विदेशी मुद्रा का प्रबंधन जरूरी

भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है.

विदेशी मुद्रा का प्रबंधन जरूरी

बीते आठ महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने शेयर और बॉन्ड की बिकवाली कर लगभग 40 अरब डॉलर भारत से निकाल लिया है. इसी अवधि में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 52 अरब डॉलर की कमी हुई है. अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये के मूल्य में गिरावट जारी है. निर्यात की अपेक्षा आयात में तेजी से वृद्धि हो रही है. इसका मतलब है कि हमें भुगतान के लिए निर्यात से प्राप्त डॉलर से कहीं अधिक डॉलर की जरूरत है.

सामान्य परिस्थितियों में भी भारत के पास डॉलर की संभालने लायक कमी रहती आयी है, जो अमूमन सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का एक से दो प्रतिशत होती है. आम तौर पर यह 50 अरब डॉलर से कम रहती है और आयात से अधिक निर्यात होने पर इसमें बढ़ोतरी क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं? होती है. इस कमी की भरपाई शेयर बाजार में विदेशी निवेश, विदेशी कर्ज, निजी साझेदारी या बॉन्ड खरीद से की जाती है.

इस तरह से आनेवाली पूंजी हमेशा ही चालू खाता घाटे से अधिक रही है, जिससे भारत का ‘भुगतान संतुलन’ खाता अधिशेष में रहता है. विदेशी कर्ज और उधार से ही ऐसा अधिशेष रखना जरूरी नहीं कि अच्छी बात ही हो, खासकर तब दुनियाभर में कर्ज का दबाव है. लेकिन सामान्य दिनों में विदेशियों का आराम से भारतीय अर्थव्यवस्था को कर्ज देना उनके भरोसे का संकेत है.

यह सब तेजी से बदलने को है और भारत के विदेशी मुद्रा कोष के संरक्षक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने चेतावनी का शुरुआती संकेत दे दिया है. अगर भाग्य ने साथ दिया और मान लिया जाये कि इस वित्त वर्ष में 80 अरब डॉलर की बड़ी रकम भी भारत में आये, तब भी भुगतान संतुलन खाते में 30-40 अरब डॉलर की कमी रहेगी. हमारा चालू खाता घाटा जीडीपी का 3.2 प्रतिशत तक होकर 100 अरब डॉलर के पार जा सकता है.

विदेशी मुद्रा के इस अतिरिक्त दबाव को झेलने के लिए हमारा भंडार पूरा नहीं होगा. इसीलिए रिजर्व बैंक ने अप्रवासी भारतीयों से डॉलर में जमा को आकर्षित करने के लिए कुछ छूट दी है. इसने विदेशी कर्ज लेना भी आसान बनाया है तथा भारत सरकार के बॉन्ड के विदेशी स्वामित्व की सीमा भी बढ़ा दी है. इन उपायों का उद्देश्य अधिक डॉलर आकर्षित करना है.

बढ़ते व्यापार और चालू खाता घाटा तथा इस साल चुकाये जाने वाले विदेशी कर्ज की मात्रा बढ़ने जैसे चिंताजनक संकेतों को देखते हुए ऐसे उपायों की जरूरत थी. भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है और खतरनाक रूप से अधिक है.

कर्ज लेने वाली निजी कंपनियों को या क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं? तो नया कर्ज लेना होगा या फिर भारत के मुद्रा भंडार से धन निकालना होगा. दूसरा विकल्प वांछित नहीं है क्योंकि मुद्रा भंडार घट रहा है और उसे बढ़ाने की जरूरत है. पहला विकल्प आसान नहीं होगा क्योंकि डॉलर विकासशील देशों में जाने के बजाय अमेरिका की ओर जा रहा है. किसी भी स्थिति में नये कर्ज पर अधिक ब्याज देना होगा, जिससे भविष्य में बोझ बढ़ेगा.

रिजर्व बैंक की पहलें केंद्र सरकार द्वारा डॉलर बचाने के उपायों के साथ की गयी हैं. सोना पर आयात शुल्क बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है. बहुत अधिक मांग के कारण भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा आयातक है. शुल्क बढ़ाने से मांग कुछ कम भले हो, पर इससे तस्करी भी बढ़ सकती है. गैर-जरूरी आयातों पर कुछ रोक लगने की संभावना है ताकि डॉलर का जाना रुक सके.

विदेशी मुद्रा और विनिमय दर का प्रबंधन रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है. अभी शेयर बाजार पर निवेशकों के निकलने के अलावा तेल की बढ़ी कीमतों के कारण भी दबाव है. इससे भारत का कुल आयात खर्च (सालाना 150 अरब डॉलर से अधिक) प्रभावित होता है तथा अनुदान खर्च भी बढ़ता है क्योंकि तेल व खाद के दाम का पूरा भार उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जाता है.

इस अतिरिक्त वित्तीय बोझ का सामना करने के लिए सरकार ने इस्पात और तेल शोधक कंपनियों के मुनाफे पर निर्यात कर लगाया है. इस कर से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व संग्रहण की क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं? अपेक्षा है. यह रुपये के मूल्य में गिरावट के असर से निपटने का एक अप्रत्यक्ष तरीका है.

लेकिन निर्यात कर एक असाधारण और अपवादस्वरूप उपाय है तथा इसे तभी सही ठहराया जा सकता है, जब तेल की कीमतें बहुत अधिक बढ़ी हैं. भारत सरकार पर राज्यों को मुआवजा देने का वित्तीय भार भी है, जो वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में कमी के कारण देना होता है. राज्य सरकारों पर अपने कर्ज का भी बड़ा बोझ है और 10 राज्यों की स्थिति तो खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है, जो उनके दिवालिया होने का कारण भी बन सकता है.

बाहरी मोर्चे पर रुपये पर दबाव केवल तेल की कीमतें बढ़ने से आयात खर्च में वृद्धि के कारण नहीं है. तेल और सोने के अलावा अन्य कई उत्पादों, जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल, कोयला आदि के आयात में अप्रैल से जून के बीच 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. जून में सोने का आयात पिछले साल जून से 170 प्रतिशत अधिक रहा था. यह देखना होगा कि अधिक आयात शुल्क से सोना आयात कम होता है या नहीं.

भारतीय संप्रभु गोल्ड बॉन्ड खरीद सकते हैं, जो सोने का डिमैट विकल्प है और कीमती विदेशी मुद्रा भी बाहर नहीं जाती. सरकार को आक्रामक होकर बॉन्ड बेचना चाहिए. आगामी महीनों में घरेलू और बाहरी मोर्चों पर दोहरे घाटे के प्रबंधन के लिए ठोस उपाय करने होंगे. उच्च वित्तीय घाटा उच्च ब्याज दरों का कारण बनता है और उच्च व्यापार घाटा रुपये को कमजोर करता है.

अगर दोनों घाटों को कम करने के लिए इन दो नीतिगत औजारों (ब्याज दर और विनिमय दर) पर ठीक से काम किया जाता है, तो हम संकट से बच सकते हैं. रुपये को कमजोर करना एक स्वाभाविक ढाल है, पर निर्यात बढ़ने तक अल्प अवधि में व्यापार घाटे को बढ़ा सकता है.

इसी तरह वित्तीय घाटा कम करने के लिए खर्च पर नियंत्रण और अधिक कर राजस्व संग्रहण जरूरी है. अधिक राजस्व के लिए आर्थिक वृद्धि और रोजगार में बढ़त की आवश्यकता है. दुनिया में मंदी की हवाओं के कारण अगर तेल के दाम गिरते हैं, तो यह भारत के लिए मिला-जुला वरदान होगा क्योंकि वैश्विक मंदी भारतीय निर्यात के लिए ठीक नहीं है, जो व्यापार घाटा कम करने के लिए जरूरी है.

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