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शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान

शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान
वहीं, एक ट्रेडर के रूप में आपको लॉस हुआ है या प्रॉफिट, आपके लिए टैक्स भरना जरूरी है. ज्यादातर लोगों को लगता है कि उन्हें नुकसान हुआ है, इसलिए उनके लिए टैक्स भरना जरूरी नही है. ऐसा करने पर आपको आयकर विभाग से नोटिस मिल सकता है. ध्यान रखना चाहिए कि टैक्स पीएंडएल रिपोर्ट में स्पेकुलेटिव इक्विटी इंट्राडे ट्रेड्स, नॉन स्पेकुलेटिर एफएंडअ ट्रेड, डिलिवरी ट्रेड्स से कैपिटल गेन और चार्जेस, टैक्स आदि सब कुछ अलग-अलग होता है.

डिलीवरी ट्रेडिंग क्या है ? [निवेश करने के प्रक्रिया की जानकारी]

दोस्तों, क्या आप शेयर बाजार में निवेश करना चाहते है लेकिन बाजार के प्रतिदिन उतर चढ़ाव का जोखिम नहीं लेना चाहते है ? आपके लिए डिलीवरी ट्रेडिंग (Delivery Trading) एक बेहतर विकल्प है। यह निवेशकों में बहुत लोकप्रिय और सुरक्षित है।

डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेशक शेयर को अपने डीमैट खाता में जमा करता है। डीमैट खाता (Demat Account) में निवेशक बिना किसी समय अवधि तक होल्ड करके रख सकता है और फिर इच्छानुसार कभी भी अपने शेयर को बेच सकता है। जैसे इंट्राडे ट्रेडिंग में, ट्रेडर्स को एक दिन के अंदर ही शेयर खरीदने या बेचने की प्रतिबद्धता है, लेकिन डिलीवरी ट्रेडिंग में शेयर खरीदने या बेचने के लिए कोई परिसीमा नहीं है। निवेशक दो दिन के अंदर या दो वर्षो बाद भी अपने शेयर को बेच सकता है।

निवेशक के पास पूर्ण अधिकार होता है की वह अपने इच्छा के अनुसार अपने शेयर को होल्ड या बेच सकता है। डिलीवरी आधारित ट्रेडिंग ऐसे निवेशकों के लिए अच्छा होता है जो ज्यादा जोखिम नहीं लेना चाहते है और लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट स्टॉक में मुनाफा बनाना चाहते हैं। डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेशक को शेयर खरीदने से पहले उस कीमत के बराबर पैसे तैयार रखने होते है।

डिलीवरी ट्रेडिंग के नियम

आप डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेश करना चाहते है तो आपको कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान देना आवश्यक है। यह आपको सही शेयर खरीदने में मदद करेगा। आप शेयर बाजार में नए है और किसी निपुण निवेशक सलाहकार की मदद चाहिए तो आप CapitalVIa Global Research Limited से संपर्क कर सकते है। आईये जानते है कुछ बुनियादी नियम के बारें में जिसका पालन शेयर खरीदते समय करना चाहिए।

  • सबसे पहले आपको कुछ कंपनी के fundamental Analysis के अध्यन करने के बाद एक सूचि तैयार करे।
  • भविष्य में उसके विकास, बैलेंस शीट आदि को ध्यान में रखकर अपने wishlist में शामिल करे।
  • अपने निवेश के जोखिम के अनुसार अपने डीमैट खाता में उतना धन संचित करे।
  • सही शेयर की कीमत देखकर शेयर को ख़रीदे।
  • बेचने के लिए सही समय की प्रतीक्षा करे ताकि आपको नुकसान नहीं हो।
  • टारगेट और स्टॉप लॉस अवश्य लगाए।
  • आपको पैसे अलग -2 कंपनियों में निवेश करे जिससे आपका जोखिम काम और रिटर्न्स अच्छा प्राप्त होगा।

डिलीवरी ट्रेडिंग कैसे करें?

कोई भी निवेशक डिलीवरी ट्रेडिंग को प्रक्रिया का चयन तभी करता है जब उसको long term के लिए निवेश करना है। डिलीवरी ट्रेडिंग में अपने कंपनियों के शेयर कोई खरीदते है और अपने डीमैट खाता में होल्ड करते है। आप अपने शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान शेयर को जब अपने डीमैट खाता में रखना चाहे तो रख सकते है और जब आपको अपने शेयर कर अच्छा रिटर्न्स मिल रहा है तो आप उसको बेच सकते है। शेयर बेचने का निर्णय आप पर निर्भर है। अन्य इंट्राडे ट्रेडिंग के तरह आप बाध्य नहीं है।

डिलीवरी ट्रेडिंग में, आपके पास पर्याप्त धनराशि होनी चाहिए तभी आप शेयर को खरीद सकते है और बेचने के लिए भी आपके पास उतने शेयर होने चाहिए। डिलीवरी ट्रेडिंग में यदि आपका रणनीत अच्छी है तो आपको एक निश्चित अंतराल के बाद अच्छा रिटर्न्स प्राप्त होगा।

यदि आप शेयर बाजार में नए और आप सही शेयर खरीदने का निर्णय नहीं सकते है तो आपको सेबी रजिस्टर्ड निवेशक सलाहकार के परामर्श शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान से आपको शेयर को खरीदने चाहिए। इससे शेयर बाजार के जोखिम काम हो सकता है।

डिलीवरी ट्रेडिंग के फायदे

डिलीवरी आधारित ट्रेडिंग सरल और सुरक्षित निवेश है इसके साथ -2 अन्य सुविधाएं है।

लॉन्ग टर्म निवेश

डिलीवरी आधारित ट्रेडिंग का सबसे बड़ा फ़ायदा है की आप शेयर को होल्ड कर सकते है, आप किसी समय अंतराल में बाध्य नहीं है।

उदाहरण : मान लीजिए कि अपने किसी कंपनी के शेयर में निवेश किया है और इसे होल्ड रखते हैं। कुछ समय बाद वह कंपनी या व्यवसाय आपको पॉजिटिव रिटर्न्स देता है, तो आप उस इन्वेस्ट में बने रह सकते हैं। लेकिन आपको कोई लाभ दिखाई नहीं देता है, तो आप उस शेयर को कभी भी बेचकर अपने पोजीशन से बाहर हो सकते हैं।

सुरक्षित

जब डिलीवरी आधारित ट्रेडिंग के माध्यम से शेयर खरीदते है तो आप वह शेयर बेचने के लिए समय के बाध्य नहीं है। यह आपके जोखिम की संभावना को काम करता है और आपके निवेश को सुरक्षित रखता है।

उदाहरण : मान लीजिए कि अपने किसी कंपनी के शेयर में निवेश किया है और किसी भी कारन से शेयर का दाम अगले दिन गिर जाता है। आप वह शेयर होल्ड रख कर सही समय का इंतज़ार कर सकते हैं। जब शेयर के दाम आपके निवेश किये राशि से ज्यादा है तो आप शेयर बेचकर मुनाफा अर्जित कर सकते है। इसलिए यह शेयर सुरक्षित है।

शेयर ट्रेडिंग से हुई इनकम पर कैसे टैक्‍स लगता है?

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शेयर ट्रेडिंग से हुए फायदे या नुकसान को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस (एसटीसीजी) या लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गेंस के तौर पर क्‍लासिफाई करना होगा.

एकेएम ग्‍लोबल में पार्टनर अमित माहेश्‍वरी कहते हैं, चूंकि पार्थ की शेयर ट्रेडिंग से इनकम है. इसलिए उन्‍हें इनकम टैक्‍स रिटर्न (आईटीआर) फाइल करने के लिए आईटीआर-2 का इस्‍तेमाल करना होगा.

हालांकि, पार्थ अगर इंट्रा-डे ट्रेडिंग कर रहे हैं तो उसे स्‍पेकुलेटिव बिजनेस के तौर पर देखा जाएगा. उस स्थिति में उन्‍हें आईटीआर-3 में अपना रिटर्न फाइल करने की जरूरत होगी. इसके अलावा शेयर ट्रेडिंग से हुए फायदे या नुकसान को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस (एसटीसीजी) या लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गेंस के तौर पर क्‍लासिफाई करना होगा. शेयर से हुए गेंस को अगर एक साल तक रखा जाता है तो उसे एसटीसीजी में वर्गीकृत किया जाता है. वहीं, अगर इसे एक साल से ज्‍यादा समय के लिए रखा जाता है तो यह एलटीसीजी में क्‍लासिफाई होता है.

शेयर मार्केट से हुई कमाई पर कैसे बनती है टैक्स की देनदारी, जानिए सभी जरूरी सवालों के जवाब

शेयर मार्केट से हुई कमाई पर कैसे बनती है टैक्स की देनदारी, जानिए सभी जरूरी सवालों के जवाब

taxation on Share Selling : सैलरी, किराये और बिजनेस से होने वाली आय पर इनकम टैक्स लगता है. लेकिन क्या शेयरों की खरीद-बिक्री और इस पर होने वाले मुनाफे पर भी टैक्स लगता है? जी हां, शेयरों की खरीद-बिक्री और इससे होने वाले लाभ पर टैक्स लगता है. शेयरों की बिक्री से होने वाली आय या घाटा ‘कैपिटल गेन्स’ के तहत कवर होता है.

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स (Long term Capital gains tax)

अगर शेयर मार्केट में लिस्टेड शेयरों को खरीदने से 12 महीने के बाद बेचने पर लाभ होता है तो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स कहते है. शेयरों की बिक्री करने वाले को इस कमाई पर उसे टैक्स देना शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान पड़ता है. 2018 के बजट में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स को फिर से शुरू किया गया था. इससे पहले इक्विटी शेयरों या इक्विटी म्यूचुअल फंड ( Equity Mutual funds) की यूनिटों की बिक्री से होने वाले लाभ पर टैक्स नहीं लगता था. इनकम टैक्स रूल्स (Income tax Rules) के सेक्शन 10 (38) के तहत इस पर टैक्स से छूट मिली हुई थी. लेकिन 2018 के बजट में शामिल किए गए प्रावधान में कहा गया कि अगर एक साल के बाद बेचे गए शेयरों और इक्विटी म्यूचुअल फंड की यूनिटों की बिक्री पर एक लाख रुपये से ज्यादा का कैपिटेल गेन हुआ है तो इस पर 10 फीसदी टैक्स लगेगा.

ITR Filing: कैपिटल मार्केट से होने वाली Income की जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में देना जरूरी

ITR Filing: कैपिटल मार्केट से होने वाली Income की जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में देना जरूरी

Updated on: Jul 28, 2022 | 1:47 PM

शेयरों के लेन-देन से दो तरह के कैपिटल गेन होते हैं, पहला है शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन और दूसरा है लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन. एक साल से कम की अवधि में हुई कमाई को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन कहते हैं और एक साल या उससे अधिक की अवधि में हुई कमाई को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहते हैं. 31 जुलाई को इनकम टैक्स रिटर्न भरने की मियाद खत्म होने जा रही है. इसलिए हम आपके लिए इससे जुड़ी काम की खबर लेकर आए हैं. मसलन, अगर आपकी कैपिटल मार्केट से इनकम होती है, तो इसकी जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में देनी जरूरी है.

समझें शेयर बाजार की कमाई को

शेयर बाजार से हुई कमाई पर लगने वाले टैक्स से पहले से समझना जरूरी है कि शेयर बाजार से कितने तरह के फायदे होते हैं. शेयरों के लेन-देन से दो तरह के कैपिटल गेन होते हैं, पहला है शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन और दूसरा है लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन. 1 साल से कम की अवधि में हुई कमाई को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन कहते हैं और एक साल या उससे अधिक की अवधि में हुई कमाई को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहते हैं.

अब इंट्रा-डे ट्रेडिंग के बारे में जान लेते हैं. जैसा कि नाम से ही साफ है कि ये कमाई एक ही दिन में होती है. यानी सुबह से शाम तक के वक्त में आप शेयर बाजार में पैसे लगाकर उसे बेच देते हैं और फायदा कमाते हैं, तो उसे इंट्रा-डे ट्रेडिंग कहते हैं और इससे हुआ फायदा शॉर्ट टर्म कैटिपल गेन होता है. ऐसे में उन्हें अपने मुनाफे पर 15 फीसदी का इनकम टैक्स चुकाना होगा. ध्यान रहे कि इंट्रा-डे से हुई कमाई को स्पेक्युलेटिव बिजनेस के तौर पर देखा जाता है, इसलिए आईटीआर फाइल करते वक्त आपको आईटीआर-3 फॉर्म का इस्तेमाल करना होगा.

कब भरना होता है आईटीआर-2

वहीं, अगर आप शेयर बाजार में एक दिन से अधिक के लिए शेयर खरीदते हैं तो उससे हुई कमाई के लिए आपको आईटीआर-2 फॉर्म भरना होगा. अगर आपकी कमाई शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन है तो आपको 15 फीसदी टैक्स देना होगा, जबकि अगर आपकी कमाई लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन है तो 1 लाख से अधिक की रकम पर 10 फीसदी का टैक्स देना होगा. बता दें कि 1 लाख रुपये तक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर आयकर में छूट दिए जाने का प्रावधान है.

कैपिटल ऐसेट्स जैसे म्यूचुअल फंड, स्टॉक्स, सोने और अचल संपत्ति से मिलने वाला लाभ कैपिटल गेन होता है. टैक्सपेयर्स को आईटीआर फॉर्म के CG शेड्यूल में कैपिटल गेन्स को भरना होता है. टैक्स एक्सपर्ट शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान बताते हैं कि ऐसे टैक्सपेयर्स जो टैक्स के दायरे में नहीं आते हैं लेकिन उन्हें लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन मिला है और उसकी सीमा छूट की लिमिट से ज्यादा है तो उन्हें आईटीआर जरूर भरना चाहिए.

Stock market: शेयर मार्केट से हुई इनकम पर कब कितना देना पड़ता है टैक्‍स, जानिए सबकुछ

Stock market tax rule: शेयर मार्केट में इनकम टैक्‍स रूल शेयर ट्रांजैक्‍शन पर किस तरह इनकम हुई है, उसके मुताबिक लागू होता है.

Tax rule on stock market transections: शेयर बाजार में इन्‍वेस्‍टमेंट से आप एक झटके में मोटी कमाई कर शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान सकते हैं. इसमें सबसे बड़ा फैक्‍टर काम करता है कि आपके पास रिस्‍क लेने की क्षमता कितनी है. बहरहाल, यहां एक जरूरी बात यह जानना जरूरी है कि शेयर बाजार में शेयरों की खरीद-बिक्री और उससे होने वाली इनकम भी टैक्‍स के दायरे में आती है. शेयरों की बिक्री से होने वाली इनकम या लॉस ‘कैपिटल गेन्स’ के दायरे में आता है.

ब्रोकरेज फर्म एंजल ब्रोकिंग की वेबसाइट पर उपलब्‍ध जानकारी के मुताबिक, शेयर मार्केट में इनकम टैक्‍स रूल शेयर ट्रांजैक्‍शन पर किस तरह इनकम हुई है, उसके मुताबिक लागू होता है. बाजार से दो तरह की इनकम, शॉर्ट टर्म कैनिटल गेन्‍स और लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गेन्‍स, होती है.

शॉर्ट टर्म कैपिटेल गेन्स टैक्स ( Short term Capital gains tax)

शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्‍स उसे कहते हैं, जब शेयर मार्केट में लिस्टेड शेयरों को खरीदने के 12 महीनों के अंदर बेच दिया जाता है. इससे होने वाली इनकम पर 15 फीसदी की दर से शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्‍स टैक्‍स देना होता है. इसमें चाहे आप किसी भी टैक्‍स स्‍लैब में आते हो. अगर आपको शॉर्ट टर्म कैपिटल लॉस होता है, तो आप इसे अगले 8 साल तक कैरी फॉर्वर्ड कर सकते हैं.

शेयर मार्केट में लिस्टेड शेयरों को खरीदने से 12 महीने के बाद बेचने पर लाभ होता है, शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान तो यह लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स के दायरे में आता है. इस हालत में शेयरों की बिक्री करने वाले को इस कमाई पर शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान उसे टैक्स देना पड़ता है. इसमें 10 फीसदी की दर से इनकम टैक्‍स देना पड़ता है. इसका मतलब कि अगर आप एक साल के बाद शेयर बेचते हैं और उस पर इनकम होती है तो 10 फीसदी की दर से लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गेन्‍स टैक्‍स देना शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान होगा. अगर आपको लॉन्‍ग टर्म कैपिटल लॉस होता है तो आप नुकसान को अगले 8 साल कैरी फॉर्वर्ड कर सकते हैं.

सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (STT)

सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (STT) को 2004 में इनकम टैक्‍स रूल में शामिल किया गया था. स्टॉक एक्सचेंज में बेचे और खरीदे जाने वाले शेयरों पर सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स यानी STT लगता है. जब भी शेयर बाजार में शेयरों की खरीद-बिक्री की जाती है, इस पर यह टैक्स देना पड़ता है. दिसंबर 2017 से इक्विटी ट्रांजैक्‍शन (खरीद या ब्रिकी) पर 0.1 फीसदी की दर से एसटीटी देना होता है. इंट्राडे में शेयरों की बिक्री पर सेलर को 0.025 फीसदी टैक्स देना पड़ता है. हालांकि, इंट्राडे में में सिक्‍युरिटीज की खरीद पर कोई टैक्‍स नहीं देना होता है.

बजट 2020 से पहले जो कंपनियां शेयरधारकों को डिविडेंट एलान करती थीं, उन्‍हें डीडीटी देना शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान होता था. नियमों के मुताबिक 31 मार्च 2020 तक डीडीटी का रेट 20.56 फीसदी था. बजट 2020 में किए गए प्रस्ताव के मुताबिक, डिविडेंड हासिल करने वाले निवेशक को अपने टैक्‍स ब्रैकेट के मुताबिक टैक्‍स रेट से डीडीटी का भुगतान करना होता है. इसमें डिविडेंड से चाहे आपको कितनी भी रकम हासिल हुई हो. पहले, टैक्सपेयर को अगर 10 लाख रुपये से ज्‍यादा डिविडेंड मिलता था, तो उसे डिविडेंड पर 10 फीसदी की दर से टैक्स देना पड़ता था.

ITR-2 किसे भरना है?

इनकम टैक्‍स रिटर्न-2 या ITR-2 फार्म उसे भरने शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान की जरूरत पड़ती है, अगर इंडिविजिुअल का इन्‍वेस्‍टमेंट कैश सेगमेंट में के दायरे में आता है.

इनकम टैक्‍स रिटर्न - 3 या ITR-3 फार्म उस टैक्‍सपेयर्स को फाइल करना है, जिसका इन्‍वेस्‍टमेंट डेरिवेटिव सेगमेंट के दायरे में आता है. एग्रेसिव इंट्राडे ट्रेडर्स इस कैटेगरी में आते हैं.

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